एक सरकार कानून बनाए, दूसरी समाप्त करे – सुप्रीम कोर्ट

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब सरकार से सवाल किया कि अगर एक पार्टी की सरकार कोई कानून बनाए और उसके बाद बनी दूसरी पार्टी की सरकार उसे खत्म कर दे तो क्या अनिश्चितता पैदा नहीं होगी।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह सवाल पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान किया, जिसमें उसने खालसा यूनिवर्सिटी (रिपिल) एक्ट, 2017 को रद करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब सरकार से पूछा कि अगर एक सरकार किसी विश्वविद्यालय के लिए कानून बनाती है और दूसरी सरकार उसे रद्द कर देती है, तो क्या इससे अनिश्चितता पैदा नहीं होगी। जस्टिस बी.आर.गवाई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने यह सवाल उस याचिका पर सुनवाई पर सुनवाई के दौरान किया, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट ने खालसा विश्वविद्यालय (निरस्त) अधिनियम, 2017 को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।

पीठ ने पंजाब के वकील से पूछा, क्या एक राजनीतिक पार्टी सत्ता में आकर एक कानून बनाती है और फिर जब दूसरी पार्टी सत्ता में आती है तो उसे रद्द कर देत है, इससे कोई अनिश्चितता नहीं होगी? पीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा। खालसा विश्वविद्यालय और खालसा कॉलेज चैरिटेबल सोसाइटी ने हाईकोर्ट के नवंबर 2017 के फैसले को चुनौती दी है।

हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के तहत खालसा विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था और सोसाइटी द्वारा चलाए जा रहे कॉलेजों को विश्वविद्यालय में मिला दिया गया था। इसके बाद 30 मई 2017 को एक अध्यादेश जारी किया गया और खालसा विद्यालय अधिनियम को रद्द कर दिया गया। इसके बाद खालसा विश्वविद्यालय (निरस्त) अधिनियम, 2017 पारित किया गया।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि रद्द अधिनियम मनमाना था और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के सामने समानता) का उल्लंघन हुआ है। पंजाब के वकील ने कहा कि इसमें कुछ भी मनमाना नहीं है। उन्होंने कहा कि 2016 में बनाए गए कानून को 2017 में नई सरकार ने रद्द किया। शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार ने 2016 में खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम बनाया था और कांग्रेस सरकार ने इसे रद्द किया।

पंजाब के वकील ने कहा कि न तो किसी छात्र ने और न ही किसी शिक्षक ने 2017 के अधिनियम को चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि छात्रों के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। पीठ ने टिप्पणी की, यह पूरी तरह से एक कानूनी सवाल है। इसके बाद पीठ ने कहा कि आदेश के लिए मामले को बंद किया जा रहा है।

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