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भरतमुनि जयंती के उपलक्ष्य में नाट्यशास्त्र के विविध आयाम विषयक ई परिचर्चा का हुआ आयोजन

भरतमुनि जयंती के उपलक्ष्य में नाट्यशास्त्र के विविध आयाम विषयक ई परिचर्चा का हुआ आयोजन

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नाट्यशास्त्र को पंचम वेद कहते हैं: प्रो. पुष्पम नारायण

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नाट्यशास्त्र के प्रणेता “आचार्य भरत मुनि” की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में रविवार को संस्कार भारती, बिहार प्रदेश द्वारा नाट्यशास्त्र के विविध आयाम विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस ऑनलाइन परिचर्चा का प्रसारण संस्कार भारती, बिहार के फेसबुक पेज पर किया गया, जिसमें काफी संख्या में देश भर से कला प्रेमी, कला साधक जुड़ें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के संगीत एवं नाट्य विभाग की अध्यक्षा प्रोफ़ेसर पुष्पम नारायण ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. पुष्पम नारायण ने नाट्यशास्त्र के विविध आयामों पर चर्चा करते हुए कहा कि नाट्यशास्त्र वैज्ञानिक ढंग से लिखा गया। इसमें कला के सभी विधाओं का संकलन है, सभी विषयों का संकलन है। यह विशेष ज्ञान देने वाला ग्रंथ है, नाट्यशास्त्र को पंचम वेद कहते हैं। यह प्रयोजनमूलक है इसमें सामाजिक सरोकार भी है, नाट्य शास्त्र के कई आयाम हैं। इसलिए इसको पंचम वेद की संज्ञा दी गई है।

मुख्य वक्ता के तौर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रदर्शनकारी कला विभाग के प्रोफेसर डॉ. ओम प्रकाश भारती ने नाट्यशास्त्र के व्यवहारिक पक्ष को रखते हुए कहा कि नाट्य शास्त्र है और भरत मुनि जी थे, अब इसकी प्राचीनता इतनी अधिक है कि विश्व ज्ञान परंपरा में कहीं न कहीं संकट है इसे स्वीकार कर लेना।

इतना बड़ा समग्र कलाकार ग्रंथ भारत में रचित हुआ और पूरी दुनिया में विमर्श है। यह कला परम्परा का एकमात्र ग्रंथ जहां शास्त्र, प्रयोग और दर्शन तीनों का समावेश है।आगे उन्होंने कहा कि कभी तो संदेह लगता है कि 500 वर्ष ई. पूर्व लिखी ग्रंथ को आज पूरी दुनिया मिलकर ऐसी ग्रंथ लिख लेता तो भी ऐसे ग्रंथ आज संभव नहीं है।

दूसरे मुख्य वक्ता के तौर पर भरतनाट्यम नृत्यांगना सुदीपा घोष ने नृत्य कला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भरतनाट्यम भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से उद्वेलित है, नाट्यशास्त्र में भाव, रस और ताल इन तीनों की विशिष्टता है। भरतनाट्यम में भी इन तीनों पक्षों की बराबर की भागीदारी होती है, इसी प्रकार से भ का पहला अक्षर से भाव, र का पहला अक्षर रस, ता के पहले अक्षर से ताल से होता है इन तीनों के मेल से बना है भारत और नाट्य से भरतनाट्यम बना है।जिस प्रकार नाट्यशास्त्र का ज्ञान ब्रह्मा और महेश से मिला है उसी प्रकार नाट्यशास्त्र गुरु की परंपरा से आगे भी लोगों को मिलता रहेगा।

विषय प्रवर्तन करते हुए आचार्य भरत मुनि संचार शोध केंद्र, मोतिहारी के केंद्र समन्वयक डॉ. साकेत रमण ने भरत मुनि द्वारा रचित “नाट्यशास्त्र” के संचारी भाव पर प्रकाश डाला और उन्होंने कहा कि भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में 32 प्रकार के संचारी भाव हैं तथा नाट्य शास्त्र में सिर घुमाने के 13 प्रकारों का वर्णन किया गया है, उसी तरह से 67 प्रकार से हस्त मुद्राओं की चर्चा की गई है।

इसी तरह कमर के 5 तथा 5 पैरों के मुद्राएं, बाहों के 12 प्रकार की मुद्राओं, 12 प्रकार के आंखों के मुद्राओं के भाव और 9 प्रकार की पुतलियों के प्रकार है।
आगे डॉ. साकेत रमण ने कहा कि आज भी आचार्य भरतमुनि का नाट्यशास्त्र प्रासंगिक है, उन्होंने संचार के परिदृश्य में भाव अभिव्यक्ति को लेकर आचार्य भरतमुनि के अविस्मरणीय योगदान पर भी चर्चा किए।

इस ऑनलाइन परिचर्चा का संचालन संस्कार भारती, उत्तर बिहार के प्रांत मंत्री जलज कुमार अनुपम ने किया।

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