ऑपरेशन ब्लू स्टार: कौन था भिंडरांवाले? ‘चरमपंथी’ या ‘शहीद’!
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सेना की गोलियों से 6 जून को जरनैल सिंह भिंडरांवाले (Jarnail Singh Bhindranwale) की मौत हो चुकी थी. 7 जून को उसका अंतिम संस्कार किया गया. लेकिन, कई दिनों तक चर्चा रही कि जरनैल सिंह भिंडरांवाले जिंदा है. पाकिस्तान (Pakistan) ने टीवी पर घोषणा करवा दी कि भिंडरांवाले हमारे पास हैं. 30 जून को भिंडरांवाले को पाकिस्तान में टेलीविजन पर दिखाया जायेगा. 6 जून को वह सुरक्षित निकल गया और पाकिस्तान पहुंच गया.
30 जून को टीवी पर टकटकी लगाये थे लोग
पंजाब के गांवों में लोग 30 जून का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उन्हें उम्मीद थी कि उनका संत भिंडरेवांले जिंदा है. 30 जून को टीवी पर लोग उसे साक्षात देख पायेंगे. यहां तक कि सरकारी अधिकारियों में भी इस बात की जिज्ञासा थी कि क्या सचमुच भिंडरांवाले जीवित है. हालांकि, पाकिस्तान कभी उसे दुनिया के सामने नहीं ला पाया. उसके द्वारा फैलायी जा रही अफवाह अफवाह ही रह गयी.
कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाला?
बहरहाल, इस बात पर विमर्श जरूरी है कि जरनैल सिंह भिंडरांवाला कौन था? संत या चरमपंथी? भिंडरांवाला के समर्थक उसे संत मानते थे, तो उसकी विचारधारा से सहमति नहीं रखने वाले उसे चरमपंथी की संज्ञा देते हैं. हालांकि, कहा जाता है कि जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने कभी भी अलग खालिस्तान की बात नहीं की. हां, उसने स्वायत्तता देने की मांग जरूर की.
बहुत कम उम्र में दमदमी टकसाल का अध्यक्ष बना
जरनैल सिंह, जो संत था, उसके नाम के साथ भिंडरांवाले तब जुड़ा, जब वह बहुत कम उम्र में सिख धर्म और ग्रंथों के बारे में शिक्षा देने वाली संस्था-दमदमी टकसाल का अध्यक्ष चुन लिया गया. उसने जो रास्ता चुना, उसे भारत सरकार को चुनौती के रूप में देखा गया. इसके लिए उसे अपनी जान भी गंवानी पड़ी. लेकिन, भिंडरांवाले का व्यक्तित्व और सोच आज भी जिंदा है.
स्वर्ण मंदिर परिसर में भिंडरांवाले के समर्थन में लगे नारे
यही वजह है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38वीं बरसी पर स्वर्ण मंदिर परिसर में भिंडरांवाले के समर्थन में नारेबाजी हुई. रिपोर्ट्स में बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में जिन दो नेताओं की तस्वीरें सबसे ज्यादा बिकीं हैं, वो हैं शहीद भगत सिंह और संत भिंडरांवाले. हालांकि, इन दोनों के व्यक्तित्व की कोई तुलना हो ही नहीं सकती.
शहीद या चरमपंथी
जरनैल सिंह भिंडरांवाले को चाहने वाले जितने लोग हैं, उसकी खिलाफत करने वाले भी उतने ही हैं या उससे कहीं ज्यादा लोग हैं. यानी भिंडरांवाले से नफरत करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है. किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि महज 30 साल की उम्र में दमदमी टकसाल के अध्यक्ष का पद ग्रहण करने वाला भिंडरांवाले एक दिन ऐसा कुछ करेगा कि स्वर्ण मंदिर में सेना को दाखिल होना पड़ेगा. पंजाब में ऐसी उथल-पुथल मच जायेगी.
फिर खालिस्तानी चरमपंथ से दो-चार हो रहा भारत
पंजाब में 80 के दशक में भिंडरांवाले ने जिस खालिस्तान के बीज बोये, उसका परिणाम पाकिस्तान के लोगों को लंबे अरसे तक भुगतना पड़ा. हजारों निर्दोष लोगों की जानें गयीं. एक बार फिर भारत खालिस्तानी चरमपंथ से दो-चार हो रहा है. इसलिए बहुत जरूरी है कि पंजाब में चरमपंथ का स्रोत माने जाने वाले भिंडरांवाले की इस मामले में पूरी भूमिका का सही-सही विश्लेषण किया जाये.
निरंकारियों से सीधा टकराव
बता दें कि वर्ष 1977 में जब भिंडरांवाला दमदमी टकसाल का प्रमुख नियुक्त हुआ, तो उसे बधाई देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरचरण सिंह तोहड़ा पहुंचे थे. भिंडरांवाले के दमदमी टकसाल का अध्यक्ष बनते समय दमदमी टकसाल का सीधा टकराव निरंकारियों से हो चुका था.
1978 की खूनी वैशाखी
वर्ष 1978 की खूनी वैशाखी की घटना के बाद पंजाब जैसे हमेशा के लिए बदल गया. दोबारा पहले जैसा कभी नहीं हो पाया. भिंडरांवाले की पहचान तब और बढ़ी, जब निरंकारी संप्रदाय के अध्यक्ष गुरुबचन सिंह और बाद में हिंद समाचार-पंजाब केसरी अखबार समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गयी. लाला जगत नारायण निरंकारी संत का समर्थन करते थे.
भिंडरांवाले की खूबियां
भिंडरांवाले जब दमदमी टकसाल से स्वर्ण मंदिर परिसर में पहुंचा, तो उसके पास लोगों का तांता लगने लगा. स्वर्ण मंदिर से भिंडरांवाले तभी निकला, जब उसका हिंसात्मक अंत हो गया. उसे मानने वालों में सिख समुदाय के लोगों के अलावा सेना के रिटायर्ड जनरल, नौकरशाह, शिक्षाविद् और आम लोग शामिल थे. भिंडरांवाले ने सिख समुदाय से सीधा संपर्क किया था. इसलिए उसकी शख्सीयत करिश्माई बन गयी थी.
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