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अब ज़ूम के माध्यम से ‘औरत की अदालत’ में महिलाओं को मिलेगी समस्या से निज़ात - श्रीनारद मीडिया

अब ज़ूम के माध्यम से ‘औरत की अदालत’ में महिलाओं को मिलेगी समस्या से निज़ात

अब ज़ूम के माध्यम से ‘औरत की अदालत’ में महिलाओं को मिलेगी समस्या से निज़ात
• प्रत्येक बुधवार को लगती है ‘ औरत की अदालत’
• सहयोगी संस्था के सहयोग से होता है आयोजन
• घरेलू हिंसा एवं तलाक संबंधी मुद्दों पर मिलती है सलाह

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श्रीनारद मीडिया, पटना (बिहार):

सहयोगी संस्था द्वारा महिलाओं को घरेलू एवं सामाजिक न्याय दिलाने के लिए प्रत्येक बुधवार को ‘औरत की अदालत’ का आयोजन किया जाता रहा है. इस दौरान महिलाओं को घरेलू हिंसा सहित शादी एवं तलाक जैसे मुद्दे पर क़ानूनी सलाहकार द्वारा सलाह दी जाती है. लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को मद्देनजर अब ‘औरत की अदालत’ को ऑनलाइन कर दिया गया है. बुधवार को पहली बार ‘औरत की अदालत’ ज़ूम के माध्यम से की गयी. पटना के दानापुर एवं बिहटा सहित कई अन्य क्षेत्रों की महिलाएं ज़ूम के माध्यम से ‘औरत की अदालत’ में जुड़ी और अपनी समस्या भी रखी. सहयोगी संस्था की कानूनी सलाहकार बेबी कुमारी (अधिवक्ता) ज़ूम से जुडी थी, जिन्होंने महिलाओं की समस्याएं सुनकर उन्हें उचित सलाह भी दी.

समस्याओं के समाधान के लिए पूर्ण जानकारी का होना जरुरी:
सहयोगी संस्था की कार्यकारी निदेशक रजनी ने बताया कि सहयोगी संस्था घरेलू हिंसा, लिंग आधारित भेद-भाव सहित महिलाओं को पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय दिलाने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही है. उन्होंने बताया कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को किसी भी तरह के शोषण से बचाने के लिए महिलाओं को जागरूक करना अत्यंत लाजिमी है. इसे ध्यान में रखते हुए ‘औरत की अदालत’ की शुरुआत की गयी है. उन्होंने बताया कि अभी भी समाज में महिलाएं जाने-अनजाने मानसिक, शारीरिक या आर्थिक शोषण का शिकार होती रहती हैं. लेकिन कई बार वे शोषण का शिकार होने के बाद इससे अनभिज्ञ रह जाती हैं. जबकि कुछ महिलाएं यह तो जानती है कि उनके साथ शोषण हो रहा है. लेकिन इसके खिलाफ़ कैसे कार्रवाई की जा सकती है, यह उन्हें मालूम नहीं होता है. ऐसी सभी समस्याओं से उन्हें निज़ात दिलाने के लिए ‘औरत की अदालत’ काफ़ी उपयोगी साबित हो रहा है.

क़ानूनी सलाह की होती है अधिक जरूरत:
रजनी ने कहा कि कई ऐसे मुद्दे होते हैं जहाँ क़ानूनी सलाह की जरूरत होती है. यदि कोई महिला अपने पति से अलग रह रही हो या दोनों में तलाक हो गया हो तो पति के द्वारा पत्नी को आर्थिक सहायता करना क़ानूनी प्रावधान होता है. लेकिन कभी-कभी ऐसी महिलाओं को पति के द्वारा कॉमपनशेसन नहीं मिलता है. ऐसी स्थिति में ‘औरत की अदालत’ के माध्यम से महिलाओं को क़ानूनी सलाह दी जाती है ताकि वह अपनी समस्या से निजात पा सके.

महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए हैं कई सरकारी प्रावधान:
क़ानूनी सलाहकार सह वकील बेबी कुमारी ने बताया कि महिलाओं को सभी तरह के घरेलू, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय दिलाने के लिए कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन अभी भी समाज में इन कानूनों या नियमों के विषय में लोगों में जागरूकता का आभाव है. विशेषकर गाँवों में रहने वाली महिलाएं ऐसे कानूनों से बिल्कुल अनजान होती है. उन्होंने सहयोगी संस्था के सहयोग से संचालित ‘औरत की अदालत’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक अच्छी पहल है. इससे कई वंचित महिलाओं को न्याय मिलने में आसानी हो रही है.

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