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राजपुर में श्रीमद्भागवत कथा  के पांचवें दिन पूतना वध व गोवर्धन पूजा पर हुआ वाचन - श्रीनारद मीडिया

राजपुर में श्रीमद्भागवत कथा  के पांचवें दिन पूतना वध व गोवर्धन पूजा पर हुआ वाचन

राजपुर में श्रीमद्भागवत कथा  के पांचवें दिन पूतना वध व गोवर्धन पूजा पर हुआ वाचन

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श्रीमद्भागवत कथा  सुनने पहुचे रघुनाथपुर बीडीओ.

सच्चे मन से मांगे गए हर चीज को देते हैं भगवान : राघव शरण जी महाराज

श्रीनारद मीडिया, प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)

सीवान जिले के रघुनाथपुर प्रखंड के राजपुर गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन सोमवार को परम पूज्य श्री राघव शरण जी महाराज को सुनने रघुनाथपुर प्रखंड विकास पदाधिकारी अशोक कुमार भी पहुचे थे.सोमवार को हुए कथा वाचन में पूतना वध, बकासुर वध, गोवर्धन पूजा की कथा सुनाई गई.आचार्य ने कहा कि भगवान से सच्चे हृदय से जो भी मांगो जरूर मिलता है.

इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि पूतना जो भगवान को अपने दूध में जहर मिलाकर मारने के उद्देश्य से गोकुल पहुंची थी वह पूर्व जन्म में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी. जिस समय भगवान वामन रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि दान मांगने गए थे उसी समय उनके मनोहर क्षवि को देख रत्नमाला ने मन ही मन ऐसा ही पुत्र पाने की इच्छा जाहिर की और जब प्रभु ने राजा बलि से दान में सब कुछ ले लिया तो रत्नमाला ने मन ही मन इच्छा जताई कि ऐसा पुत्र मेरा होता तो दूध में जहर देकर मार देती.

अंतर्यामी भगवान ने रत्नमाला की मनोदशा जान ली और उसे भी तथास्तु बोले. अगले जन्म में ऐसा ही मौका आया रत्नमाला की पहली इच्छा भगवान को अपने बेटे की तरह दूध पिलाने की थी और दूसरी इच्छा दूध में जहर देकर मारने की. प्रभु ने रत्नमाला की दोनों इच्छा ही पूरी की. भले ही पूतना के रूप में रत्नमाला दूसरी इच्छा में सफल ना हो सकी.

इसके उपरांत आचार्य ने इंद्र की पूजा न कर गोवर्धन पूजा के लिए भगवान ने गोकुल वासियों को कैसे प्रेरित किया और इंद्र का मान भंग किया. इसकी भी कथा विस्तार से सुनाएं. उन्होंने बताया कि जब देवराज इंद्र को पता चला कि गोकुल वासी उनकी पूजा ना कर गोवर्धन पर्वत की कर रहे हैं तो उन्होंने भीषण बारिश करा दी.

जिस पर भगवान ने गोवर्धन को अपने कनिष्ठ उंगली पर धारण कर गोकुल वासियों की रक्षा किये और गिरीधर कहलाए. आचार्य द्वारा इस प्रकार व्याख्यात्मक कथा को सुन श्रोतागण मन ही मन गदगद हो रहे थे. प्रतिदिन की तरह सोमवार को भी भजन और आरती के साथ कथा का समापन प्रसाद वितरण के साथ हुआ।

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