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देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते हैं! - श्रीनारद मीडिया

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते हैं!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आषाढ़ के माह में योगिनी एकादशी और देवश्यनी एकादशी आती है। 2 जुलाई को योगिनी एकादशी है और 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निंद्रा में चले जाते हैं और इसके 4 महीने बाद देव उठनी एकादशी पर फिर से निद्रा से जागते हैं। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा मिलती है।

देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त

ज्योतिष के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि 16 जुलाई 2024 को रात्रि 08 बजकर 33 मिनट पर शुरू हो रही है। हालांकि इसका समापन 17 जुलाई को रात 09 बजकर 02 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, इस बार देवशयनी एकादशी 17 जुलाई 2024, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।

पौराणिक कथा

भागवत पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार दिलाने के लिए वामन अवतार लिया। कथा के अनुसार, असुरों के राजा बलि ने तीनों लोक पर अधिकार स्थापित कर लिया था। तब वामन भगवान, राजा बलि के पास पहुचे और उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि इसे स्वीकार कर लेते हैं। तब वामन भगवान ने एक पग में, संपूर्ण धरती, आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया। वहीं दूसरे पग में उन्होंने स्वर्ग लोक को नाप लिया। इसके बाद उन्होंने बलि से पूछा कि अब में तीसरा पग कहां रखूं। तब राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।

राजा बलि को मिला ये वरदान

राजा बलि के यह दानशीलता देखकर भगवान काफी खुश हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि आप मेरे साथ मेरे महल में रहें और मुझे अपनी सेवा का सौभाग्य प्रदान करें। लेकिन इस वचन से मां लक्ष्मी विचलित हो गई और उन्होंने राजा बलि को अपना भाई बनाकर उन्हें भगवान विष्णु को वचन मुक्त करने को कहा। तब भगवान विष्णु ने कहा कि वह चार माह के लिए पाताल लोक में शयन करेंगे।

धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार, इस दौरान संसार का संचालन सुचारू रूप चलता रहे। इसलिए भगवान विष्णु ने भगवान शिल को इन 4 महीनों के लिए पूरी सृष्टि का संचालन करने की जिम्मेदारी सौंपी। इसलिए कहा जाता है कि चातुर्मास के दौरान संसार का संचालन भगवान शिव द्वारा किया जाता है।

भागवत पुराण में वर्णन है कि देवराज इंद्र को फिर से स्वर%A

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