Breaking

कभी न खोयें धैर्य,उतार-चढ़ाव तो जीवन का हिस्सा होता है।

कभी न खोयें धैर्य,उतार-चढ़ाव तो जीवन का हिस्सा होता है।

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के शीर्ष आनलाइन ट्रैवल पोर्टल्स में शामिल ‘इग्जिगो’ के को-फाउंडर एवं सीईओ आलोक बाजपेयी ने वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में उद्यमिता में कदम रखा था। लेकिन अपने इनोवेटिव आइडियाज से न सिर्फ निवेशकों का भरोसा जीता, बल्कि तकनीक के जरिये लाखों मुसाफिरों के ट्रैवल सर्च एवं प्लानिंग को सरल बनाने में कामयाब रहे। कोरोना काल में एक बार फिर से इनके सामने चुनौतियां आईं, जब ट्रैवल इंडस्ट्री में सब कुछ ठप सा हो गया। लेकिन इस बार भी जज्बा बरकरार रहा।

आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करते हुए ही एंटरप्रेन्योरशिप का कीड़ा प्रवेश कर गया था आलोक के दिमाग में। कालेज में एक बिजनेस प्लान प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था, जिसमें उन्हें दूसरा पुरस्कार मिला। वह बताते हैं, ‘मैंने क्लिक ऐंड पार्टी’ नाम से एक वेबसाइट विकसित की थी। फिर ग्रेजुएशन के बाद चार साल यूरोपियन कंपनी एमेडियस में नौकरी की। लेकिन संतुष्टि नहीं मिली, तो इस्तीफा दे दिया।

उसके बाद इनसीड के एक वर्षीय एमबीए प्रोग्राम में दाखिला लिया। उसी दौरान गहन मंथन किया कि आखिर कौन-सा करियर बेहतर होगा? तलाश एंटरप्रेन्योरशिप पर जाकर खत्म हुई। पहले कुछ आइडियाज पर काम किया। अंत में ट्रैवल क्षेत्र सबसे मुफीद लगा।‘ आलोक के अनुसार, देश में तब ट्रैवल पोर्टल्स तो कई थे। लेकिन एयरलाइन, होटल आदि की बुकिंग के लिए कोई एक प्लेटफार्म नहीं था। मार्केट की इसी कमी को टीम ‘इग्जिगो’ ने दूर करने का निर्णय लिया, क्योंकि उनका मानना है कि रास्ते निकालने से ही निकलते हैं।

किराये के फ्लैट में हुई शुरुआत: बिजनेस में जोखिम के साथ प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। आलोक के पास कोई पूंजी नहीं थी। बचत के कुछ पैसे थे। वह बताते हैं,‘मैं पढ़ाई के दौरान लिए गए सभी ऋण चुकता कर चुका था। इसलिए 2006 में बाकी सह-संस्थापकों के साथ मिलकर गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में एक फ्लैट किराये पर लिया। हम वहीं रहते औऱ काम करते। खर्चों को कम से कम रखा।‘

आलोक का बिजनेस माडल नया था, तो उन्हें लोगों को कनविन्स करने में समय लगा। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। 2007 में कंपनी लांच होने के बाद से करीब एक-डेढ़ साल तक वह बूटस्ट्रैप्ड रही। दोस्तों-रिश्तेदारों ने आर्थिक मदद दी। आलोक बताते हैं,‘वर्ड आफ माउथ पब्लिसिटी से छह महीने में वेबसाइट पर एक लाख से अधिक यूजर्स आने लगे। जेट एयरवेज और इंडिगो जैसी एयरलाइंस कंपनियां प्लेटफार्म से जुड़ गईं।‘

निवेशकों से मिले कई रिजेक्शंस: आलोक ने बताया,‘मैंने अपने सफऱ में एक सबक लिया है कि अगर धैर्य खोया,तो हमेशा नाकामी का एहसास रहेगा। इसलिए कितनी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, हताश नहीं होना चाहिए। अपने विजन पर विश्वास रखना चाहिए। अगर यूजर खुश रहेगा, तो शेष समस्याओं का स्वयं निपटारा हो जाएगा।‘ शुरू में तमाम निवेशकों ने आलोक के बिजनेस माडल को रिजेक्ट कर दिया था।

उस पर से बाजार में वैश्विक आर्थिक मंदी का साया था सो अलग। सैलरी देने तक के पैसे नहीं थे। नौ महीने टीम के सदस्यों ने कम सैलरी पर काम किया। लेकिन यूजर्स का विश्वास और दृढ़निश्चय आगे बढ़ते जाने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। वह कहते हैं, ‘मेरा मकसद एक वैल्यूबल कंपनी क्रिएट करना था।

इसलिए सैफ पार्टनर्स औऱ मेक माई ट्रिप से फंड्स मिलने के बाद हमने कंटेंट को मजबूत बनाया। छोटे-छोटे शहरों को पोर्टल से जोड़ा। टीम बढ़ाई और मोबाइल में भविष्य को देखते हुए इग्जिगो एप लांच किए।’ कहते हैं आलोक, ‘असली कामयाबी वह होती है जब आपकी सर्वश्रेष्ठ परिकल्पना पूर्ण हो। जहां तक ‘टेस्ट आफ फायर’की बात है,तो वह सबका बराबर होता है।

फिर कोई युवा आइआइटी से निकला हो या गैर-आइआइटियन हो। जिनमें भी काबिलियत और अनुभव के साथ कुछ करने का जज्बा होगा, उन्हें कोई रोक नहीं सकता है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!