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पीएम मोदी लोगों के धैर्य की परीक्षा न लें -उद्धव ठाकरे

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 बांग्लादेश में कई दिनों से हिंसा जारी है, शेख हसीना के इस्तीफा देने और भारत लौटने के बाद वहां के हालात और बेकाबू हो गए हैं। इस बीच अब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बांग्लादेश के हालात पर चिंता जताई है और इसके मद्दनेजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चुनौती दी है।

उद्धव ठाकरे ने बुधवार को कहा कि बांग्लादेश के घटनाक्रम ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि लोग सर्वोच्च हैं और शासकों को उनके धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। यहां पत्रकारों को संबोधित करते हुए, ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को बांग्लादेश में अत्याचार का निशाना बने हिंदुओं को बचाने की चुनौती भी दी।

यूक्रेन की तरह बांग्लादेश में भी उठाएं ऐसे कदम

ठाकरे ने कहा, ‘अगर प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन में युद्ध रोक सकते हैं, तो उन्हें बांग्लादेश में भी इसी तरह के कदम उठाने चाहिए और वहां के हिंदुओं को बचाना चाहिए।’ महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि इसी तरह का विरोध प्रदर्शन इजरायल और श्रीलंका में भी देखा गया। बता दें कि ठाकरे इंडिया ब्लॉक के नेताओं से मिलने और खासकर महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों में आगे की रणनीति पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में हैं।

बड़े पैमाने पर लूटपाट और दंगे जारी

बांग्लादेश में पूरे देश में बड़े पैमाने पर लूटपाट और दंगे हो रहे हैं, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय, मुख्य रूप से हिंदू, पर हमले हो रहे हैं। शेख हसीना के भारत भाग जाने और अभी अंतरिम सरकार के गठन के साथ, मंदिरों में आग लगाए जाने और हिंदुओं के घरों और व्यवसायों पर हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।

भारत का आम आदमी भी बांग्लादेश की स्थिति को देखकर यही सोच रहा है कि किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए भारत सरकार ने जो हाइवे ब्लॉक करने के लिए मोटी कीलें लगाईं थीं, बड़े बड़े कंटेनर रखे थे, वो कितने जरूरी थे. बांग्लादेश लगातार आर्थिक प्रगति कर रहा था. पाकिस्तान ही नहीं इंडिया से भी बेहतर वहां की सरकार काम कर रही थी. पर जनता कब किसके बहकावे में आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता.

भारत में भी यही हाल है. भारत भी लगातार तरक्की कर रहा है. ग्रोथ रेट के मामले में चीन की अर्थव्यवस्था को भी भारत मात दे रहा है. चीन की तमाम बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों ने इस दौर में भारत की राह पकड़ ली है. देश में रक्षा सामग्री के निर्माण से लेकर भारत तमाम उपभोक्ता सामानों जैसे कार, मोबाइल आदि का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक बन रहा है. पर जनता को इतने से संतोष नहीं है. पिछले 10 साल से सत्ताधारी पार्टी को इस साल हुए आम चुनावों में जनता का कम समर्थन मिला है. मतलब साफ है जनता को तरक्की से ज्यादा धार्मिक और जातीय रूप से संतुष्ट करने की जरूरत है. क्योंकि जनता को बहकाने के लिए बांग्लादेश में धर्म मुद्दा बना है, तो भारत में जाति मुद्दा बन रहा है.

दलित विचारक और पत्रकार प्रोफेसर दिलीप मंडल एक्स पर लिखते हैं कि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने दो बड़ी ग़लतियां कीं वहाँ आज़ादी के बाद से ही स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के लिए 30% कोटा था. चूँकि दो पीढ़ी इसका लाभ उठा चुकी थी, इसलिए जनता की माँग पर सरकार ने 2018 मैं इसे ख़त्म कर दिया. कोई विवाद नहीं था.

ये कोटा मुख्य रूप से सत्ताधारी आवामी लीग के परिवारों को मिलता था क्योंकि आज़ादी की लड़ाई इसी पार्टी ने लड़ी थी. पर बांग्लादेश के जजों को चोर रास्ते से पार्टी नेताओं को खुश करने का ख़्याल आया. और इस साल कोर्ट ने पुराना 30% कोटा फिर बहाल कर दिया. जबकि ये सरकार का अधिकार क्षेत्र था. जनता ने विद्रोह कर दिया. अब कोर्ट को फिर पुराना फैसला वापस लेना पड़ा. पर ग़ुस्से में जजों ने लगभग हर तरह के कोटे ख़त्म कर दिए.फिर क्या. आग लग गई देश में और सरकार चली गई.

दरअसल भारत में संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के नाम पर दलितो को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है. इस बीच दलित सब कोटे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उस पर देश के तमाम दल और दलित बुद्धिजीवी उसे सही नहीं मान रहे हैं.

 

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