हमारी सेना ने समुद्री डाकुओं से पोत को सुरक्षित रिहा कराए है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह एक कीर्तिमान की तरह है कि हमारी नौसेना 24 घंटे के भीतर दो जहाजों को समुद्री डाकुओं से सुरक्षित रिहा कराए। दोनों जहाजों पर ईरान के झंडे थे। दूसरे जहाज पर तो 19 पाकिस्तानी नागरिक भी सवार थे। हमने यह सफलता कूटनीति और बल-प्रयोग से हासिल की, जो बताता है कि समंदर में अब हम कितने सक्षम हो गए हैं।
हालांकि, समुद्र में भारतीय नौसेना कभी कमजोर नहीं रही है। 1971 की जंग भला कौन भूल सकेगा, जिसमें बांग्लादेश का निर्माण किया गया था। उस युद्ध में भारतीय नौसेना ने काफी उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। दरअसल, पाकिस्तान जब हमें लगातार परेशान करता रहा, तो जनरल मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत की जल, थल और वायु सेना ने तय किया कि 3-4 दिसंबर की रात पाकिस्तान पर चौतरफा हमला किया जाएगा।
यह माना गया कि अगर हम पूर्व में कुछ करेंगे, तो पाकिस्तान उसका बदला पश्चिम में लेगा, जो बाद में सही साबित भी हुआ। इसीलिए हमारी रणनीति बनी कि पाकिस्तान के सबसे बड़े बंदरगाह कराची को ध्वस्त कर दिया जाए, क्योंकि वहीं से उसकी नौसेना का संचालन होता था और वह उसका सबसे बड़ा व्यावसायिक बंदरगाह भी था। साथ ही, पूर्वी पाकिस्तान के बंदरगाह को भी नष्ट करने की योजना बनी, ताकि यहां उसके सैनिकों को घेर लिया जाए।
कराची पर हमले की दुश्वारियां थीं। हमारे मिसाइल बोट छोटे थे और वे ज्यादा देर तक समंदर में नहीं रह सकते थे। उन पर तैनात मिसाइलें एक नियत दूरी से ही कराची बंदरगाह को निशाना बना सकती थीं। लिहाजा, दोतरफा योजना बनी। चूंकि ये मिसाइल बोट बॉम्बे (अब मुंबई) में तैनात थे, तो बड़े जहाज उनको खींचकर कुछ दूर ले आएं, ताकि उनका तेल कम उपयोग हो। और, दूसरी योजना के तहत कुछ मिसाइल बोट को पोरबंदर ले आया जाए, जहां से ईंधन लेकर वे कराची की ओर कूच करें। 3-4 दिसंबर की रात हमारे चार मिसाइल बोट इसी योजना के तहत पोरबंदर और बॉम्बे से निकले।
सभी पर चार-चार मिसाइलें थीं। ये सभी जब कराची से नियत दूरी पर पहुंचे, तो उन्होंने ताबड़तोड़ हमला बोल दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि पाकिस्तान को सोचने का वक्त ही नहीं मिला। इससे कराची बंदरगाह पर मौजूद तेल के भंडार में आग लग गई और वहां मौजूद तमाम व्यावसायिक व जंगी पोत नष्ट हो गए। भारतीय नौसेना की इसी सफलता के कारण 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता है।
उधर, पूर्वी तट पर विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को तैनात किया गया, जिस पर सी हॉक जैसे लड़ाकू विमान तैनात थे। जब देखा गया कि पूर्वी पाकिस्तान के बंदरगाहों पर हलचल तेज हो गई है, तो इस पोत पर तैनात विमानों ने वहां जमकर बमबारी की, जिससे पाकिस्तानी सैनिकों को हौसला टूट गया। वे या तो यहां से भाग निकले या उनकी जरूरतों को पूरा करने पश्चिमी पाकिस्तान से कोई मदद न आ सकी। इसने पाकिस्तानी कमांडर और 93,000 सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि, इससे पहले की एक घटना काफी दिलचस्प है।
