हर्ष की जुबां पर सिर्फ एक ही बात…किसका मनाएं मातम किसके लिए रोएं
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
किसका मनाएं मातम किसके लिए रोएं। दर्शनपुरवा के हर्ष की जुबां पर आजकल यही बात है…। पांच दिन में परिवार के चार लोगों की मौत पर वह विश्वास ही नहीं कर पा रहे हैं। बेशक उन पर बीती त्रासदी को महामारी का नाम दिया जा सकता है, लेकिन चिकित्सीय व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है। आरटीपीसीआर जांच में संक्रमण की पुष्टि न होने के चलते संक्रमण फैलता गया और एक के बाद एक चार लोग मौत के मुंह में समा गए।
कोरोना संक्रमण ने हर किसी को अपनों की चोट दी है, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिनका परिवार ही उजाड़ दिया है। दर्शनपुरवा के हर्ष की कुछ ऐसी ही दर्द भरी कहानी है। अप्रैल माह के शुरुआत में पिता सुरेश कुमार की आंखों का सफल ऑपरेशन हुआ था। किडनी की बीमारी के चलते डायलिसिस भी उसी दौरान कराई गई। शारदा नगर स्थित अस्पताल में तीन दिन भर्ती रहने के बाद सकुशल घर ले आए। इसी दौरान उन्हेंं बुखार आ गया। चूंकि कोविड चरम पर था इसलिए उनका एंटीजन और आरटीपीसीआर टेस्ट कराया गया। दोनों रिपोर्ट नेगेटिव आईं। स्वजन आश्वस्त हो गए। इसके बाद हर्ष और फिर पिता की देखभाल करने वाली भाभी को बुखार आया। हर्ष ठीक हो गए लेकिन भाभी की हालत बिगड़ती चली गई। 23 अप्रैल को उन्हेंं स्वरूप नगर स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां दूसरे दिन 24 अप्रैल को उनकी जान चली गई।
इधर, सुरेश के पिता की हालत भी बिगड़ती चली गई। टेस्ट में उन्हेंं कोविड नहीं निकला लेकिन जब हालत नहीं सुधरी तो सीटी स्कैन कराया गया जिसमें फेफड़ों में संक्रमण आया। परिवार के लिए मुश्किल घड़ी थी लेकिन सभी ने हिम्मत बांधे रखी। अस्पताल में इलाज के दौरान 26 अप्रैल को वह भी नहीं रहे। बीमारी के दौरान अन्य रिश्तेदार भी संपर्क में आए थे। इसका असर दूसरे दिन ही दिखा। हर्ष बताते हैं कि 26 अप्रैल को फूफा की हालत बिगडऩे पर हैलट में भर्ती कराया जहां 27 अप्रैल की रात उनका भी निधन हो गया। इसी कोविड संक्रमण की चपेट में आयी उनकी दूसरी बुआ को भी तीन दिन से बुखार आ रहा था। सांस लेने में दिक्कत होने के चलते 28 तारीख को वह भी नहीं रहीं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस परिवार में महज पांच दिन में चार अपने साथ छोड़ गए हों उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी। कुछ ऐसा ही हर्ष के साथ है। उनकी जुबां से लफ्ज कम आंखों से आंसू ज्यादा बह रहे हैं…।
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