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लोगों के फोन आने लगे, तब लगा कि कुछ बड़ा हो गया है-गीतांजलि श्री. - श्रीनारद मीडिया

लोगों के फोन आने लगे, तब लगा कि कुछ बड़ा हो गया है–गीतांजलि श्री.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गीतांजलि श्री के उपन्यास रेत समाधि (टॉम्ब ऑफ सैंड) को इंटरनेशनल बुकर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। यह बुकर से सम्मानित होने वाला दक्षिण एशिया, भारत और हिंदी का पहला उपन्यास है। इसका अंग्रेजी अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है।

पुरस्कार मिलने के बाद गीतांजलि ने कहा- ‘मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं ये कर सकती हूं। मुझे कहा गया था कि यह लंदन है, आप हर तरह से तैयार होकर आइएगा। यहां बारिश भी हो सकती है, बर्फ भी गिर सकती है, धूप भी खिल सकती है और बुकर भी मिल सकता है। लोगों के फोन आने लगे, तब समझ में आया कि कोई बड़ी बात हो गई है।’

गीतांजलि ने कहा- मैंने बुकर का सपना कभी नहीं देखा था। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं चकित हूं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं।
गीतांजलि ने कहा- मैंने बुकर का सपना कभी नहीं देखा था। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं चकित हूं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं।

गीतांजलि श्री अब तक तीन उपन्यास और कथा संग्रह लिख चुकी हैं। उनके उपन्यासों और कथा संग्रह को अंग्रेजी, जर्मन, सर्बियन, फ्रेंच और कोरियन भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

आपका उपन्यास अंतिम 6 में शामिल हुआ, तब आपके मन में क्या चल रहा था?
लेखक को कभी किसी दौड़ में रहना ही नहीं चाहिए। पुरस्कार न कोई पड़ाव है, न ही मंजिल। हां, ये खुशी देते हैं, लेकिन इसमें कोई दौड़ जैसी बात नहीं है। मैंने बुकर के बारे में सुना था, लेकिन चाह नहीं थी। जब मेरी रचना लॉन्ग लिस्ट और फिर शॉर्ट लिस्ट में शामिल हुई तो लोगों के फोन आने लगे। तब मुझे समझ में आया कि कोई बड़ी बात हो गई है।

क्या वजहें हैं कि अब तक हिंदी की कोई किताब यहां तक नहीं पहुंच पाई?
मुझसे पहले भी सैकड़ों ऐसी किताबें आईं, जो बेजोड़ थीं। हिंदी ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी बेहतरीन उपन्यास हैं। बस अंग्रेजी दुनिया को इनके बारे में पता नहीं चल रहा। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे रॉकवेल जैसी अनुवादक मिलीं, जो मेरी रचना को दुनिया के सामने लाईं।

यह विषय कैसे चुना?
मैं किसी एक विषय के पीछे नहीं भागती। बहुत से विषय एक साथ मेरे भीतर उमड़ते रहते हैं। मैं बस उन्हें एक-एक कर कागज पर उतार देती हूं। ठीक ऐसे ही ‘रेत समाधि’ लिखा। इसमें कई विषय हैं। इसे लिखने का ट्रिगर पॉइंट था- ‘अम्मा की पीठ।’ एक बूढ़ी औरत जो दीवार की तरफ देखती थी। उसे लगता था कि अब सब कुछ खत्म हो गया है। ये इमेज हर वक्त मेरे दिमाग में रही।

मन में कई सवाल उठते गए कि क्या वाकई यह औरत जिंदगी से ऊब गई है? या वह उस दीवार के पार जिंदगी में कुछ नया देखना चाहती है? कहने को तो उपन्यास मैंने लिखा, लेकिन मैं मानती हूं कि इन सवालों से उस किरदार में आत्मा आई… फिर वही मेरे सवालों का जवाब देने लगी और उपन्यास बन गया। विषयवस्तु को पकड़ने का यही मेरा तरीका है।

गीतांजलि श्री का उपन्यास रेत समाधि एक बुजुर्ग महिला की तकलीफें बयां करता है, जो उसने भारत से पाकिस्तान तक का सफर तय करते वक्त झेली हैं।
गीतांजलि श्री का उपन्यास रेत समाधि एक बुजुर्ग महिला की तकलीफें बयां करता है, जो उसने भारत से पाकिस्तान तक का सफर तय करते वक्त झेली हैं।

रेत समाधि हिंदी में लिखना क्यों चुना?
स्कूल में पढ़ी, जहां एक क्लास को छोड़कर अगर हिंदी में बात करते तो सजा मिलती थी, लेकिन जब लिखने की बात आती है तो आप वही भाषा चुनते हैं जो आपके खून में होती है, दिमाग में नहीं। ये समझ में आ गया था कि मैं जो भी भाव महसूस करती हूं, वह हिंदी में ही है। रेत समाधि को लिखने में मुझे 7-8 साल लगे हैं, इसलिए अभी चंद मिनटों में नहीं बता रही हूं कि ये सब कैसे हो गया।

लिखती क्यों हैं?
आप सांस लेते हैं, लिखना मेरी सांस है।

आपकी नजर में गीतांजलि श्री कौन हैं?
अभी तक शायद मालूम नहीं कि कौन हूं… मैं बस कोशिश करती हूं कि किसी भी तरह की कट्‌टरता के दायरे में नहीं रहूं। दूसरों को सुनने, समझने, खुद से सवाल करने की लगातार कोशिश करती रहती हूं। समझ लीजिए कि कोशिश करने वाली एक महिला हूं।

पुरस्कार की लिस्ट में शामिल थीं 13 किताबें
गीतांजलि श्री का उपन्यास दुनिया की उन 13 पुस्तकों में शामिल था, जिन्हें पुरस्कार की लिस्ट में शामिल किया गया था। पुरस्कार की घोषणा 7 अप्रैल 2022 में लंदन बुक फेयर में की गई थी, लेकिन विजेता का ऐलान अब हुआ।

बुकर पुरस्कार को जानिए
बुकर पुरस्कार का पूरा नाम मैन बुकर अवार्ड फॉर फिक्शन है। इसकी स्थापना 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी ने की थी। इसमें विजेता को 60 हजार पाउंड की रकम दी जाती है। ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित या अंग्रेजी में ट्रांसलेट की गई किसी एक किताब को हर साल ये खिताब दिया जाता है। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था।

आभार……भास्कर

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