सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिए महिलाओं की भागीदारी जरुरी- ओम बिरला

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 

संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित ‘पंचायत से संसद 2.0’ कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में महिला नेतृत्व की परिवर्तनकारी भूमिका को रेखांकित किया।22 राज्यों की 500 से अधिक आदिवासी महिला पंचायत प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय समुदायों की महिलाओं का समावेशन और सशक्तीकरण देश के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है।

जानिए क्या बोले ओम बिरला

सोमवार को यहां राष्ट्रीय महिला आयोग और जनजातीय कार्य मंत्रालय के सहयोग से लोकसभा सचिवालय के संसदीय लोकतंत्र अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा का संघर्ष वनों और भूमि के संरक्षण के साथ-साथ जनजातीय समुदायों की गरिमा और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भी था। उनसे प्रेरणा लें।

लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत में शासन में महिलाओं की भागीदारी की समृद्ध विरासत का उल्लेख करते हुए कहा कि पंचायतों में जमीनी स्तर से लेकर संसद में महिलाओं का नेतृत्व परिवर्तन लाने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और समावेशी विकास माडल बनाने में सहायक रहा है।

ये साल महिला सशक्तीकरण के लिए खास

उन्होंने पंचायतीराज संस्थाओं में महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति की सराहना की, जिसमें कई राज्यों ने महिलाओं के लिए अनिवार्य 33 प्रतिशत आरक्षण को पार कर लिया है। कुछ मामलों में यह 50 प्रतिशत से भी अधिक हो गया है। बिरला ने 2025 को महिला सशक्तीकरण के लिए एक ऐतिहासिक वर्ष बनाने का आग्रह किया, जिसमें महिलाओं को नीति निर्माण में केवल भाग लेने के बजाय नेतृत्व करने के लिए जगह मिले।
उन्होंने इस वर्ष को नए संकल्पों का वर्ष बनाने का आह्वान किया, जिसमें महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और सामाजिक रूप से न्यायसंगत, आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र का नेतृत्व करें। उन्होंने महिलाओं से अपने निर्वाचन क्षेत्रों को अधिक जनोन्मुखी बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), मशीन लर्निंग और नवाचार को अपनाने का भी आग्रह किया।

लोकसभा अध्यक्ष ने संसद भाषिणी के माध्यम से इन प्रतिनिधियों से बातचीत भी की। इस अवसर पर केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी, महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर, लोकसभा महासचिव उत्पल कुमार ¨सह और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर भी उपस्थित रहीं।

कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी

  • मौजूदा समय में कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में भारत दुनिया के सबसे निचले स्थान पर है।
  • भारत में महिलाओं की कार्यक्षेत्र में भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate-LFPR) जो 2011-12 में 31.2% थी, 2017-18 में घटकर 23.3% हो गई है।
  • यह गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत तेज़ी से दर्ज की गई तथा वहाँ 2017-18 में महिलाओं की भागीदारी में 11% से अधिक की कमी आई है।

भागीदारी में गिरावट के प्रमुख कारक

  • समाज में महिलाओं के घर से बाहर जाकर कार्य करने की अस्वीकार्यता।
  • कार्य-क्षेत्र में सुरक्षा के पर्याप्त प्रावधानों का अभाव।
  • श्रम के मूल्य में भेदभाव अर्थात् पुरुषों की तुलना में कम मेहनताना।
  • ग्रामीण महिलाओं के लिये अनुकूल नौकरियों का अभाव।

इन्हीं सब वज़हों से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं कृषि कार्यों में संलग्न रहती हैं तथा शहरी महिलाएँ कम वेतन वाले घरेलू कार्य तथा घर पर किये जा सकने वाले छोटे-मोटे कार्य करती हैं।

योग्यता और कार्य में संबंध

  • हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह पता चला है कि महिलाओं की शैक्षिक योग्यता तथा उनकी कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में भागीदारी के अनुरूप मिलने वाले वेतन में नकारात्मक संबंध देखने को मिलता है।
  • उच्च शैक्षिक योग्यता वाली महिलाएँ घर के बाहर ऐसे कार्य नहीं करना चाहती, जिनका स्तर उनको लगता है कि उनकी योग्यता से कम है।
  • इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि अधिकतर महिलाएँ ऐसी नौकरियों को वरीयता देती हैं, जिनमें उनकी उच्च शैक्षिक योग्यता के अनुरूप वेतन मिलता हो।
  • एक अनुमान के आधार पर 25 से 59 वर्ष की आयु तक के जो लोग किसान, खेतिहर मज़दूर और घरेलू नौकर के रूप में कार्यरत हैं, उनमें महिलाओं का अनुपात एक-तिहाई यानी लगभग 33% है। इसके विपरीत मैनेजर तथा क्लर्क जैसे कार्यों में यह घटकर 15% रह जाता है।
    • कोई भी सरकार, जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और आजीविका के समान अधिकारों को सुनिश्चित करने को लेकर गंभीर है, उसे इस मुद्दे पर कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा जो अवैतनिक श्रम, कम वेतन आदि जैसे कारकों के साथ मौजूद हैं।
    • ऐसा वातावरण बनाना होगा जिसमें सार्वजनिक कार्यक्षेत्र में महिलाओं को काम करने की सुविधा हो। इसके लिये काम पर रखने में उनके साथ होने वाले भेदभाव को दूर करना होगा तथा समान मजदूरी/वेतन सुनिश्चित करने के साथ उनकी सामाजिक सुरक्षा आदि सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है।

    महिलाओं के अवैतनिक कार्यों को पहचान कर उनके लिये पारिश्रमिक तय करना सरकार की वरीयताओं में शामिल होना चाहिये। इसके लिये सरकार को घरेलू स्तर पर इन कामों में लगी महिलाओं के आँकड़े जुटाने होंगे। जब तक हमारे नीति निर्माता इन संरचनात्मक मुद्दों का आकलन का सही तरह से नहीं करेंगे तथा महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश करने को लेकर बाधाएँ बनी रहेंगी, तब तक भारत में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाना संभव नहीं होगा।

 

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