न्यूजीलैंड टीम ने टॉस जीतकर जिंदगी चुनने का फैसला किया.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एक ऐसा शक्तिशाली खुफिया गठजोड़ जो विश्व के हर छोटे-बड़े देश के नागरिकों, राजनेताओं और बड़ी-बड़ी कंपनियों की हर गतिविधियों पर अपनी नजर टिकाए रखता है। एक खुफिया समझौता जो इतनी ज्यादा गुप्त थी कि उस पर दस्तखत करने वाले एक देश के प्रधानमंत्री को 20 सालों तक इसकी भनक तक नहीं हुई कि वो ऐसी किसी संधि का हिस्सा भी हैं। और तो और दुनिया को इस समझौते के बारे में पता लगाने में 60 साल से ज्यादा का वक्त लग गया। दुनिया के पांच शक्तिशाली देशों का गठबंधन जिसकी नजर पिछले सात दशकों से दुनिया की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी गतिविधियों के ऊपर रहती है।
पाकिस्तान में एक क्रिकेट मैच होने वाला था न्यूजीलैंड की क्रिकेट टीम मैच खेलने के लिए मैदान में उतरने वाली थी। लेकिन तभी मैच के कुछ ही मिनट पहले एक सीक्रेट अलार्म बजता है और कुछ ऐसा होता है कि टीम न केवल खेलने से मना करके वापस चली जाती है बल्कि पाकिस्तान में पूरी की पूरी सीरिज ही रद्द कर दी जाती है। सीरिज रद्द कर न्यूजीलैंड की टीम स्वदेश लौट जाती है और करोड़ो पाकिस्तानी हैरान परेशान नजर आते हैं।
क्योंकि इसके पीछे सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया। वो भी तब जबकि पाकिस्तान ने टीम के लिए आईएसआई से लेकर तमाम सुरक्षा एजेंसियों को लगा रखा था। ताकि पाकिस्तानी क्रिकेट की कंगाली दूर की जा सके। आखिर अचानक ऐसी कौन सी जानकारी उस टीम को लग गई थी। क्या वो खुफिया मैसेज था या फिर कोई और था जो दूर बैठकर ही खेल कर गया। दरअसल, आतंकी हमले की आशंका और सुरक्षा कारणों से न्यूजीलैंड ने पाकिस्तान का अपना दौरा रद्द करने का फैसला लिया और स्वदेश वापस लौटने की घोषणा कर दी। सुरक्षा खतरे का इनपुट बेहद ही विश्वसनीय माना गया था।
जिसके बाद न्यूजीलैंड क्रिकेट और पाक की क्रिकेट बोर्ड व दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच फोन पर वार्ता हुई। इस बातचीत के 12 घंटे के भीतर ही दौरा रद्द करने का फैसला लिया गया। बता दें कि न्यूजीलैंड टीम को पांच देशों की खुफिया एजेंसी ‘फाइव आईज” की तरफ से होटल से बाहर कदम न रखने के निर्देश दिए गए थे। आज के इस विश्लेषण में आपको बताएंगे की क्या है फाइव आईज और आखिर क्यों किया गया था इसका गठन, कौन-कौन से देश इसमें शामिल हैं और इसका इनपुट इतना पुख्ता कैसे होता है।
फाइव आईज गठन
दुनिया के पांच ताकतवर देशों का गठबंधन जिसे फाइव आईज के नाम से जाना जाता है। इसके सदस्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड हैं। फाइव आईज संगठन पिछले 79 सालों से काम कर रहा है। इसका काम इंटेलिजेंस जुटाना है। इस संगठन के सदस्य देश आपस में मिलिट्री इंटेलिजेंस, सिग्नल इंटेलिजेंस और अन्य खुफिया जानकारियां शेयर करते रहे हैं। फाइव आईज की स्थापना 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई थी। जब हिटलर का तानाशाही खौफ दुनिया के सामने खड़ा था। द्वितीय विश्व युद्ध का दौर जब ब्रिटेन और अमेरिका दोनों एक साथ लड़ रहे थे।
जहां ब्रिटेन की नाक में जर्मनी ने दम किया हुआ था। वहीं अमेरिका के ऊपर जापान ने अटैक कर दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और अमेरिका ने सिग्नल इंटेलिजेंस में साथ मिलकर काम कर रहे थे। ब्रिटेन ने जर्मनी के एरिकमा साइफर को क्रैक किया था तो अमेरिका ने जापान के पर्पल साइफर को। युद्ध समाप्त होने के बाद ये दोनों ही देश अपने इंटेलिजेंस सहयोग को एक फॉर्मल इंस्ट्टूटनल रूप देना चाहते थे। जिससे कि दोबारा किसी जापान या हिटलर को सर उठाने से पहले ही कुचला जा सके। रूस का डर तो दोनों को पहले से ही था।
1943 में अमेरिका और ब्रिटेन ने एक सहकारी खुफिया समझौता बनाया – एक गुप्त संधि जिसे BRUSA समझौते के रूप में जाना जाता है – जिसे बाद में यूके-यूएसए समझौते के रूप में औपचारिक रूप दिया गया। अगले दशक में कनाडा, नॉर्वे, डेनमार्क, पश्चिम जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को अस्थायी रूप से तीसरे पक्ष के रूप में जोड़ा गया। 1955 में एक समूह फाइव आईज बन गया जिसमें यूएस, यूके., कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। 1950 के दशक में फाइव आई ने शीत युद्ध की खुफिया जानकारी साझा की और सोवियत संघ, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और पूर्वी ब्लॉक देशों के संचार की निगरानी की।
