अब देश को दिसंबर तक 38.37 करोड़ लोगों को टीका लगाना है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

धुन..दृढ़ इच्छाशक्ति..रणनीति..लगन..राष्ट्रभक्ति, जो भी आप कहना चाहे, शब्दों का चयन कर सकते हैं, लेकिन ये सारे भाव कोरोना महामारी के खिलाफ सरकार की लड़ाई को सार्थक करते हैं। महामारी से सुरक्षा कवच देने की बात आते ही भारत की विशाल आबादी और संसाधनों के अभाव पर गाड़ी रुक जाती थी। लेकिन देश ने न सिर्फ कई विकसित मुल्कों की तरह सबसे पहले स्वदेशी टीका विकसित कर लिया, टीकाकरण में भी उसने तमाम देशों के कान काट दिए।

अमेरिका सहित कई देशों में लोग टीके लगवा नहीं रहे हैं। अब उनकी छोटी आबादी ही उनके लिए संकट बन चुकी है। अगर क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित और सुसंगठित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं तो भारत सरकार ने टीकाकरण के राह की चुनौतियों को बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाया। टीके का विकास, आपूर्ति, कीमतों, लोगों को जागरूक करने में उसने यही रणनीति अपनाई। पेश है एक नजर:

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शुरुआत और लक्ष्य : भारत में पहला टीका 16 जनवरी 2021 को लगाया गया। कीमत, आपूर्ति आदि को लेकर तमाम चुनौतियां आईं। केंद्रीयकृत व्यवस्था तय की गई। लक्ष्य रखा गया कि देश की कुल वयस्क आबादी को इस साल के दिसंबर तक टीके से सुरक्षित कर दिया जाएगा। देश में इस आयुवर्ग की कुल संख्या 94 करोड़ है।

समय से पहले : आइसीएमआर का हालिया शोध बताता है कि अगर किसी व्यक्ति को एक भी टीका लगा है तो उसकी कोरोना से मौत की आशंका 97 फीसद कम हो जाती है। देश में अब तक 38.24 करोड़ लोगों को केवल पहली और 17.39 करोड़ को पहली व दूसरी दोनों डोज लग चुकी है।

अगर मान लिया जाए कि औसतन हर दिन देश में साठ लाख टीके लगाए जा रहे हैं तो दिसंबर तक हमारे पास करीब 110 दिन हैं। इतने दिन में हम 66 करोड़ टीके लगाने में सक्षम होंगे। यानी शेष बचे एक डोज वाले करीब 38 करोड़ के अलावा 28 करोड़ को और सुरक्षित कर सकेंगे। ये 28 करोड़ की संख्या दूसरी डोज लेने वालों के हिस्से में आएगी तो उनकी मौजूदा संख्या 17.39 करोड़ से बढ़कर 45 करोड़ को पार कर जाएगी। इस तरह हम दिसंबर तक अपनी सभी वयस्क आबादी को पहली डोज तो पूरी तरह लगा देंगे और 45 करोड़ लोग दूसरी डोज का भी सुरक्षा कवच हासिल कर सकेंगे।

हर बार जब वायरस किसी व्यक्ति को संक्रमित करता है तो अपनी संख्या भी बढ़ाता है। इससे म्युटेशन और नए वैरिएंट का खतरा भी बढ़ता जाता है। फिलहाल तो इसका एक ही तोड़ है-ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका लगाया जाए। अन्य देशों का तो तो नहीं पता, मगर यह तय है कि भारत में दूसरी लहर जैसे तांडव की पुनरावृत्ति नहीं होगी। हमारा टीकाकरण इसी गति से चला तो अगले साल तक शत-फीसद का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

दरअसल, दुनिया में टीके की उपलब्धता को लेकर एक तरह की असमानता है। वह यह कि उच्च और उच्च-मध्यम आय वाले देशों के पास जहां कुल टीकों का 81 फीसद उपलब्ध है, निम्न आय वाले देशों में इसकी उपलब्धता मात्र 0.4 फीसद है। यह एक गंभीर मसला है। जब तक अमीर देश इस अंतर को भरने के लिए आगे नहीं आएंगे, हम वैश्विक स्तर पर कोरोना के नए वैरिएंट का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।

बहरहाल, वैक्सीन का सकारात्मक प्रभाव दुनिया के कई देशो में देखा जा सकता है। हालांकि ब्रेकथ्रू संक्रमण (टीके की दोनों डोज के बाद संक्रमित होना) बढ़े हैं, लेकिन ज्यादातर मामले गंभीर नहीं थे। यह समझना जरूरी है कि टीकाकरण का असर किसी व्यक्ति विशेष में न देखकर आबादी के समूह पर देखा जाता है। टीके की दोनों खुराक लेने के बाद भी मौत की खबरें आईं, मगर पूरी आबादी के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इन्हें अस्पताल जाने या आक्सीजन की जरूरत लगभग नहीं पड़ रही है।

इसका ग्राउंड जीरो डाटा (वास्तविक वर्तमान आंकड़ा) अभी अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन आदि देशों के पास है। इन देशों में 50 फीसद से ज्यादा आबादी का संपूर्ण टीकाकरण हो चुका है। वहां भारत में तबाही मचाने वाले डेल्टा वैरिएंट ने ब्रेकथ्रू संक्रमण तो बढ़ाया, लेकिन टीके के कारण मृत्युदर आधी से भी कम हो गई। हालिया शोध इशारा कर रहे हैं कि विश्वव्यापी हो चुके डेल्टा वैरिएंट को बेअसर करने के लिए वैक्सीन के बाद बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है। राहत की बात यह है कि टीका बनाने वाली कंपनी फाइजर बायो-एन-टेक ने दावा किया है कि 100 दिनों के भीतर किसी भी नए वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने में सक्षम है।

भारत की बात करें, तो ज्यादातर जगहों पर जनजीवन सामान्य हो चला है। फिर भी केरल और पूवरेत्तर के राज्यों में बड़ी संख्या में मामले आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वहां के लोगों में अपेक्षाकृत कम सीरो पाजिटिविटी (विशेष समूह या क्षेत्र में लोगों सामूहिक इम्युनिटी) का बनना है। इन जगहों पर द्रुत गति से टीकाकरण करने की आवश्यकता है। इससे कोविड संक्रमण पर लगाम लगने की उम्मीद की जा सकती है।

यह सच है कि हमें इस जानलेवा वायरस के साथ जीना है। हमारा मुख्य उद्देश्य इसकी मृत्युदर को शून्य के स्तर पर पहुंचाना है। हालांकि वायरस लगातार नए रूप धर रहा है। वह पहले से ज्यादा संक्रामक और आक्रामक मुद्रा अपना रहा है। इसलिए टीके के साथ कोविड प्रोटोकाल का पालन भी बेहद जरूरी है। सर्वप्रथम कोलंबिया में मिला अभी तक का सबसे रेसिस्टेंट वैरिएंट (दोनों टीके लगवा चुके लोगों को भी संक्रमित करने में सक्षम) एमयू (बी1.621) 40 से ज्यादा देशों में तबाही मचा रहा है। इसे डब्लूएचओ ने वैरिएंट आफ इंटरेस्ट (वीओआइ) घोषित कर दिया है, यानी इसकी प्रकृति और संक्रामकता पर नजर रखी जाएगी। हम इस खतरे से अपने देशवासियों को आगाह कर सकते हैं। इसके लिए हमें भी लगातार इस वायरस के बदलते स्वरूप पर नजर रखनी होगी।

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