ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने पीएम मोदी रूस जाएंगे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाने वाला एक महत्वपूर्ण समूह है, जिसमें विश्व की 41 प्रतिशत आबादी शामिल है, विश्व जीडीपी का 24 प्रतिशत और विश्व व्यापार में 16 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है।
सितंबर 2010 में न्यूयॉर्क में BRIC विदेश मंत्रियों की बैठक में दक्षिण अफ्रीका को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किए जाने के बाद BRIC समूह का नाम बदलकर BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) कर दिया गया।
द्विपक्षीय बैठकों में भी शामिल होंगे पीएम मोदी
विदेश मंत्रालय ने कहा कि अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री द्वारा कजान में ब्रिक्स सदस्य देशों के अपने समकक्षों और आमंत्रित नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें करने की भी उम्मीद है। रूसी राष्ट्रपति के सहायक यूरी उशाकोव के अनुसार, कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 24 देशों के नेता और कुल 32 देशों के प्रतिनिधिमंडल भाग लेंगे, जिससे यह रूस में आयोजित अब तक का सबसे बड़ा विदेश नीति कार्यक्रम बन जाएगा।
अर्जेंटीना और सऊदी अरब को भी किया गया था आमंत्रित
अर्जेंटीना और सऊदी अरब को भी समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, सरकार बदलने के बाद अर्जेंटीना ने मना कर दिया और सऊदी अरब ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के निमंत्रण पर 22-23 अक्टूबर को रूस की यात्रा करेंगे, जहां वे रूस की अध्यक्षता में कजान में आयोजित 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।
ब्रिक्स देशों का विश्व आबादी में 46%, दुनिया की जीडीपी में 29%, और वस्तु व्यापार में 22% हिस्सा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले सप्ताह ब्रिक्स बिजनेस फोरम में कहा कि ब्रिक्स प्लस देशों की जीडीपी 60 लाख करोड़ डॉलर को पार कर गई है। इस लिहाज से यह संगठन जी-7 से भी बड़ा हो गया है। वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में ब्रिक्स का हिस्सा 40% रहा। संगठन के सदस्य देशों की विकास दर इस साल 4% रहने की उम्मीद है, जबकि जी-7 देशों की 1.7% और विश्व औसत 3.2% रहने का अनुमान है। विश्व निर्यात में इन देशों का हिस्सा 25% है।
भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व
मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों में ब्रिक्स के महत्व के सवाल पर जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज के प्रोफेसर डॉ. अविनाश गोडबोले जागरण प्राइम से कहते हैं, “दुनिया को आज एक संतुलित व्यवस्था की जरूरत है। भारत के लिहाज से भी बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था बेहतर विचार है। मौजूदा ट्रेड वॉर, यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भी भारत को प्रभावित करते हैं। डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं। बहुत संभव है कि वे दोबारा राष्ट्रपति बन जाएं। यह चीन और रूस के साथ भारत के लिए भी चिंताजनक हो सकता है।”
गोडबोले के अनुसार, भारत ऊर्जा का बड़ा आयातक बना रहेगा। इसलिए पश्चिम एशिया में शांति हमारे हक में है ताकि हम ईरान से कच्चा तेल आयात जारी रख सकें। भारत ने हाल के वर्षों में तेज गति से विकास करना शुरू किया है। हम डीग्लोबलाइजेशन, युद्ध, महंगाई आदि के कारण इस मौके को नहीं गवां सकते। इसलिए हमें अपने विकास के लिए ब्रिक्स जैसे संगठन की जरूरत है। विकासशील जगत के लीडर की भूमिका निभाने के लिए भी यह जरूरी है।
न्यूयॉर्क में 20 सितंबर 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान ही पुतिन के आग्रह पर ब्रिक्स के सदस्य देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक हुई थी। ब्रिक्स में मूल रूप से चार देश थे- ब्राजील, रूस, भारत और चीन। बाद में दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका इसका कोर सदस्य बना। इस साल चार देशों के जुड़ने के बाद ब्रिक्स-प्लस में नौ देश हो गए हैं। पिछले साल जोहानिसबर्ग सम्मेलन में सऊदी अरब भी इसमें शामिल होने पर सहमत हुआ था, हालांकि अभी तक वह जुड़ा नहीं है। इसके अलावा अफ्रीका के 17, दक्षिण अमेरिका के 7, एशिया के 19 और यूरोप के 3 (कुल 46) देशों ने ब्रिक्स के साथ जुड़ने में रुचि दिखाई है। इसी साल 2 सितंबर को तुर्की ने भी इस संगठन से जुड़ने के लिए औपचारिक आवेदन किया। वह 18 फरवरी 1952 से नाटो का सदस्य है और यूरोपियन यूनियन के साथ भी उसका समझौता है।
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