रिल्स के चस्के में खतरे से खेल रहे हमारे हमारे सीवान के युवा भी!

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सोशल मीडिया पर सनसनी की ख्वाहिश और धन कमाने की लालसा पड़ रही भारी, परिवार को होना होगा सचेत, प्रशासन को बरतना होगी सख्ती

✍️ डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान में किसी भी नगर के हाईवे से गुजरते समय कुछ युवा आपको ऐसे दिखाई दे सकते हैं जो तेज रफ्तार बाइक से जाते हुए रिल्स बनाते हुए दिख जाएंगे। कुछ छतों की टंकी पर चढ़कर रिल्स बनाते हुए चोटग्रस्त हो रहे हैं। दुर्घटनाओं में कई युवा असमय काल के गाल में समाते भी जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर सनसनी बनने की ख्वाहिश ऐसी बन जा रही है कि जिंदगी भी दांव पर लग जा रही है। मासूम तो असमय अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले रहे हैं और ताजिंदगी रोना पड़ रहा है मां बाप को।

रिल्स बनाने के दौरान युवाओं के मौत की खबरें देश दुनिया से आती रह रही है। लेकिन इस तरफ ध्यान लोग नहीं दे रहे हैं। इंदौर, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी इस तरह की घटनाएं आम हो चुकी हैं। कभी पहाड़ी पर, कभी रेलवे ट्रैक पर, कभी कमरे में, कभी हाईवे पर रिल्स बनाते समय युवा हादसे के नित प्रतिदिन शिकार हो रहे हैं। ये युवा सिर्फ अपने लिए ही खतरा नहीं उत्पन्न कर रहे हैं अपितु सड़कों पर चलनेवाले निर्दोष राहगीरों के लिए भी खतरा बन जा रहे हैं। सड़कों, पुलों, पर्यटक स्थलों पर जाना इन रिल्स बनानेवालों के कारण खतरे से खाली नहीं रहा है।

युवाओं का उद्देश्य रील्स बनाकर इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब आदि पर अपलोड कर जल्दी लोकप्रियता प्राप्त करना और धन कमाना भी रह रहा है। आज के सोशल मीडिया के दौर में फटाफट शोहरत पाने की आकांक्षा सभी युवा रख रहे हैं। इसी कारण रिल्स बनाने की घटनाएं बढ़ती जा रही है। ऑनलाइन स्टडी का क्रेज बढ़ने के कारण पैरेंट्स भी बच्चों को मोबाइल फोन मुहैया तो करा दे रहे हैं लेकिन उनकी हरकतों के प्रति बेपरवाह और उदासीन भी हो जा रहे हैं। बच्चे पढ़ाई के दौरान रिल्स देख रहे हैं और वैसे ही सनसनी मचानेवाले रिल्स बनाने की ख्वाहिश भी रख रहे हैं।

कुछ मनोचिकित्सक रिल्स बनाने की आदत को मनोविकार भी मान रहे हैं और उनका मानना है कि यदि समय रहते इसे रोकने के प्रयास परिवार और समाज के स्तर पर नहीं हुए तो दूरगामी परिणाम बेहद घातक होंगे क्योंकि अभी तो 4 जी का दौर चल रहा है और अब 5 जी का दौर आनेवाला है।

सामान्यतया देखा जा रहा हैं कि उम्रदराज या वर्किंग लोग तो नहीं लेकिन युवा वर्ग रिल्स बनाने को लेकर विशेष उत्साहित रह रहा है। मनोरोग विशेषज्ञ आम तौर पर स्वीकार करते दिख रहे हैं कि रिल्स बनाना एक लत है। रिल्स बनाना या अलग अलग पोजिशन में पोज बनाना सेल्फ ऑब्सेसिव डिसऑर्डर की श्रेणी में आता है। जिसे मेडिकल साइंस में सेल्फाइटिस भी कहा जाता है।