पाकिस्तान ने अपनी पनडुब्बी गाजी को पूर्वी तट पर तैनात किया था, ताकि वह विक्रांत को डुबो सके। मगर गाजी को छकाने के लिए भारतीय नौसेना ने आईएनएस राजपूत का इस्तेमाल किया, जो समंदर में सुरक्षा-कार्यों में तैनात था। वह संचार माध्यमों से इस तरह जवाब देता रहा, मानो वही विक्रांत हो। इस कारण गाजी विशाखापट्टनम के आसपास ही भटकता रहा, और बाद में हमारे सैनिकों द्वारा नष्ट कर दिया गया।
यहां एक और घटना का जिक्र जरूरी है। पश्चिमी तट पर हमारा युद्धपोत आईएनएस खुखरी पाकिस्तानी हमले का शिकार हो गया। इस जहाज के कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला अपने सैनिकों का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुए और वीरगति को प्राप्त हुए। नेतृत्व की इस भूमिका के लिए उनको मरणोपरांत महावीर चक्र से भी सम्मानित किया गया। वास्तव में, नेतृत्व की यह भूमिका भारतीय नौसैनिकों के खून में है। हमारे जहाज विशाल समंदर में अनवरत नेतृत्व की भूमिका में होते हैं। इसकी तस्दीक वहां के घटनाक्रमों से भी होती है।
समुद्र में भारतीय नौसेना दो तरह के खतरों का सामना करती है। एक, जब दुश्मन देश से लड़ाई हो, यानी पारंपरिक चुनौती। और दूसरा, शांति-काल के समय समुद्री डाकुओं, मानव व्यापार करने वालों, तस्करों आदि से मिलने वाली चुनौतियों का। आपदा प्रबंधन के कामों में तो हम काफी आगे माने जाते हैं। यह सब अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत किया जाता है।
हिंद महासागर में ही हम सभी जहाजों की सुरक्षित आवाजाही में इसलिए मदद करना अपना दायित्व व कर्तव्य मानते हैं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के तहत निर्बाध आवाजाही का हक सभी जहाजों को हासिल है। हम 2008 से लाल सागर में मौजूद हैं। भारतीय नौसेना इसलिए भी यहां नेतृत्व की भूमिका में होती है, क्योंकि हिंद महासागर के देशों में हम सबसे ताकतवर हैं। अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश तो यहां बाहरी माने जाते हैं। हां, अब चूंकि भू-राजनीतिक बदलाव के कारण शांतिकाल की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं, इसलिए हमेशा मददगार रही भारतीय नौसेना की भूमिका भी व्यापक होती जा रही है।
भारतीय नौसेना कूटनीतिक भूमिका भी खूब निभाती है। जिस देश से हमारे संबंध हैं, हम उनके साथ समुद्री सुरक्षा संबंधी समझौता करते हैं। इसके तहत द्विपक्षीय अभ्यास भी किए जाते हैं, ताकि एक-दूसरे को समझ सकें और वक्त आने पर एक-दूसरे की मदद कर सकें। इसीलिए लाल सागर में अमेरिका और ब्रिटेन के युद्धपोत मुस्तैद रहते हैं, और जब व्यावसायिक जहाज यहां से आगे बढ़ते हैं, तो भारतीय नौसेना उनकी सुरक्षा करती है। हम समंदर में विशेष अभियान भी चलाते हैं। हमारे कमांडर काफी दक्ष माने जाते हैं। हमने कई खुफिया अभियानों को भी अंजाम दिया है।
वास्तव में, 3,000 किलोमीटर तक फैले हिंद महासागर में कोई एक देश सबको सुरक्षा नहीं दे सकता। चूंकि यहां से हर साल करीब 1.9 लाख व्यावसायिक जहाज गुजरते हैं, इसलिए यहां की चुनौतियों से पार पाने के लिए तमाम देश एक साथ आते हैं। अच्छी बात है कि भारतीय नौसेना की भूमिका लगातार व्यापक होती जा रही है। इससे हम स्वाभाविक ही उन शक्तिशाली देशों की कतार में खड़े हो जाते हैं, जो अपनी सुरक्षा के साथ-साथ अन्य देशों की रक्षा में भी मुस्तैद हैं। यह समंदर में हमारे बढ़ते ओहदे का संकेत है।
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