फाइलेरिया नियंत्रण को लेकर डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन

फाइलेरिया नियंत्रण को लेकर डब्ल्यूएचओ के सहयोग से एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन:

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हाथी पांव को जड़ से मिटाया नहीं जा सकता है जबकि हाइड्रोसील को किया जा सकता है समाप्त: डॉ एपी चौधरी

ज़िले में 6247 फाइलेरिया मरीज, जिसमें (हाथी पांव) के 4978 एवं (हाइड्रोसील) के 1269 मरीज़ों को किया गया है चिन्हित: डीएमओ

फाइलेरिया के लक्षण से लेकर बचाव और कारण के बारे में विस्तृत रूप से की गई चर्चा: डब्ल्यूएचओ

 

श्रीनारद मीडिया पूर्णिया, (बिहार):

फाइलेरिया को दुनिया की दूसरे नंबर की बीमारी माना गया है जो बड़े पैमाने पर लोगों को विकलांग बना देती है। लिंफेटिक फाइलेरियासिस को ही आम बोलचाल की भाषा में फाइलेरिया कहा जाता है। फाइलेरिया हालांकि किसी की ज़िंदगी तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत समान बना देती है। इस बीमारी को हाथीपांव के नाम से भी जाना जाता है। अगर समय पर फाइलेरिया की पहचान कर ली जाए तो जल्द इलाज शुरू किया जा सकता है। फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत ज़िले के सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, चिकित्सा पदाधिकारी एवं उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग दे रहे स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों और कर्मियों का एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन शहर के निजी होटल में डब्ल्यूएचओ के सहयोग से किया गया। इसका विधिवत उद्घाटन नवनियुक्त सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, डीएमओ डॉ आरपी मंडल, डीपीएम ब्रजेश कुमार सिंह, बी कोठी के एमओआईसी डॉ अजय कुमार, कालाजार सलाहकार सोनिया मंडल, डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार एवं केयर इंडिया के डीपीओ चंदन कुमार के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस अवसर पर ज़िले के सभी एमओआईसी, एमओ, बीएचएम, बीएचआई, बीएचडब्ल्यू, वीबीडीएस, डीवीबीडीसीओ, वीडीसीओ सहित मलेरिया एवं फाइलेरिया विभाग के सभी अधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे।

 

हाथी पांव को जड़ से मिटाया नहीं जा सकता है जबकि हाइड्रोसील को किया जा सकता है समाप्त: डॉ एपी चौधरी
नवनियुक्त सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने कहा कि ज़िले में फाइलेरिया (हाथी पांव) या हाइड्रोसील के जितने भी मरीज हैं। उन सभी को जागरूक करने की आवश्यकता है। जब तक वे लोग जागरूक नही होंगे तब तक ज़िले या राज्य से फाइलेरिया या हाइड्रोसील को जड़ से मिटाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि हाथी पांव को जड़ से मिटाया नहीं  जा सकता है जबकि हाइड्रोसील को जड़ से खत्म करने के लिए रेफ़रल अस्पताल या एसडीएच में उसका ऑपरेशन करना निहायत जरूरी है। जीएमसीएच या अन्य अस्पताल जहां पर सर्जरी वाले चिकित्सक हैं। उनलोगो को अलग से जिम्मेदार देते हुए हाइड्रोसील का ऑपरेशन कराना सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही नए मरीजों को जल्द ही नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र लाकर उनका उपचार एवं दवा शुरू करने की जरूरत है।

 

पूर्णिया पूर्व में एक भी हाइड्रोसील के मरीज नही: डॉ आरपी मंडल
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ राजेन्द्र प्रसाद मंडल ने बताया कि विभागीय स्तर पर अभी तक अपने ज़िले में फाइलेरिया मरीजों की संख्या- 6247 है। इसमें फाइलेरिया (हाथी पांव) के 4978 एवं (हाइड्रोसील) के 1269 मरीज़ों को चिन्हित किया गया है।  इसमें बनमनखी- हाथी पांव-403, हाइड्रोसील-268, बी कोठी-में हाथी पांव- 189 व हाइड्रोसील-242, डगरुआ-में हाथी पांव- 325, हाइड्रोसील- 25, पूर्णिया पूर्व में हाथी पांव-390 जबकि हाइड्रोसील के एक भी मरीज नहीं हैं। अमौर- हाथी पांव- 221, हाइड्रोसील- 2, श्रीनगर-हाथी पांव- 205, हाइड्रोसील- 70, धमदाहा- हाथी पांव- 306, हाइड्रोसील- 21, रुपौली- हाथी पांव- 892, हाइड्रोसील-160, कसबा- हाथी पांव- 257, हाइड्रोसील-130, भवानीपुर- हाथी पांव- 508, हाइड्रोसील-154, के नगर-हाथी पांव- 708, हाइड्रोसील- 30, बायसी- हाथी पांव- 144, हाइड्रोसील- 34, बैसा- हाथी पांव-70, हाइड्रोसील- 12, जलालगढ़- हाथी पांव- 360 जबकि हाइड्रोसील-121 मरीज हैं।

 

फाइलेरिया के लक्षण से लेकर बचाव और कारण के बारे में  विस्तृत रूप से की गई चर्चा: डब्ल्यूएचओ
डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ दिलीप कुमार बताया कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन बुखार, बदन में खुजली के अलावा पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द के साथ ही सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के मुख्य लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जैसे सूज जाते हैं। इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है। फाइलेरिया के लक्षण कई सालों तक नजर नहीं आते हैं। फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को विकलांग बनाती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

 

फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों के लिए स्वउपचार के तरीक़े:
-स्वच्छ एवं ताज़े पानी से पैर की अच्छी तरह से सफ़ाई करनी चाहिए।
-मुलायम या हल्के तौलिए से पांव को सुखाना चाहिए।
-हाथी पांव के कारण पैर की अंगुलियों में पड़े दरारें में दवा लगानी  चाहिए।
-पैर को हमेशा ऊपर उठा कर रखना चाहिए।
-सोते समय पैर के नीचे 2 से 3 तकिया लगाना चाहिए।
-पैर के अंगूठे के ऊपर पूरा भार देकर निरंतर अभ्यास करना चाहिए।

 

फाइलेरिया से बचाव:
– फाइलेरिया क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है, इसलिए बेहतर है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। इसके लिए घर के आस-पास एवं अंदर साफ-सफाई रखें।
– पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें। पूरे  बाजू के कपड़े पहनकर रहें।
– सोते वक्त अपने हाथों, पैरों या अन्य खुले भागों पर शुद्ध सरसों या नीम के तेल को लगा लें।
– हाथ या पैर में कही चोट लगी हो या घाव हो तो उसकी पूरी तरह से सफ़ाई करें ।
– साबुन से धोएं और फिर पानी सुखाकर दवाई लगा लें।

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