पीएम मोदी ने किया देश के महान संत को नमन.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब समेत उत्तर भारत के कई स्थानों पर महान कवि और समाज सुधारक की जयंती मनाई जा रही है। हिंदी पंचांग के अनुसार, हर साल माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को समाज सुधार की दिशा में काम करने वाले संत गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। इसी कड़ी में संत रविदास जयंती पर कई जगह झांकियां तक निकाली जाएंगीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 645वीं रविदास जयंती के मौके पर दिल्ली के करोलबाग में स्थित विश्राम धाम मंदिर गएऔर महान संत को याद किया।
दूर-दूर तक करोल बाग मंदिर की महत्ता
इस मंदिर की ऐतिहासिक मान्यता है। जानकारों के मुताबिक यहां पर श्री गुरु रविदास ने 10 दिनों तक विश्राम किया था। श्री गुरु रविदास विश्रामधाम मंदिर ट्रस्ट समिति के प्रधान गोपाल कृष्ण ने बताया कि उत्तर भारत के भ्रमण पर निकले श्री गुरु रविदास जब रानी झाली बाई के निमंत्रण पर राजस्थान के चितौड़ जा रहे थे तब उन्होंने इसी जगह पर विश्राम किया था। जहां अब गुरु रविदास जी की प्रतिमा स्थापित है। इसके बाद इस स्थान पर उनका मंदिर बनाया गया। इस मंदिर को लेकर उनके अनुयायियाें के साथ ही समाज के सभी वर्ग में गहरी आस्था है।
आजादी के पहले से ही रविदास जयंती पर करोलबाग क्षेत्र में वार्षिक शोभा यात्रा शुरू हुई थी। आजादी के बाद वर्ष 1949 में शोभा यात्रा विशाल तौर पर निकाली जाने लगी। उन्होंने बताया कि यह शोभा यात्रा पहाड़गंज और कनाट प्लेस तक निकाली गई थी। इसके बाद वर्ष 1954 में शोभा यात्रा का स्वरूप बदला गया। अब यह प्रतिवर्ष लाल किले से गुरु रविदास विश्राम धाम तक निकाली जाती है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से मंगलवार को जानकारी दी थी कि रविदास जयंती पर वह करोल बाग स्थित मंदिर में जाएंगे। पीएम मोदी ने ट्वीट पर जानकारी देते हुए लिखा था- ‘रविदास जयंती के पावन अवसर पर सुबह 9 बजे मैं दिल्ली के करोलबाग के श्री गुरु रविदास विश्राम धाम मंदिर जाऊंगा और वहां जन-जन के कल्याण के लिए प्रार्थना करूंगा। इससे पहले पीएम ने रविदास जयंती के अवसर अपने पुराने कुछ संस्मरण साझा करते हुए ट्वीट किया। ‘महान संत गुरु रविदास जी की जन्म-जयंती है। उन्होंने जिस प्रकार से अपना जीवन समाज से जात-पात और छुआछूत जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए समर्पित कर दिया, वो आज भी हम सबके लिए प्रेरणादायी है।’
मध्यकाल में मुगलों के आक्रमण के बाद सामाजिक अव्यवस्था, आर्थिक दरिद्रता और राजनैतिक अस्थिरता जड़ जमा चुकी थी। ऐसे परिवेश में संत रविदास जी का जन्म वाराणसी में हुआ। संत रविदास के गुरु काशी के पंडित रामानंद और शिष्या चित्तौड़ की रानी झाली व मीराबाई थीं। वर्ण, जाति और क्षेत्र की सीमा को तोड़ती ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा मानवता की एक मिसाल है। देशभर में संत रविदास के अनुयायी हैं। चित्तौड़ में रविदास की छतरी, मांडोग में रैदास कुंड व कुटी होने के साथ राजस्थान में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में रविदास के चालीस पद, एक दोहा सोलह रागों में संकलित हैं। सिख धर्म में रविदासिया दलितों का एक बड़ा समुदाय है।
रविदास जी धर्म के नाम पर प्रचलित अंधविश्वास, आडंबर और कर्मकांड को निरर्थक मानते थे। इनकी भक्ति-साधना में भावुकता, विनम्रता और प्रेम की प्रधानता है। आचरण की पवित्रता पर विशेष बल है। संत रविदास गुरु-महिमा और सत्संग के समर्थक हैं। वह मानते हैं कि सत्संगति के बिना भगवान के प्रति प्रेम नहीं हो सकता और भगवत्प्रेम के बिना मुक्ति नहीं हो सकती। रविदास उस निर्गुण ब्रह्म के उपासक हैं, जो ‘गरीब नवाज’ और ‘पतित-पावन’ है और भक्तों के उद्धार के लिए साकार रूप धारण करता है। संत रविदास जी काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहं को त्याज्य मानते हैं।
उनके दर्शन के अनुसार, जीव परमात्मा का अंश है। जीव के अंत:करण में प्राण स्वरूप परमात्मा का निवास है, किन्तु अज्ञानता के कारण जीव कस्तूरी को न पहचानने वाले मृग की तरह संसार में भटकता रहता है। संसार की नश्वरता और शरीर की क्षणभंगुरता के विषय में रविदास जी कहते हैं कि
इहु तनु ऐसा जैसे घास की टाटी
जलि गइयो घासु रलि गइयो माटी।
इसका भावार्थ यह है कि शरीर तो भौतिक वस्तु है, इसे तो नष्ट हो जाना है। हमें इस पर अभिमान न करके शरीर के माध्यम से अपने अंतस को निखारना चाहिए। सदन, सेवा, सत्य, नाम, ध्यान, प्रणति, प्रेम और विलय अष्टांग साधना के अंग हैं। यही संत रविदास की साधना है, जिसमें प्रेम को उच्च स्थान मिला हुआ है।
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