पूर्वजो के प्रति श्रद्धा ज्ञापित करने का पर्व है पितृपक्ष
शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर ऋषि ऋण, देव ऋण व पितृ ऋण होते हैं
श्रीनारद मीडिया, प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)
भारतीय संस्कृति में श्राद्ध की सनातन परंपरा है, जिसके माध्यम से हम अपने पितरो के प्रति सम्मान और कृतज्ञता ज्ञापित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है यह बात रघुनाथपुर के आचार्य पंडित प्रदीप तिवारी ने बताई.
उन्होंने कहा की मान्यता है कि पितर धर्मराज से अनुमति प्राप्त कर हर वर्ष पितृपक्ष मे मृत्यु लोक मे हमे आशीर्वाद देने आते है वे इस कालखण्ड मे हमारे अति निकट होते हैं वे अपनी संतानो से तृषा शांति के लिए तर्पण( जलदान ) और क्षुधा शांति के लिए पिण्डदान की अपेक्षा रखते हैं धर्मशास्त्रो मे पितरो की असंख्य संख्याओ मे सात को प्रधान माना गया है – सुकाला, आंगरिस, सुस्वधा ,सोम, वैराज अग्निष्वात और बहिर्रष्द , ये दिव्य पितर है इनके अधि पति हैं आदित्य, रुद्र और बसु , पितृपक्ष मे हमारे स्मरण करते ही ये हमारे समीप आ जाते हैं एवं तर्पण और श्राद्ध ग्रहण कर हमे वंशवृद्धि दीर्घायु और सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान कर वापस अपने लोक को लौट जाते है।
राजा दशरथ की मृत्यु की सूचना मिलने पर भगवान श्रीराम ने मंदाकिनी के तट पर जाकर श्राद्ध एवं तर्पण संबंधी सभी वेदोक्त क्रियाएं संपन्न की थीं, बाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में वर्णित है “करि पितु क्रिया वेद जस वरनी” भगवान श्रीकृष्ण ने तो अपने भांजे (सुभद्रा के पुत्र) अभिमन्यु तक का विधिवत श्राद्ध किया था पितामह भीष्म जब नदी मे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे थे तभी उनके पिता ने हाथ बढ़ाकर उनसे सीधा पिण्ड दान मांग लिया, बिचारोपरांत भीष्म ने पिण्ड उनके हाथ पर न रख कर कुशा पर रखा और पिता के चरणो मे प्रणाम किया ऐसा इसलिए किया कि यदि वे पिण्ड सीधा अपने पिता के हाथ पर रखते तो भविष्य मे श्राद्ध करने वाले लोग
उनका अनुसरण करते हुए अपने अपने पिता के हाथ पर ही पिण्ड रखने की चाहत रखते इस बिचार को दृष्टि में रखते हुए उन्हें कुशा पर पिण्ड रखना समीचीन लगा, अपने नीति मर्मज्ञ पुत्र के इस कृत्य और बिचार से उनके गोलोकवासी पिता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। शास्त्रो के अनुसार प्रत्येक मनुष्य पर ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण होते हैं इन सभी ऋणो का शोधन होना ही चाहिए अतैव हम सभी को इस महालय पर्व मे अपने पूर्वजो को श्रद्धा और भक्ति के साथ तृप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
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