केरल से दिल्ली तक ऐसे फैला PFI
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई सीएए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा हो या फिर हाथरस का मामला या फिर दिल्ली दंगे। देश में कोई भी विवाद, फसाद हो नाम पीएफआई का जरूर चला आता है। लंबे वक्त से अलग-अलग हिस्सों में पीएफआई पर बैन की मांग उठ रही थी.
16 साल से पनप रहे रक्त बीजों के अंत का आरंभ हो गया है। बीते डेढ़ दशक से डेमोक्रेसी के ड्रामे के साथ सूडो सेकुलरिज्म की आड़ में पनप रहे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के खिलाफ यह सरकार का फाइनल ब्लो है। भारत संविधान की किताब से बंधा हुआ देश है। कानूनी नुक्तों के लू -फॉल से आरोपी बार-बार बच निकलते हैं। वोट बैंक के लालच में कई सरकारें यह लू फॉल क्रिएट करती रही हैं। मगर इस बार स्क्रिप्ट ही बदल कर रख दी गई और इनके हिमायतियों को पता भी नहीं चला।
28 सितंबर के अलह सुबह हुए बैन के ऐलान के बाद शाम होते-होते खुद पीएफआई ने अपने संगठन के भंग होने की घोषणा कर दी। एक सप्ताह के अंदर दो दौर की देशव्यापी छापेमारी सहित 240 से ज्यादा सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद केंद्र सरकार ने पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके आठ सहायक संगठनों को पांच साल के लिए बैन कर दिया है। सरकार का दावा है कि इन संगठनों का स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) और आईएसआईएस जैसे संगठनों से जुड़ाव रहा है और ये प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिंसा और आतंकी घटनाओं में शामिल रहे हैं।
हालांकि ये संगठन आरोपों से इनकार करते हैं और बैन किए गए इन नौ संगठनों में से एक कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) ने फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात भी कही है।
कैसे बना था पीएफआई?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नवंबर 2006 में दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों के विलय से बना । शुरुआत में इसका हेडक्वॉर्टर केरल के कोझिकोड में था मगर बाद में इसने दिल्ली को अपना बेस बनाया। संगठन खुद को कमजोर तबकों के सशक्तिकरण से जुड़ा बताता रहा है।
यूएपीए के तहत बैन के मायने
केंद्र ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), 1967 के तहत तहत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को एक “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया है। इसका मतलब है कि अब इस संगठन की सदस्यता रखने पर दो साल की सजा हो सकती है जो कुछ मामलों में आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक बढ़ाई जा सकती है। देश भर में केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों और राज्य पुलिस के पास अब संगठन के सदस्यों को गिरफ्तार करने, उसके खातों को फ्रीज करने और यहां तक कि उसकी संपत्ति को जब्त करने का अधिकार है।
धारा 10 सदस्यता को अपराध बनाती है
यूएपीए की धारा 10 प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता को अपराध बनाती है। इसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने पर दो साल की कैद की सजा हो सकती है और कुछ परिस्थितियों में इसे आजीवन कारावास और यहां तक कि मौत की सजा तक बढ़ाया जा सकता है। धारा 10 यह भी कहती है कि कोई भी व्यक्ति जो ऐसे संगठन का सदस्य है और बना रहेगा व इसकी बैठकों में भाग लेता रहेगा उसे जुर्माने के साथ दो साल तक की कारावास हो सकती है।
यह किसी भी व्यक्ति पर भी लागू होता है जो प्रतिबंधित संगठन के उद्देश्यों में सहायता करता है। इस प्रावधान को लागू करते हुए, केंद्रीय एजेंसियों और राज्य पुलिस ने वर्षों से स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सैकड़ों सदस्यों को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बाद गिरफ्तार किया है।
यूएपीए की धारा 7 क्या कहती है?
यूएपीए की धारा 7 सरकार को “गैरकानूनी संगठन” द्वारा “धन के उपयोग पर रोक लगाने” की शक्ति देती है। यह एजेंसियों और पुलिस को ऐसे संगठनों के परिसरों पर छापा मारने और तलाशी लेने और उनकी लेखा पुस्तकों की जांच करने की शक्ति भी देता है। यूएपीए की धारा 8 केंद्र को “किसी भी स्थान को अधिसूचित करने का अधिकार देती है, जो उसकी राय में इस तरह के गैरकानूनी संघ के उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है”। यहाँ “स्थान” में एक घर या एक इमारत, या उसका एक हिस्सा, या यहाँ तक कि एक तम्बू या एक बर्तन भी शामिल है।
क्या पूरी तरह वजूद मिट जाएगा?
पीएफआई का राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया वजूद में है। इसका कर्नाटक के तटीय दक्षिण कन्नड़ और उडुपी इलाके में अच्छा प्रभाव है। यहां पर पार्टी गांव से लेकर कस्बे और सिटी काउंसिल में भी चुनाव जीत चुकी है। मैसुरु लोकसभा की सीट नरसिम्हराजा में एसडीपीआई 2013 में दूसरे नंबर पर रही। एसडीपीआई ने प्रतिबंध को लोकतंत्र पर सीधा हमला करार दिया। पार्टी अध्यक्ष एमके फैजी ने कहा कि जो कोई भी बीजेपी सरकार की गलत और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बोलता है, उसे गिरफ्तारी और छापेमारी के खतरे का सामना करना पड़ता है। यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
2047 तक गज़वा ए हिन्द का पीएफआई प्लान
एजेंसी के एक नोट से पता चलता है कि महाराष्ट्र के पीएफआई उपाध्यक्ष के कब्जे से सैकड़ों आपत्तिजनक दस्तावेजों के साथ-साथ ‘मिशन 2047’ से जुड़ा ब्रॉशर और सीडी भी बरामद हुई है। यूपी के एक पीएफआई नेता से पेन ड्राइव मिला है, जिसमें आईएसआईएस, गजवा-ए-हिंद के विडियो पाए गए हैं। नोट में कहा गया है कि पीएफआई ने अपने कैडर को उन कामों के लिए ब्रेन वॉश किया जो देश में धार्मिक सौहार्द्र के लिए बड़ा खतरा था। पीएफआई पर आरोप है कि केरल में जून 2021 में उसके पास से विस्फोटक और जिहादी साहित्य बरामद किया गया था।
बहरहाल, बैन होने के बाद बहुत संभव है कि इनसे जुड़े कुछ तत्व गोपनीय रूप से राष्ट्रविरोधी या आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश करें। वैसे भी अनुभव बताता है कि बैन करने मात्र से किसी संगठन का प्रभाव हमेशा के लिए खत्म नहीं हो जाता। जाहिर है, सरकार को आगे और ज्यादा सतर्कता से कदम बढ़ाने होंगे।
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