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 बिहार के 38 जिलों के 18 हजार जल स्रोतों की 3.65 लाख एकड़ जमीन पर लोगों ने  जमा लिया है कब्जा - श्रीनारद मीडिया

 बिहार के 38 जिलों के 18 हजार जल स्रोतों की 3.65 लाख एकड़ जमीन पर लोगों ने  जमा लिया है कब्जा

बिहार के 38 जिलों के 18 हजार जल स्रोतों की 3.65 लाख एकड़ जमीन पर लोगों ने  जमा लिया है कब्जा

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श्रीनारद मीडिया, स्‍टेट डेस्‍क:

100 साल तक सरकार ने अपनी जमीन खोजी नहीं। जल- जीवन- हरियाली योजना 2019 में शुरू हुई तो आहर, पईन, कुआं, तालाब, पोखर सरीखे जल स्रोत खोजे जाने लगे। अंग्रेजी राज में 1890 से 1920 के बीच हुए कैडेस्ट्रल सर्वे का नक्शा निकाला गया तब पता चला कि 38 जिलों में 18 हजार जगहों पर जल स्रोतों की लगभग 3.65 लाख एकड़ जमीन पर कब्जा कर लोगों ने मकान, दुकान आदि बना लिया है। नमूने के तौर पर पटना जिला के बेलछी प्रखंड के मुतर्जापुर में कुछ लोगों ने दो एकड़ पईन की जमीन पर मकान बना लिया।

इससे गांव की 400 बीघा जमीन पर सात महीने तक जलजमाव रहता है। राज बराह पंचायत के बराह गांव में लगभग तीन दर्जन लोगों ने पईन और तालाब को भर कर घर बना लिया। पटना नगर निगम क्षेत्र में पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी में 36 लोगों ने तालाब में मिट्टी भर कर मकान बना लिया। ऐसी ही स्थिति बिहार के सभी जिलों में है। सभी जिलों में जल स्रोतों पर कब्जा हुआ है।

कई जगहों पर मिट्‌टी भर कर लोग खेती कर रहे हैं। 1890-1920 में तैयार नक्शा इसलिए मान्य है कि उसके बाद कोई कैडेस्ट्रल सर्वे हुआ नहीं। 10 जिलों में 1950 में सर्वे शुरू हुआ जो 1990 तक चला पर यह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। इसके बाद अब राज्य में नए सिरे से सर्वे हो रहा है।

कैसे हुआ? 100 साल सुध नहीं ली… अब खोज शुरू हुई तो पता चल रहा

1. 100 साल तक सरकार ने जल स्रोतों की खोज ही नहीं की।

2. 2019 में जल- जीवन- हरियाली योजना आई तो खोज हुई।

3. 1890-1920 के नक्शे के आधार पर अब कब्जे का पता चल रहा।

4. 100 साल पुराना नक्शा इसलिए मान्य कि उसके बाद सर्वे हुआ नहीं।

5. 10 जिलों में 1950 में सर्वे शुरू, 1990 तक चला पर अधूरा।

पटना के 660 जल स्रोतों पर लोगों ने किया कब्जा

पटना के 23 प्रखंडों के 660 जल स्रोत पर अवैध कब्जा है। इसमें 131 जगहों पर लोगों ने मकान और दुकान बना लिया है। 451 जगहों पर खेत, सड़क बना ली। पटना सदर में ही 75 जगहों पर 220 एकड़ जल स्रोत पर कब्जा है। जिसमें नगर निगम क्षेत्र में ही 36 स्थान हैं।

3.38 लाख कुएं हुए चिह्नित

राज्य में 3.38 लाख कुएं है। इसमें 3.36 लाख कुएं का निरीक्षण किया गया। इसमें 13,618 कुएं पर अतिक्रमण है। 87 हजार से अधिक कुओं का जीर्णोद्धार किया गया है।

स्रोतों पर कब्जे से ईको सिस्टम में बदलाव

पानी के स्रोत बंद करने से ईको सिस्टम पर असर पड़ता है। एएन कॉलेज के पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. तृप्ति गंगवार ने बताया कि पानी के स्रोत अतिक्रमित करने का सीधा असर ईको सिस्टम पर पड़ता है। इससे बाढ़, सुखाड़ और जलजमाव जैसी समस्या पैदा होती है।

कब्जा हटाने की कार्रवाई चल रही है

विभाग जल ही जीवन है के मंत्र पर काम कर रहा है। बिहार में पानी की स्त्रोत को जीवित करने के लिए लगातार तालाब, आहर, पईन, नहर और कुएं को अतिक्रमण से मुक्त कराया जा रहा है। लाखों की संख्या में कुएं से अतिक्रमण को हटाया गया है। जिन जगहों पर कब्जा है। कब्जा हटाने की कार्रवाई चल रही है। -ललित कुमार यादव, मंत्री, पीएचईडी

1.95 लाख जल स्रोत में 71 हजार का जीर्णोद्धार

नहर, पईन, तालाब, आहर… 1.95 लाख जल स्त्रोत को चिह्नित किये गए हैं। इसमें 1.92 लाख जगहों पर विभाग द्वारा सर्वे किया गया है। इस दौरान मौजूदा समय में 18 हजार जगहों पर कब्जे की रिपोर्ट तैयार की गई है। हालांकि, 71 हजार तालाब, आहर, नहर, पईन, अन्य का जीर्णोद्धार भी हुआ है। जिन 18 हजार जगहों पर कब्जा है। उसमें 7000 जगहों पर मकान, दुकान, गैराज का निर्माण किया है। जबकि, 11 हजार जगहों पर लोगों ने खेत, कच्चा मकान, झोपड़ी बना ली है।

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