हे महामना आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम-डॉ सुधीर कुमार सिंह.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“हे भारत के राम जगो मैं तुम्हें जगाने आया हूं “श्याम सुंदर रावत जी की इन पंक्तियों को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए सन 1938 में सिवान के दक्षिणांचल में स्थित रघुनाथपुर (वर्तमान में रघुनाथपुर थाना)गांव में माता लक्ष्मी और पिता रामस्वरूप प्रसाद के आंगन में एक बालक का जन्म हुआ। जिसने अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से अपने गांव ही नहीं बल्कि इलाके और जिले के तमाम निस्हायों ,गरीबों और संपर्क में आने वाले तमाम जरुरतमंदों को जीनै की सही राह दिखाकर उनकी अंधेरे जीवन को रौशन किया। खेलकूद, शिक्षा के साथ ही तमाम तरह की सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में बालक मोहन प्रसाद विद्यार्थी ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया और अपने हरफनमौला प्रदर्शन द्वारा समय की छाती पर अमिट लकीर खींची।

सन 1952-53 में एन सी सी के हजारीबाग कैंप में बालक मोहन प्रसाद विद्यार्थी को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण बाबू के हाथों सम्मानित होने का सौभाग्य मिला।1955 में सिवान के वी एम उच्च विद्यालय से आपने प्रथम श्रेणी में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास किया उसके बाद आपने हिंदी साहित्य, राजनीति शास्त्र और इतिहास बिषय में एम ए(परास्नातक)की डिग्री हासिल किया।शिक्षा हासिल करने की आपकी अभिरुचि यहीं पर नहीं रुकी आपने बी एड और एम एड की परीक्षा उत्तीर्ण किया।

सन1960 में आपकी नियुक्ति किसान मजदूर उच्च विद्यालय टारी के संस्थापक प्रधानाचार्य के पद पर हुई। साथ ही आपको भारत स्काउट एवं गाइड का जिला उपाध्यक्ष ‌तथा रेडक्रॉस सोसायटी का आजीवन सदस्य बनने का भी गौरव मिला।जिस समय आपकी नियुक्ति किसान मजदूर उच्च विद्यालय टारी में हुई उस समय यह विधालय भवन और संसाधन विहीन था। आपने जनसहयोग और अपनी कर्मठता के बल पर सूदूर देहात में स्थित इस विद्यालय को सही अर्थों में विधा का मंदिर होने का गौरव प्रदान किया।

जहां से लाखों विद्यार्थियों ने शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को दिशा दिया।आज भी आपके शिष्य उच्च और सम्मानित पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं। आप अपने गांव ज्वार और इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में किसी देवदुत से कम नहीं थे। तमाम उम्र आपने जरुरतमंद विधार्थियों की अपनी रोशनी से रौशन किया और उन्हें सही दिशा दिखा उनकी जिंदगी को संवारने काम किया।

यौवनावस्था में जब आप खेल मैदान में उतरते थे आपके करिश्माई खेल को देख कर बरवस ही लोग तालियां बजाने को मजबूर हो जाते थे। लोगों के लिए यह समझ पाना मुश्किल था कि फुटबॉल को लेकर मोहन प्रसाद विद्यार्थी विपक्षी खिलाड़ियों को चीरते हुए गोल की तरफ बढ़ रहें हैं या मोहन प्रसाद विद्यार्थी को लेकर फुटबॉल विपक्षी दल पर हावी हो रहा है। कमोवेश यही स्थिति शिक्षा के क्षेत्र में भी रही ।जब आप क्लास(कक्षा) में होते थे तो बिषय की सीमाएं टुट जाती थी।

सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को आपने अपने जीवन में उचित स्थान दिया और लोककलाओं व प्रथाओं को बढ़ाने में आपका अमूल्य योगदान रहा। दशहरा में प्रतिबर्ष रामायण और प्रसिद्ध नाटकों का मंचन। उनके माध्यम से बच्चों में सांस्कृतिक गतिविधियों और अभिरुचि पैदा करना, उनके जीवन में महापुरुषों के चरित्र को ढालना और उनका चारित्रिक विकास करना भी आपके जीवन की अद्भुत कला थी। शहीदों के लिए समर्पित संस्था शहीद स्मृति न्यास का गठन आपके जीवन की अनमोल उपलब्धि रही और आप इसके सम्मानित अध्यक्ष रहे।शहीद स्मृति न्यास की तरफ से शहीदों को समर्पित और श्रद्धांजलि देने के लिए निकलने वाली पत्रिका पुष्पांजलि के संपादक होने का भी गौरव आपको प्राप्त हुआ।

सन1988 में आप ताजपुर उच्च विद्यालय छपरा से सेवानिवृत्त हुए। उसके बर्षो बाद आपके कुशल देखरेख पंजवार गांव में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिए प्रभा प्रकाश महाविद्यालय की स्थापना की गई और कॉलेज मैनेजमेंट ने आपको संस्थापक प्राचार्य के पद पर आपको आसीन किया। जिस पद पर आप अपनी अंतिम सांस तक आसीन रहे। आपने अपनी मातृभाषा भोजपुरी को बढ़ावा देने के आखर जैसी प्रतिष्ठित संस्था के साथ जुड़कर भोजपुरी भाषा की मिठास और इसमें रचित ग्रंथों को व कृतियों को जनसामान्य तक पुहुंचाने का ऐतिहासिक कार्य किया।

सदा जीवन उच्च विचार सबके लिए शिक्षा और सबका सम्मान आपके जीवन का आदर्श रहा और आप ताउम्र शिक्षा को बढ़ावा देने व जरुरतमंदों की सेवा के लिए तत्पर रहें। दिनांक 1/11/2021को आपने इस संसारिक मोह-माया को त्याग कर स्वर्गवासी हो गए।मगर आपके निस्वार्थ और निष्काम भाव सेवा और शिक्षा दान की अमर ज्योति दिग-दिगंत तक प्रकाशित होती रहेगी।सही अर्थों में कहें तो रघुनाथपुर ने अपने मोती माट साब को खो दिया।जिसकी कमी कभी पूर्ण नहीं होगी।

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