पूजा स्थल अधिनियम को लेकर पुराने मामलों के सुनवाई तक कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं होगा-सुप्रीम कोर्ट
देशभर में 10 स्थानों पर 18 सूट दाखिल किए गए हैं
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई और उनका निपटारा होने तक देश में कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कि पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई और उनका निपटारा होने तक देश में कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है।
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कानून कहता है कि पूजा स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह 15 अगस्त, 1947 को था। यह कानून किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है।
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं। महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड (माकपा) ने पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर करके कहा है कि यह कानून देश की सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है।
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार एक कानून लेकर आई थी, जिसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट कहा जाता है। इसके मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है।
क्यों पड़ी थी कानून की जरूरत?
1990 के दौर में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। सोमनाथ से निकली रथयात्रा को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन उससे पहले ही बिहार में लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। नरसिम्हा राव की सरकार आते-आते अयोध्या जैसे कई विवाद उठ खड़े हुए। इसे ही रोकने के लिए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लाया गया। लेकिन तब भी संसद में भाजपा ने इसका विरोध किया था। बिल को जेपीसी के पास भेजने की मांग की गई थी, लेकिन बावजूद इसके यह पास हो गया था।
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