संयम और संवाद से ही बचेगा विश्व जंग की आग में झुलसने से!
रूस यूक्रेन जंग से तीसरे विश्वयुद्ध की आहट सुनाई देने लगी थी
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र संघ के खामियों को आधार बना कर बड़े देश कर रहे मनमानी
✍️ गणेश दत्त पाठक, स्वतंत्र टिप्पणीकार:
प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका ने मानवता को बेहद दर्दनाक अनुभव दिए थे। बेचैन मानवता ने संयुक्त राष्ट्र संघ के तले विश्व में सुकून और शांति का ख्वाब देखा था। आज तकरीबन हर देश किसी न किसी देश के साथ विवाद में उलझा हुआ हैं। यदि सभी राष्ट्र एक दूसरे से उलझ पड़े तो फिर जंग का सिलसिला कभी समाप्त नहीं होने वाला है। मानवता कराहती, बिलखती ही रह जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास विवाद की स्थिति में असरकारी साबित नहीं हो रहे। कारण यह है कि समय के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ में आवश्यक सुधार नहीं किए जा रहे। साथ ही, सदस्य राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ की कुछ खामियों का अपने सामरिक उद्देश्यों को पूरा करने के संदर्भ में उपयोग कर रहे है। यूक्रेन रूस विवाद में यही तथ्य उभरकर सामने आ रहा है। विश्व में यदि शांति और सुकून कायम रखना है तो संयम और संवाद की ओपरंपरा का पालन सभी राष्ट्रों को करना ही होगा। अन्यथा युद्ध की विभीषिका में निर्दोष मानवता झुलसती ही रहेगी।
सभी के अपने मजबूत तर्क फिर भी जंग जारी
रूस यूक्रेन विवाद के संदर्भ में ही देखे तो दोनों राष्ट्र अपनी अपनी जगह सही है। उनके अपने अपने तर्क भी बेहद मजबूत है। अंतराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रतिक्रियाओं का दायरा भी अपनी जगह सही है। लेकिन जंग जारी है। प्रतिबंधों के साए तले जहां रूस को भी आर्थिक परेशानियां झेलनी पड़ रही है। वहीं यूक्रेन जंग में तबाह हो रहा है।
विवाद पर मात्र दो देश आक्रामक, सभी राष्ट्र आ गए कठिनाई में
पूरा विश्व जो अभी कोरोना महामारी के आघात से उबर ही रहा था, इस जंग ने फिर एक बड़ी चुनौती पेश कर दी। नौबत तो तृतीय विश्वयुद्ध तक की आ गई थी। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में बढ़ोतरी, विश्व स्तरीय आपूर्ति व्यवस्था के नकारात्मक तौर पर प्रभावित होने से सभी राष्ट्रों के लिए कठिन परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। वहीं विकासशील और अविकसित राष्ट्रों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जबकि एक विवाद के मसले पर दो देश रूस और यूक्रेन ही आक्रामक हुए थे।
सभी विवादों की नए सिरे से लिखी जा रही पटकथा
विश्व की सभी विवादित भूभागों के लिए नए सिरे से पटकथाएं लिखी जा रही है। जैसे चीन की नजर ताइवान और हांगकांग पर जा टिकी है। ऐसे में यह भी सही है कि यूक्रेन एक स्वतंत्र राष्ट्र है उसकी संप्रभुता की रक्षा जरूरी है। वहीं रूस अपने सीमा पर तक नाटो के विस्तार को स्वीकार कैसे कर सकता है? इससे उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। अमेरिका भी अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी को परेशानी में डालने की लालच से खुद को कैसे बचा सकता है? रूस की बरबादी और तबाही अमेरिका के दीर्घकालीन राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं। इसलिए हर राष्ट्र के अपने हित, अपनी मजबूरियां होती है। लेकिन अगर सिर्फ जंग में ही उलझे रहे तो भला ये राष्ट्र अपने नागरिकों की बेहतरी के लिए कब प्रयास करेंगे?
मानवता के लिए बुनियादी चुनौतियां हैं बेशुमार
मानवता अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, मानवाधिकारों की बुनियादी जरूरतों से ही जूझ रही है। जंग समस्याओं को चरम पर पहुंचा देता है। पर क्या यह संभव नहीं हो सकता है कि विवादित मुद्दों पर संबंधित राष्ट्र थोड़ा संयम बरते और संवाद की परंपरा को आगे बढ़ाएं। कम से कम ऐसा करने से दर्दनाक दर्द झेल रहे संबंधित राष्ट्रों के नागरिकों को तो कुछ राहत मिल पायेगी।
संयुक्त राष्ट्र संघ है संवाद का बेहतर प्लेटफार्म पर कमियां भी
निश्चित तौर पर संवाद कायम करने के लिए एक प्रतिष्ठित प्लेटफार्म का होना एक महत्वपूर्ण अनिवार्यता है। संयुक्त राष्ट्र का एक स्तरीय प्लेटफार्म अवश्य उपलब्ध है लेकिन समय के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के संरचनात्मक, प्रक्रियात्मक और व्यवहारतमक कलेवर में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद और अनुच्छेद 7 के संदर्भ में सुधार आवश्यक प्रतीत हो रहे हैं ताकि संयुक्त राष्ट्र के लोकतांत्रिक मर्यादा को कायम रखा जा सके। वर्तमान भू राजनीतिक संदर्भ में सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी बेहद अनिवार्य दिखाई दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुच्छेद 7, जिसमें किसी मान्यताप्राप्त राष्ट्र के आग्रह पर सैन्य हस्तक्षेप का प्रावधान है के दुरुपयोग के कई मामले अमेरिका, रूस के संदर्भ में देखे जा चुके हैं, जिससे विश्व स्तर पर जंग का खतरा मंडराने लगता है। इस अनुच्छेद 7 के प्रावधानों को और भी युक्तियुक्त बनाने की आवश्यकता है।
जैसे हालिया रूस और यूक्रेन विवाद में देखा जाए तो मामले की जड़ यूक्रेन के नाटो के प्रति झुकाव ही है। यूक्रेन के संप्रभुता और रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संवाद के माध्यम से एक बीच का रास्ता निकाला जा सकता था। साथ ही, यदि संयम पर अमल किया जाता तो न तो रूस को इतनी परेशानी झेलनी पड़ती और न ही यूक्रेन को तबाही। मानवता का हित विश्व की शांति और सुकून में ही हैं। विश्व की शांति और सुकून का आधार संयम और संवाद में ही है। काश सभी राष्ट्र इस भाव को समझ पाते!
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