पीएम मोदी ने रामपाल कश्यप को उनके 14 साल पुराने संकल्प को पूरा करते हुए जूते पहनाए,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
‘जब तक मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन जाते…’
वहीं, पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर कहा कि हरियाणा के यमुनानगर में आज कैथल के रामपाल कश्यप जी से मिलने का सौभाग्य मिला। इन्होंने 14 वर्ष पहले एक व्रत लिया था कि ‘मोदी जब तक प्रधानमंत्री नहीं बन जाते और मैं उनसे मिल नहीं लेता, तब तक जूते नहीं पहनूंगा।’
मुझे आज उनको जूते पहनाने का अवसर मिला। मैं ऐसे सभी साथियों की भावनाओं का सम्मान करता हूं, परंतु मेरा आग्रह है कि वो इस तरह के प्रण लेने के बजाए किसी सामाजिक अथवा देशहित के कार्य का प्रण लें।
कौन हैं रामपाल कश्यप
रामपाल कश्यप कैथल के खेड़ीगुलामा गांव के रहने वाले हैं। यमुनानगर कार्यक्रम के दौरान स्टेज के पीछे पीएम मोदी ने जूते पहनाए हैं। रामपाल कश्यप मूल रूप से हरियाणा के कैथल जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने साल 2011 में एक प्रतिज्ञा ली थी. उनका मानना था कि नरेंद्र मोदी जैसे नेता ही देश का भाग्य बदल सकते हैं. इसलिए उन्होंने संकल्प लिया कि जब तक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे और वे इसके बाद जब तक उनसे नहीं मिलेंगे तक वह नंगे पांव ही चलेंगे. वह ना तो चप्पल और ना ही जूते पहनेंगे.
14 साल पूरी हुई प्रतिज्ञा
इस प्रतिज्ञा के 14 साल बाद आज वही दिन था जब वह पीएम मोदी से मिले. जब वह पीएम मोदी से मिलने आए तब भी वे नंगे पांव ही आए. दिलचस्प बात यह है कि ठंड से लेकर गर्मी यहां तक कि बारिश के मौसम में भी वह नंगे पांव ही चल रहे थे. इसके बाद भी वह अपने संकल्प पर अड़े रहे. आखिरकार 14 साल बाद उनका संकल्प पूरा हुआ. पीएम मोदी जब उनसे मिले तो उन्होंने रामपाल से पूछा अरे भाई आपने ऐसा क्यों किया. इसके बाद उन्होंने खुद रामपाल को अपने हाथों से जूते पहनाए.
PM मोदी ने रामपाल के बारे में क्या कहा?
रामपाल कश्यप के साथ मुलाकात की एक वीडियो पीएम मोदी ने X पर पोस्ट किया है. उन्होंने वीडियो को पोस्ट करते हुए लिखा, ‘हरियाणा के यमुनानगर में आज कैथल के रामपाल कश्यप जी से मिलने का सौभाग्य मिला. इन्होंने 14 वर्ष पहले एक व्रत लिया था कि ‘मोदी जब तक प्रधानमंत्री नहीं बन जाते और मैं उनसे मिल नहीं लेता, तब तक जूते नहीं पहनूंगा.’ मुझे आज उनको जूते पहनाने का अवसर मिला. मैं ऐसे सभी साथियों की भावनाओं का सम्मान करता हूं, परंतु मेरा आग्रह है कि वो इस तरह के प्रण लेने के बजाए किसी सामाजिक अथवा देशहित के कार्य का प्रण लें.’