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नीतीश का पीएम मैटेरियल वाला समाजवादी दांव - श्रीनारद मीडिया

नीतीश का पीएम मैटेरियल वाला समाजवादी दांव

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बड़े लक्ष्‍य को साधने के लिए लिया बड़ा फैसला

 

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सावन का आखिरी सोमवार। जिसमें सरकार में बदलाव को लेकर उफान उठा जो मंगलवार की शाम सवा पांच बजे जब शांत हुआ तब सत्ता का स्वरूप बदल चुका था। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) राज्यपाल को त्यागपत्र देकर भाजपा (BJP) का साथ छोड़ चुके थे और नए समीकरण में राजद (RJD), कांग्रेस (Congress), वामदल (Left parties) व हम (HAM) जुड़ चुके थे। इस राजनीतिक घटना के बाद नीतीश कुमार को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।

कोई उन्हें कुर्सी से जोड़कर देख रहा है तो कोई चपल राजनीतिक मान रहा है। कोई साथ छोड़ने और फिर पकड़ने का माहिर मानता है। लेकिन इस बार यह केवल बिहार की कुर्सी को लेकर लिया गया फैसला भर नहीं है। लंबे समय तक भीतर दबा एक समाजवादी मन फिर अंगड़ाई लेने लगा है, जिसे देश में मोदी (PM Narendra Modi) विरोध लायक विपक्षी चेहरे की शून्यता की भरपाई से जोड़कर देखा जा सकता है।

विपक्ष का सशक्‍त चेहरा बन सकते हैं नीतीश

नीतीश कुमार एक समाजवादी नेता हैं। उनकी यही पहचान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्रा मोदी भी उन्हें सच्चा  समाजवादी बता चुके हैं। समाजवादी को संघर्ष भाता है और नीतीश कुमार लंबे समय से संघर्ष से दूर रहे, क्योंकि सत्ता ही नहीं गई उनके पास से। इस समय विपक्ष परेशान है, उसके पास मोदी की काट लायक कोई नेता नहीं है। सोनिया (Sonia Gandhi) व राहुल (Rahul Gandhi) ईडी (ED) की मार से परेशान हैं। ममता दीदी (Mamata Banerjee) भी अब मोदी विरोध से पीछे हटती दिखाई दे रही हैं। केंद्र से तमाम योजनाओं के रुके फंड लेने के लिए उनके तेवर ढीले पड़े हैं। शरद पवार (Sharad Pawar) से महाराष्ट्र  की समस्याएं नहीं सुलझ रहीं। ऐसे में विपक्षी दलों को एक साथ थामने वाली कोई डोर नहीं है। नीतीश उस भूमिका में आ सकते हैं।

नीतीश के नाम पर बन सकती है आम सहमति

नीतीश पर कोई आरोप नहीं है। उनकी गिनती 17 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी ईमानदार नेता के रूप में होती है। उनके नाम पर सभी सहमत हो सकते हैं। बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश से अखिलेश, महाराष्ट्र से शरद पवार साथ आ सकते हैं। नीतीश मंजे खिलाड़ी हैं। त्याागपत्र से पहले ही वे सोनिया गांधी से भी बात कर चुके हैं। कांग्रेस भी उनके चेहरे पर मान जाए, कोई बड़ी बात नहीं। इसका दबाव ममता पर भी पड़ेगा और केसीआर (KCR) पर भी। ऐसे में नीतीश के चेहरा सबको मान्य हो सकता है।

समय-समय पर बताए जाते रहे पीएम मैटेरियल

नीतीश की महत्वाकांक्षा भी रही है प्रधानमंत्री बनने की। बीच-बीच में उनके पीएम मैटिरियल (PM material) होने की बात भी उठती रही है, लेकिन मौका अभी तक नहीं मिला। इधर भाजपा का साथ उनके आड़े आ रहा था। इसलिए प्रदेश की सत्ता को हाथ में रखते हुए उन्होंने पाला बदला है। संभावना है कि छह माह बाद कुर्सी तेजस्वी (Tejashwi Yadav) को सौंंप कर वे पीएम मैटिरियल बन जाएं और देश भर में दौरा करने निकल पड़ें।

लिखी जा रही थी आज की कहानी की स्क्रिप्‍ट

नीतीश की तरफ भाजपा पर वार शुरू भी हो गए हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि भाजपा 2013 से धाेखा दे रही है। 2020 में भी चिराग पासवान के जरिए छूरा भोंंका। अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि आखिर यह सब होने के बाद भी पिछले पांच साल साथ क्योंं रहा? भाजपा से अलग होने की आज की कहानी की स्क्रिप्ट एक बड़े उद्देश्य के लिए काफी दिनों से लिखी जा रही थी। भाजपा से नीतीश दूरी बढ़ाते जा रहे थे। चाहे दिल्ली के कार्यक्रम होंं या अमित शाह व जेपी नड्डा का पटना दौरा। नीतीश न गए और न यहां मुलाकात की और अब भाजपा पर महाराष्ट्र  जैसा पार्टी तोड़ने वाला षड्यंत्र रचने का आरोप लगाते हुए संबंध तोड़ दिया।

भाजपा को झटका दे सकता है वोटों का गणित

बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। भाजपा के लिए 2024 लोकसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। वो जदयू के सहारे सभी सीटें जीतना चाहती थी। अभी तक नीतीश की सारी नाराजगी झेलने के बाद भी वह अलग नहीं हुई तो इसका कारण जदयू व राजद के वोटों का गणित है। जो उन्हें बड़ा झटका दे सकता है। 2015 का विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है जब 243 में मात्र 53 सीटें ही उसको मिली थीं। भाजपा अध्यणक्ष जेपी नड्डा का यह बयान कि सारे दल खत्म हो जाएंगे, केवल भाजपा रहेगी। यह भी इनकी एकता कारण बना। नीतीश ने कई बार त्यागपत्र दिया है और कई बार समर्थन पत्र सौंपा है, लेकिन जो चमक व तेवर आज समर्थन पत्र देकर बाहर निकलते समय थे, वो पहले नहीं दिखाई दिए।

बड़े लक्ष्‍य को साधने के लिए लिया बड़ा फैसला

नीतीश कुमार ने यह फैसला किसी बड़े लक्ष्य को ध्यान में रख कर किया है। उनका लक्ष्‍य 2024 के चुनाव में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का साझा उम्मीदवार बनना हो सकता है। साल 2014 की तुलना में नीतीश के लिए स्थितियां अभी अधिक अनुकूल हैं। उस समय संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार थी और प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार उसी गठबंधन के हो सकते थे। आज विपक्ष के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है। जेडीयू मानता है कि नीतीश कुमार इस रिक्ति को भरने में सक्षम हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सकने में सक्षम नेता हैं।

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