सीवान के मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज कुमार गुप्ता बताते हैं कि रिल्स बनाना एक तरह का हार्मोनल असंतुलन का उदाहरण भी है जिसमें व्यक्ति खुद में इतना खो जाता है कि उसे घर परिवार या अन्य किसी भावना की सुध नहीं रह जाती है। ऐसे में जब युवा रिल्स बनाते हैं तो न तो परवाह उन्हें खुद की रहती है और न ही परिवार की या अन्य किसी तथ्य की। ऐसे में रिल्स बनाने की आदत एक खतरनाक लत है जिससे छुटकारा पाना होगा।

रिल्स बनाने से रोकने में माता पिता की सख्ती भी खतरनाक साबित हो रही है। राजस्थान के पाली में जब एक नवयुवक को उसके पिता ने रिल्स बनाने से रोकने के लिए सख्ती बरती और उससे मोबाइल छीन लिया तो बच्चे ने आत्महत्या कर ली। ऐसे में इस संदर्भ में बेहद सावधानीपूर्वक प्रयास की आवश्यकता है। निश्चित तौर पर बच्चों को रिल्स बनाने से रोकने में परिवार और माता पिता की बेहद अहम भूमिका है।

मनोचिकित्सक भी मान रहे हैं कि इस संदर्भ में काउंसिलिंग की भूमिका का कोई प्रभावी असर भी नहीं पड़ रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि माता पिता पहले तो बच्चों से संवाद कायम करें और उनके प्रतिदिन के मोबाइल अनुभवों के बारे में जानकारी हासिल करें। रिल्स बनाने के दौरान हो रही दुर्घटनाओं के बारे में उन्हें बताया जाए और सचेत किया जाए।

मनोचिकित्सक डॉक्टर पंकज कुमार गुप्ता बताते हैं कि बच्चों और युवाओं के स्क्रीन टाइम को घटाने के हरसंभव उपाय किए जाएं। उन्हें मोबाइल बहुत आवश्यक होने पर ही दिया जाए। बच्चों को आउटडोर एक्टिविटी में व्यस्त रखा जाय। उन्हें आर्ट और क्राफ्ट, संगीत, नृत्य आदि सृजनात्मक विधाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाय। डॉक्टर गुप्ता का कहना है कि बच्चों के साथ नियमित स्तर पर पारिवारिक संवाद इस संदर्भ में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

आज के ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में बच्चों को इंटरनेट और मोबाइल से दूर रखना असम्भव है लेकिन उन्हें समझाना बार बार समझाना तो असंभव बिल्कुल नहीं है। स्कूल कॉलेज के स्तर पर सामाजिक संगठनों द्वारा जागरूकता अभियान भी इस संदर्भ में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।

इस संबंध में सबसे बड़ी भूमिका परिवार को ही निभानी है। उन्हें अपने बच्चों और युवाओं के हरकतों पर ध्यान रखना चाहिए और उन्हें इसके खतरों के बारे में बार बताना चाहिए। आवश्यकता इस संदर्भ में प्रशासन द्वारा सख्ती बरतने की भी है। सामाजिक, शैक्षणिक और सामुदायिक संगठन नियमित आधार पर यदि जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करें तो इस संदर्भ में काफी अच्छी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। समन्वित और सार्थक प्रयासों की आवश्यकता सड़क पर सुरक्षित सफर में हमेशा बनी रहती है।

युवाओं द्वारा रिल्स बनाने की लत का शिकार हो जाना एक बड़ा खतरा है। इसे समय रहते रोकने के लिए सार्थक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है। सरकार, सामाजिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों के स्तर पर समन्वित प्रयास कारगर भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन अपने लाडलों को सुरक्षित रखने की पहल माता पिता और परिवार के स्तर पर ही प्रभावी हो सकती है। स्क्रीन टाइम को घटाने के लिए समन्वित प्रयास भी सकारात्मक परिणाम दे सकते हैं।

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