एकात्म मानववाद के पुरोधा पंडित दीनदयाल उपाध्याय।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
स्वतंत्र भारत में हर व्यक्ति को सम्मान और उचित स्थान मिले, हमारा भारत विश्वगुरु बने, समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के चेहरे पर खुशी हो, हमारी सांस्कृतिक पहचान बनी रहे, ऐसी ही सोच भारतीय राजनीति के संत पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की थी। इसके लिए उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनिश्चय की स्थिति में खड़े देश को एकात्म मानववाद की विचारधारा दी और अंत्योदय का दर्शन दिया था। उन्होंने देश की दिशा और दशा को बदलने के लिए जो बीज बोए थे, वह अब फल देने लगा है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को सामयिक रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा भारत जैसे देश को दी। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख होना चाहिए। उनका कहना था कि भारत में रहने वाला, इसके प्रति अपनत्व की भावना और आदर का भाव रखने वाला मानव समूह एक जन हैं।
चाहे उनकी जीवन प्रणाली हो, चाहे कला हो, फिर चाहे साहित्य हो या दर्शन हो, सब मिलकर ही भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति ही है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक पक्ष ही नहीं, बल्कि उसका सर्वांगीण विकास भी अनिवार्य है।
भारतीय राजनीति के ऐसे महान चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार और चिंतन का लाभ देश को देने के उद्देश्य से उनके नाम पर कई शोध संस्थानों की स्थापना कराई है। उनकी सोच के अनुरूप कई योजनाएं चलाकर आम लोगों को लाभ पहुंचाया है। इनमें दीनदयाल उपाध्याय स्वरोजगार योजना, दीनदयाल उपाध्याय गृह आवास विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय किसान कल्याण योजना, दीनदयाल उपाध्याय रसोई योजना, दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा योजना आदि शामिल हैं। इसके अलावा कई राज्य सरकारों ने भी उनके नाम पर अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं।
दीनदयाल उपाध्याय जी ने समाज और देश के वंचित वर्ग के हित संवर्धन के लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए सम्यक दृष्टि भी प्रदान की। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश जैसी राष्ट्रवादी पत्रिकाओं के यशस्वी संपादक के रूप में राष्ट्रवादी स्वर को मुखर करनेवाले एक सफल संपादक के साथ ही पं. दीनदयाल उपाध्याय का व्यक्तित्व संवेदना से परिपूर्ण था, इसलिए वे एक सफल साहित्यकार एवं मानव हित को समर्पित संवेदनशील चिन्तक भी थे।
एकात्म मानववाद के माध्यम से सर्वथा एक भारतीय विचार को प्रवर्तित कर उन्होंने हमारे राजनीतिक विमर्श को एक नया आकाश दिया। यह बहुत से प्रचलित राजनीतिक विचारों के समकक्ष एक भारतीय राजनीतिक दर्शन था, जिसे वे बौद्धिक विमर्श का हिस्सा बना रहे थे। अपने इस विचार को वे व्यापक आधार दे पाते इसके पूर्व उनकी हत्या ने तमाम सपनों पर पानी फेर दिया।
दुनिया एकात्म मानवदर्शन की राह पर आ रही है, अपने भौतिक उत्थान के साथ आध्यात्मिकता को संयुक्त करने के लिए वह आगे बढ़ चुकी है। यह होगा और जल्दी होगा, हम चाहें तो भी होगा, नहीं चाहे तो भी होगा। दीनदयाल जी इन सबके रोलमॉडल थे। अपनी सादगी, सज्जनता, व्यक्तियों का निर्माण करने की उनकी शैली और उसके साथ वैचारिक स्पष्टता ने उन्हें बनाया और गढ़ा था।
वे सही मायनों में भारतबोध के प्रखर प्रवक्ता थे। भारतीय राजनीति में उनके आगमन ने एक नया विमर्श खड़ा कर दिया और वैकल्पिक राजनीति को मजबूत आधार प्रदान किया।
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