इसे दुनिया का सबसे सफल खुफिया गठबंधन माना जाता
फाइव आईज को दुनिया का सबसे सफल खुफिया गठबंधन माना जाता है। इसमें अमेरिका और ब्रिटेन का योगदान ज्यादा होता है। खुफिया जानकारियों के मामले में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का योगदान काफी कम रहता है। अब यह गठबंधन अपना स्वरूप बदलने पर विचार कर रहा है। 2020 में गठबंधन ने अपनी भूमिका को बदलने का संकेत दिया। ‘फाइव आईज’ ने सिर्फ गुप्त सुरक्षा से हटकर मानवाधिकारों के सम्मान पर अधिक सार्वजनिक रुख अपनाने पर सहमति जताई।
5 आई से मिली खुफिया जानकारी का इस्तेमाल
- वियतनाम युद्ध
- फ़ॉकलैंड युद्ध
- खाड़ी युद्ध
- ईरान के प्रधान मंत्री मोहम्मद मोसद्दिक़ को गद्दी से हटाने के लिए
- पैट्रिस लुंबा की हत्या
- चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे का तख्तापलट
- तियानानमेन चौक विरोध चीनी असंतुष्टों की सहायता
- आतंक के खिलाफ
फाइव आईज के टारगेट पर कौन कौन
नागरिकों, राजनेताओं और बड़ी-बड़ी कंपनियों की गतिविधियों पर फाइव आई की नजर रहती है। इनमें प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियां, संयुक्त राष्ट्र संगठन, एयरलाइंस, दूरसंचार ऑपरेटर, समाचार और मीडिया कंपनियां, वित्तीय संस्थान, बहुराष्ट्रीय निगम, तेल कंपनियां और शैक्षणिक संस्थान शामिल हैं।
सूची में इनमें से कुछ संगठनों में शामिल हैं
संयुक्त राष्ट्र (महासभा, निरस्त्रीकरण अनुसंधान संस्थान, बाल कोष, विकास कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी)
गूगल
याहू
मास्टर कार्ड
वीज़ा इंक.
एअरोफ़्लोत (रूसी एयरलाइंस)
अल जज़ीरा (मीडिया समूह)
वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन सोसायटी
थेल्स समूह (निगम)
पेट्रोब्रास (तेल कंपनी)
टोटल एस. (तेल कंपनी)
अल्काटेल-ल्यूसेंट (फ्रांसीसी दूरसंचार ऑपरेटर)
बेलगाकॉम (बेल्जियम दूरसंचार ऑपरेटर)
पैकनेट (हांगकांग स्थित दूरसंचार ऑपरेटर)
शिघुआ विश्वविद्यालय
यरूशलेम का हिब्रू विश्वविद्यालय
फाइव आई द्वारा टागरेट किए गए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची में राजनेता, सरकारी पद पर बैठे लोग, उद्यमी और यहां तक कि मनोरंजन जगत से जुड़े लोग भी शामिल हैं।
इनमें से कुछ व्यक्तियों में-
चार्ली चैप्लिन
स्ट्रोम थरमंड
नेल्सन मंडेला
जेन फोंडा
अली खामेनेई
जॉन लेनन
एहुद ओल्मर्ट
सुसिलो बंबांग युधोयोनो
एन्जेला मार्केल
राजकुमारी डायना, वेल्स की राजकुमारी
किम डॉटकॉम
खुफिया मीटिंग की बात अमेरिकी राष्ट्रपति तक
ये दिसंबर 1971 की बात है भारत और पाक के बीच युद्ध का दौर। आगे की रणनीति तय करने के लिए इंदिरा गांधी एक कैबिनेट मीटिंग बुलाती हैं। वो मीटिंग में कहती हैं कि इस वक्त दुनिया ये सोच रही है कि भारत कश्मीर के एलओसी के ऊपर कुछ भी नहीं करेगा। लेकिन यही एलओसी पर एक्शन का सबसे उपयुक्त समय है क्योंकि ऐसा करने से पाकिस्तान पूरी तरह अपने घुटनों पर आ जाएगा।
इधर इंदिरा गांधी अपनी मीटिंग खत्म करती हैं और उधर कुछ घंटों बाद इस खुफिया मीटिंग में की गई हर बातें अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन तक पहुंच जाती है। आखिर ऐसा कैसे संभव हुआ। क्या प्राइम मिनिस्टर ऑफिस के चप्पे-चप्पे में बग प्लांट किए गए थे और वहां की जाने वाली हर बात को पावरफुल इंटेलिजेंस सैटेलाइट की मदद से कोई दूर बैठकर सुन रहा हो। हालांकि कि इसका खुलासा आज तक नहीं हो सका।
भारत को भी किया जाएगा शामिल
ऐसे दौर में जब चीन एक बार फिर जर्मनी बनकर दुनिया को डराने की कोशिश में लगा है तो फाइव आईज का दायरा बढ़ाने की मांग पुरजोर तरीके से उठ रही है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट्स का ये मानना है कि फाइव आईज में जापान के साथ भारत और दक्षिण कोरिया को भी शामिल करके इसका दायरा बढ़ाया जाए। अगर चीन को घेरना है तो भारत को भी इंडो-पेशेफिक क्षेत्र में अपनी शक्ति बढ़ानी होगी। इसमें ऑस्ट्रेलिया अहम रोल निभा सकता है। दोनों देश पहले से ही सैनिक साझेदारी बढ़ा रहे हैं। ताकी चीन की चुनौती से निपटा जा सका। हाल में ही हुए औकुश समझौते से चीन की साउथ चाइना सी में करतूतों पर भी लगाम लगने वाला है।
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