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राष्ट्र तत्व के प्रति श्रद्धाभाव ही हो सकती है सरदार पटेल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक - श्रीनारद मीडिया

राष्ट्र तत्व के प्रति श्रद्धाभाव ही हो सकती है सरदार पटेल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक

राष्ट्र तत्व के प्रति श्रद्धाभाव ही हो सकती है सरदार पटेल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि: गणेश दत्त पाठक

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राष्ट्रीय एकता दिवस यानी सरदार बल्लभ भाई पटेल की जयंती पर विशेष आलेख

✍️  आलेख –  गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

किसी भी देश की सशक्तता का आधार उसके एकता और अखंडता में निहित होता है। किसी भी राष्ट्र के संचेतना का आधार उसके सांस्कृतिक जागरण का स्तर होता है। जब बात देश के एकता और अखंडता की हो, जब बात राष्ट्र तत्व की हो, जब बात सांस्कृतिक जागरण की हो तो मानस पटल पर एक ही नाम बड़ी तेजी से उभरता है, और वह नाम है सरदार वल्लभ झावर भाई पटेल का, कोई उन्हें लौह पुरुष कहता है तो कोई उन्हें भारत का बिस्मार्क मानता है। लेकिन आज जब पूरा देश उनकी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है तो एक सवाल जरूर उठता है कि सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि क्या हो सकती है? …और शायद इसका जवाब मात्र यह हो सकता है कि राष्ट्र तत्व और भारत की बहुलतावादी संस्कृति के प्रति श्रद्धाभाव ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।

जब फिरंगी हुकूमत तले भारत में मानवता पीड़ित होकर कराह रही थी। तब सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बारदोली और खेड़ा के सफल आंदोलनों के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत को बड़ी चुनौती पेश की। 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन की अध्यक्षता कर पटेल ने पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य के प्रति जबरदस्त हुंकार भी भरी थी तो मूलभूत राजनीतिक अधिकारों से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर तथा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम को अपना कर भारत राष्ट्र के बुनियादी सोच को धरातल प्रदान किया।

जब देश स्वतंत्र हुआ तो भारी संख्या में आए शरणार्थियों की समस्या ने विकट स्थिति उत्पन्न की वहीं देश में मौजूद 642 रियासतें भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बड़ी चुनौती बनते दिख रहे थे। लेकिन दृढ़ इच्छा के धनी, दृढ़ कारवाई की क्षमता से लैस, त्वरित निर्णय लेने में दक्ष, राष्ट्रीय गौरव की भावना से युक्त, वाकपटुता में कुशल लौह पुरुष ने बेहत संयमित और नियोजित तरीके से इन समस्याओं का समाधान किया।

आज जबकि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि स्वयं बोध के प्रयास हो, स्वयं बोध के उपरांत शत्रु बोध परम् आवश्यक होता है, शत्रु बोध होने पर समस्या बोध में आसानी होती है। जब समस्या बोध होता है तभी समाधान बोध संभव हो पाता है। और इस पूरी प्रक्रिया में समय बोध सबसे आवश्यक तत्व बन जाता है। सरदार पटेल ने इस फार्मूले के आधार पर देश की अखंडता की मजबूत बुनियाद रखी।

भारतीय संविधान के समावेशी और बहुलतावादी कलेवर को संजोने में सरदार पटेल ने बड़ी भूमिका अदा की। भारतीय संविधान सभा में मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यकों जनजातियों से संबंधी सलाहकार समितियों की अध्यक्षता उन्होंने की। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव मना रहे भारत देश में हमारे संविधान ने विकट परिस्थितियों में अपनी प्रासंगिकता अगर साबित की है तो उसमें सरदार पटेल का अहम योगदान रहा है।

आज जबकि भारत गणराज्य स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना चुका है तो देश में अखिल भारतीय सेवाओं ने प्रशासनिक ढांचे का मेरुदंड अपने को साबित किया है। भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा मसलन अखिल भारतीय सेवाओं का जनक सरदार पटेल को ही माना जाता है। सरदार पटेल का इन अखिल भारतीय सेवाओं के प्रति अटल विश्वास था वे अकसर कहा करते थे कि यदि अखिल भारतीय सेवाओं को हटा दें तो मुझे पूरे देश में अराजकता की तस्वीर के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता है। सरदार पटेल द्वारा सृजित ये अखिल भारतीय सेवाएं समय के साथ अपनी प्रासंगिकता को साबित करती दिखाई देती है।

गुजरात में हालिया निर्मित स्टेच्यू ऑफ यूनिटी नामक 240 मीटर सरदार पटेल की प्रतिमा यहीं उद्घोष करती दिखाई देती है कि हम सभी राष्ट्र तत्व के प्रति श्रद्धा रखें और राष्ट्र के उन्नति के प्रति हरसंभव प्रयास करते रहें। बेहद छोटे छोटे प्रयास मसलन सकारात्मक रहना, प्रसन्न रहना, सांस्कृतिक जागरण के प्रति संवेदनशीलता, अपने कर्तव्य के प्रति सच्ची निष्ठा, राष्ट्र के प्रति अकाट्य प्रेम आदि भी सरदार पटेल के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने के माध्यम बन सकते हैं।

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