अब जमीन विवाद के लिए सिविल कोर्ट जाने की जरूरत नहीं.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भूमि सुधार उप समाहर्ता (डीसीएलआर) अब फिर से टाइटल सूट स्वामित्व या रैयती अधिकार सहित अन्य विवादों की सुनवाई कर सकेंगे. पटना हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गयी व्यवस्था के तहत राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने सभी प्रमंडलीय आयुक्त, डीएम को पत्र लिखकर डीसीएलआर के कोर्ट में टाइटल सूट के मामलों की सुनवाई शुरू कराने के निर्देश दिये हैं. सरकार के इस निर्णय से लोगों को भूमि स्वामित्व के मामलों में सिविल कोर्ट जाने की जरूरत नहीं होगी.

अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह का कहना है कि सभी डीसीएलआर को अधिकृत मामलों से संबंधित दायर वादों की सुनवाई फिर से शुरू करने और पहले के मामलों में पारित आदेशों के कार्यान्वयन का आदेश सभी प्रमंडलीय आयुक्त, सभी समाहर्ता और भूमि सुधार उपसमाहर्ता को दे दिया गया है. अब टाइटल के दायर वादों की सुनवाई और निबटारे की कार्रवाई फिर से शुरू करायी जायेगी.

सरकार ने लागू किया था भूमि विवाद निराकरण अधिनियम

सरकार ने राज्य में भूमि विवाद के मामलों और समस्याओं को कम समय में निबटाने और व्यवहार और उच्च न्यायालयों में दायर मामलों में कमी लाने के लिए बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम-2009 लागू किया था. इसमें भूमि विवादों की सुनवाई के लिए डीसीएलआर को रैयती भूमि के मामलों की सुनवाई की शक्ति दी गयी थी.

इसी के तहत डीसीएलआर टाइटल, अतिक्रमण, अनधिकृत संरचना निर्माण, सीमा विवाद, बंदोबस्तधारी की बेदखली का मामला, भूखंड का विभाजन, सर्वे मानचित्र सहित स्वत्वाधिकार अभिलेख में की गयी प्रविष्टि में संशोधन से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रहे थे.

हाइकोर्ट ने लगा दी थी रोक, सरकार गयी थी सुप्रीम कोर्ट

फारबिसगंज निवासी महेश्वर मंडल ने 2013 में पटना हाइकोर्ट में इस व्यवस्था को चुनौती दी थी. इस पर हाइकोर्ट के दो सदस्यीय खंडपीठ ने फैसला दिया कि डीसीएलआर को केवल उसी मामले पर सुनवाई का अधिकार है, जिसमें आवेदक को भूमि संबंधित रैयती अथवा बंदोबस्ती अधिकार पहले से मिला हुआ हो.

स्वामित्व (टाइटल) अथवा रैयती अधिकार सहित अन्य विवादों में सिविल कोर्ट को ही सुनवाई का अधिकार होगा. हाइकोर्ट ने कहा था कि डीसीएलआर को भूमि विवाद निराकरण कानून में कोई नया अधिकार- हिस्सा या बंटवारा करने का अधिकार नहीं है. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित कर पटना हाइकोर्ट के आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है.

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