No Confidence Motion: क्‍या होता है अविश्वास प्रस्‍ताव,कितनी बार हुआ पास-फेल?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

किसी मुद्दे पर विपक्ष की नाराजगी होती है तो लोकसभा सांसद नोटिस लेकर आता है. जैसे इस बार मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष नाराज है और वह लगातार सदन में प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहा है. सरकार को घेरने के लिए वह अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है. लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने इसे स्वीकर भी कर लिया है और आज से बहस शुरू होनी है. अविश्वास पर चर्चा के लिए 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है. गौरव गोगोई के नोटिस को 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. चर्चा के बाद इस पर वोटिंग की जाएगी.

कब लाया जाता है अविश्वास?
संविधान के अनुच्छेद-75 के मुताबिक, सरकार यानी प्रधानमंत्री और उनका मंत्रीपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है. लोकसभा में जनता के प्रतिनिधि बैठते हैं इसलिए सरकार को इसका विश्वास प्राप्त होना जरूरी है. ऐसे में अगर किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन में विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है. इसी के आधार पर लोकसभा के रूल 198(1) से 198(5) के तहत कहा गया है कि विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास का नोटिस लोकसभा स्पीकर को सौंप सकता है.

नियम के अनुसार अविश्‍वास प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लेने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा करना जरूरी होता है. चर्चा के दौरान विपक्ष सरकार को अलग-अलग मुद्दों पर घेरने का प्रयास करते हैं. सरकार का मुखिया होने के नाते पीएम को विपक्ष के सवालों का जवाब देना होता है. चर्चा समाप्‍त होने के बाद वोटिंग कराई जाती है. वोटिंग के आधार पर ही ये तय होता है कि सरकार सत्‍ता में रहेगी या नहीं.

भारत के इतिहास में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए जा चुके हैं, हालांकि ज्‍यादातर ये असफल ही रहे हैं. पहला प्रस्‍ताव अगस्त 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में पेश किया गया था. इस प्रस्‍ताव को जेबी कृपलानी ने रखा था. उस समय इसके पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे. वहीं सबसे ज्‍यादा अविश्‍वास प्रस्‍ताव इंदिरा गांधी के खिलाफ लाए गए. उन्‍होंने 15 बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव का सामना किया.

मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे. पहली बार प्रस्ताव के दौरान दलों में आपसी मतभेद होने की वजह से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, वहीं दूसरी बार मोरारजी देसाई के पास बहुमत नहीं था, तो उन्होंने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया. लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने भी तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हुए थे.

NDA और INDIA के पास कितनी ताकत 

लोकसभा में कुल 538 सीटें हैं, बहुमत का आंकड़ा 270 है, जबकि अकेली बीजेपी के पास 301 सीटें हैं, उसके सहयोगियों की सीटों की संख्‍या 30 है. शिवसेना (शिंदे गुट) जो कि एनडीए में शामिल हैं, जिसके पास 12 लोकसभा सीटें हैं. एलजेपी के पास 6 सीटें हैं, अपना दल (S) के पास 2,  एनसीपी के (अजित गुट) के पास 1 सांसद है, आजसू के पास 1 और AIADMK 1 सीट है. इसके अलावा मिजो नेशनल फ्रंट 1, नागा पीपुल्स फ्रंट 1, नेशनल पीपुल्स पार्टी 1, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी- 1, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के पास 1 सीट है. इसके अलावा दो निर्दलीय भी एनडीए में शामिल हैं. इस तरह एनडीए के सहयोगियों का कुल आंकड़ा 30 बनता है और इसमें बीजेपी की 301 सीटों को जोड़ दिया जाए तो एनडीए के पास संख्‍या बल 331 हो जाता है.

कांग्रेस के पास 50 लोकसभा सीट हैं, डीएमके 24, टीएमसी 23, जेडीयू 16, सीपीएम 3, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग 3, नेशनल कॉन्‍फ्रेंस 3, सपा 3, सीपीआई 2, आम आदमी पार्टी 1, जेएमएम 1, केरल कांग्रेस 1, आरएसपी (रेवॉल्‍यूशनरी सोशलिस्‍ट पार्टी 1), वीसीके 1, शिवसेना (उद्धव गुट) 7, एनसीपी (पवार गुट), 4 और निर्दलीय 1. इस तरह INDIA के पास 144 सीटें हैं.

जो न एनडीए में हैं और न ही INDIA में:   

जगन रेड्डी की पार्टी वाईआरएस के पास 22 लोकसभा सीटें, बीजेडी के पास 12 लोकसभा सीटें हैं, बीएसपी के पास 9, टीडीपी 3, अकाली दल 2, एआईयूडीएफ 1, जेडीएस 1, आरलएपी 1, अकाली दल (सिमरजीत सिंह मान) 1, एआईएमआईएम 2, टीआरएस के पास 9 सीटें हैं. इस तरह एनडीए और INDIA से अलग दलों के पास 63 सीटें हैं.

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