एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन की जरूरत पड़ेगी,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
देश में इस समय ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर काफी चर्चा हो रही है। केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर इस चर्चा को और हवा दे दी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संभव है।
कम से कम पांच संविधान संशोधनों की पड़ेगी जरूरत
दरअसल, अधिकारियों का मानना है कि अगर एक साथ लोकसभा और विधानसभा का चुनाव कराया जाता है तो संविधान में कम से कम पांच संशोधनों की जरूरत पड़ेगी। इसके साथ ही हजारों करोड़ रुपये ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों पर खर्च होंगे। हालांकि, इससे सरकार को बचत होगी।
एक साथ चुनाव कराने से क्या होगा?
अधिकारियों ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से सरकार को काफी बचत होगी। उन्होंने बताया कि इससे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को अपने चुनाव अभियान में काफी बचत होगी। हालांकि, चुनाव के समय अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की भी जरूरत होगी। अधिकारियों ने बताया कि लोकसभा और विधान सभा चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लंबे समय तक लागू रहती है, जिसके विकास कार्यक्रमों पर बुरा असर पड़ता है।
संविधान के किन अनुच्छेदों में करना पड़ेगा संशोधन?
- अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि से संबंधित)
- अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित)
- अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित)
- अनुच्छेद 174 (राज्य विधानसभाओं के विघटन से संबंधित)
- अनुच्छेद 356 (राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित)
राजनीतिक दलों की सहमति होनी जरूरी
वन नेशन, वन इलेक्शन पर सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति भी जरूरी है। इसके अलावा, केंद्र को सभी राज्य सरकारों की सहमति मिलनी भी जरूरी है। इसके लिए अतिरिक्त संख्या में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वीवीपीएटी (पेपर ट्रेल मशीन) की भी आवश्यकता होगी, जिसकी लागत हजारों करोड़ रुपये होगी।
अगर वन नेशन वन इलेक्शन को देश में लागू किया जाता है तो इससे मशीन को हर 15 साल में बदलने की जरूरत नहीं होगी। आमतौर पर एक मशीन का उपयोग केवल 15 साल तक किया जाता है। एक राष्ट्र एक चुनाव के लागू होने से एक मशीन का उपयोग 15 साल में तीन या चार बार किया जा सकेगा।
इन देशों में एक साथ होते हैं चुनाव
कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79वीं रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला था कि दक्षिण अफ्रीका में, राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव एक साथ पांच साल के लिए होते हैं और नगरपालिका चुनाव दो साल बाद होते हैं।
स्वीडन में भी राष्ट्रीय विधायिका (रिक्सडैग), प्रांतीय विधायिका/काउंटी परिषद (लैंडस्टिंग) और स्थानीय निकायों/नगरपालिका विधानसभाओं (कोमुनफुलमकटीज) के चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को होता है। ब्रिटेन में भी संसद अधिनियम, 2011 के तहत एक साथ चुनाव होते हैं।
ओडिशा-केंद्र के चुनाव का दिया उदहारण
उन्होंने ओडिशा के विधानसभा चुनाव का उदहारण दिया, जो लोकसभा के साथ होता है। कहा कि वहीं विधानसभा चुनाव में लोग बीजू जनता दल (बीजद) को वोट देते हैं, वहीं केंद्र में भाजपा और बीजद को दाेनों वोट करते हैं। यह स्वागत योग्य कदम है, इसलिए रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए और फिर देखिए केंद्र सरकार इसपर कैसे आगे बढ़ती है, उस रिपोर्ट पर निर्भर करेगा।
वहीं, एक पत्रकार ने जब पूछा कि केंद्र सरकार जो विशेष सत्र ला रही है तो क्या उसमें ‘एक देश-एक चुनाव’ का बिल लाया जाएगा या इस पर चर्चा होगी?
इस पर सुशील मोदी ने कहा कि गुरुवार को केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने एक्स हैंडल से ट्वीट कर जानकारी दी कि अमृत काल में पांच दिवसीय विशेष सत्र आहूत किया जा रहा है।एजेंडा क्या होगा इसके बारे में उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है। इस बारे में कयास लगाने की जरूरत नहीं है, सत्र का जो भी उद्देश्य होगा वो जल्द पता चल जाएगा।
वहीं, उन्होंने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर कहा कि अभी तो इसपर कमेटी बनी है, रिपोर्ट आए बिना तो बिल आने की दूर-दूर तक गुंजाइश नहीं है। उन्होंने अंत में दोहराया कि विशेष सत्र में क्या होगा इस बारे में उन्हें कोई संकेत नहीं मिला है।
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