Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं प्रवासी भारतीय,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं प्रवासी भारतीय,कैसे?

पूरी दुनिया में अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं प्रवासी भारतीय,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

इंदौर में संपन्न हुआ 17वां प्रवासी भारतीय सम्मेलन भारत के विश्व-शक्ति बनने का प्रतीक है, क्योंकि यह उन लगभग 5 करोड़ भारतीय मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है, जो सारी दुनिया के देशों में बस गए हैं। इस मामले में दुनिया का एक भी देश ऐसा नहीं है, जो भारत का मुकाबला कर सके। भारत के प्रवासियों की संख्या दुनिया में सबसे बड़ी है।

मैक्सिको, रूस और चीन के लोग भी बड़ी संख्या में विदेशों में जाकर बस गए हैं लेकिन उनमें और भारतीयों में बड़ा अंतर है। भारत के लोग अपनी सरकारों से तंग होकर विदेश नहीं भागे हैं। वे बेहतर अवसरों की तलाश में वहां गए हैं। वे जहां भी गए हैं, वहां जाकर उन्होंने हर क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया है। इस समय दुनिया के ऐसे दर्जन भर से ज्यादा देश हैं, जिनके राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधीश आदि भारतीय मूल के हैं।

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं। दुनिया के पांचों महाद्वीपों में एक भी महाद्वीप ऐसा नहीं है, जहां किसी न किसी देश में कोई न कोई भारतीय मूल का व्यक्ति उच्च पदस्थ न हो। इन विदेशियों के बीच भारतीयों को इतना महत्व क्यों मिलता है? क्योंकि वे बुद्धिमान, चतुर और परिश्रमी होते हैं। उदारता और शालीनता उनके रग-रग में बसी होती है।

जिन भारतीयों को डेढ़ सौ-दो सौ साल पहले बंधुआ मजदूर बनाकर अंग्रेज लोग फिजी, मॉरिशस और सूरिनाम जैसे देशों में ले गए थे, उनकी बात जाने दें और आज के करोड़ों प्रवासी भारतीयों पर नजर डालें तो आप पाएंगे कि वे जिस देश में भी रहते हैं, उस देश के सबसे शिक्षित, मालदार और सभ्य लोग माने जाते हैं। अमेरिका के सबसे सम्पन्न वर्गों में भारतीयों का स्थान अग्रगण्य है।

भारतीय लोगों में अपराधियों की संख्या भी सबसे कम होती है। वे जिस देश में, जिस हैसियत में भी रहें, भारत की छवि चमकाते रहते हैं। यह ठीक है कि भारत से आज हर साल लगभग दो लाख लोग विदेशों में जा बसते हैं। वे उन देशों की नागरिकता ले लेते हैं। उनमें से कई मोटी नौकरियों की तलाश में रहते हैं। कई उन देशों में पढ़ते-पढ़ते वहीं रह जाते हैं।

कुछ ऐसे भी हैं, जो अपने अपराधों की सजा से बच जाएं, इसलिए भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ले लेते हैं। प्रतिभा-पलायन के कारण भारत का नुकसान जरूर होता है लेकिन हम यह न भूलें कि ये लोग हर साल भारत में अरबों डॉलर भेजते रहते हैं। पिछले वर्ष 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा राशि हमारे प्रवासियों ने भारत भिजवाई है।

दुनिया के किसी देश को- चीन को भी नहीं- उसके प्रवासी इतनी राशि भिजवा पाते हैं। इस समय दुनिया के अत्यंत शक्तिशाली और सम्पन्न राष्ट्रों में प्रवासी भारतीयों का डंका बज रहा है। उन देशों की अर्थव्यवस्था और राज्य-व्यवस्था की वे रीढ़ बन चुके हैं। यदि विदेशों में बसे हुए भारतीय आज घोषणा कर दें कि वे भारत वापस लौट रहे हैं तो उनमें से कुछ देशों की अर्थव्यवस्था ही ठप्प हो जाएगी, कइयों की सरकारें गिर जाएंगी और कई देशों के विश्वविद्यालय और शोध-संस्थान उजड़ जाएंगे।

यह ठीक है कि उनमें से कई देशों की जनसंख्या के मुकाबले भारतीय प्रवासियों की संख्या मुट्ठीभर ही है। जैसे अमेरिका में 44 लाख, ब्रिटेन में 17.6 लाख, संयुक्त अरब अमीरात में 34 लाख, श्रीलंका में 16 लाख, द. अफ्रीका में 15.6 लाख, सऊदी अरब में 26 लाख, मलेशिया में 29.8 लाख, म्यांमार में 20 लाख, कनाडा में 16.8 लाख, कुवैत में 10.2 लाख भारतीय हैं। ज्यादातर देशों में प्रवासियों की संख्या 3 से 4 प्रतिशत ही है, लेकिन वहां उनका महत्व 30 से 40 प्रतिशत से कम नहीं है।

भारतीय लोग अपने मूल देश को वहां से काफी पैसा भिजवाते हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि जिन देशों में वे रहते हैं, उन्हें भी सम्पन्न बनाने में कसर नहीं छोड़ते। भारत के लगभग पांच लाख छात्र- जो विदेशों में हर साल पढ़ने जाते हैं- वे भी उन देशों की आय को बढ़ाते ही हैं। प्रवासी भारतीयों की इस सुप्त शक्ति को जगाने का बीड़ा प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने उठाया था, 2003 में! प्रसिद्ध विधिवेत्ता लक्ष्मीमल्ल सिंघवी और राजदूत जगदीश शर्मा के प्रयत्नों से यह प्रवासी संगठन बना है।

उसके पहले संघ के वरिष्ठ सदस्य बालेश्वर प्रसाद अग्रवाल की संस्था ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद’ के जरिए प्रयत्न होता था कि संसार के प्रवासी भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ा जाए। अब भारत सरकार ने प्रवासियों की तीन श्रेणियां बना दी हैं। विदेशों में रहने वाले नागरिक (ओसीआई), भारतीय मूल के लोग (पीआईओ) और अप्रवासी भारतीय (एनआरआई)। वह दिन दूर नहीं, जब कई अन्य देशों की तरह भारतीय मूल के लोगों को भी भारत दोहरी नागरिकता दे देगा।

जो प्रवासी भारतीय सम्पन्न नहीं हैं, उन्हें भी भारत-यात्रा के लिए विशेष सुविधाएं दी जा सकती हैं और कई प्रतिभाशाली व सफल भारतीयों से अनुरोध किया जा सकता है कि वे भारत आकर मातृभूमि को कृतार्थ करें।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!