शायर फहीम जोगापुरी की किताब ‘जमाल रंग’ का हुआ विमोचन

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“मैं नीयत तोड़कर कैसे न जाता मां की खिदमत में,

भला जन्नत में जाने की किसे ख्वाहिशें नहीं होती” रजी अहमद फैज

 ‘ऑल इंडिया मुशायरा में शायरों ने  जमकर पढ़े शेर’

श्रीनारद मीडिया, बड़हरिया,सीवान,बिहार


सीवान जिला के बड़हरिया प्रखंड क्षेत्र के जोगापुर गांव में प्रदेश के मशहूर शायर व अदीब फहीम जोगापुरी की किताब ‘जमाल रंग’ का विमोचन समारोहपूर्वक किया गया.

इसके लिए शायरों,कवियों व साहित्यकारों की महफिल रविवार की रात में जमी और फहीम जोगापुरी की चौथी किताब ‘जमाल रंग’ का विधिवत विमोचन देश के नामचीन शायर अक्स वारसी, मयकश आजमी, इम्तियाज समर, फारुक सीवानी,सुनील कुमार तंग उर्फ तंग इनायतपुरी,रजी अहमद फैजी, मेराजुद्दीन तिसना, डॉ समी बहुआरवी, विपिन शरर, डॉ इरशाद अहमद,जकी हासिमी आदि ने किया.वहीं काव्य संग्रह ‘जमाल रंग’ की समालोचना करते हुए शायर रजी अहमद फैजी ने कहा कि काव्य संग्रह ‘ जमाल रंग’ में उम्मीद व भय का अनूठा संगम है.

शायर फहीम जोगापुरी शब्दों की फसल को उम्मीदों की डाली पर खूबसूरती उगाने का हुनर रखते हैं.उनकी शायरी का संबंध आधुनिक सोच, अध्यात्म, लोकमंगल की कामना, संस्कार, सुंदर विचार,फन रचाव, पुरानी तहजीब से लगाव से है.एक बानगी- ‘ कौन समझाए समंदर के थपोड़ों को फहीम, कैसै-वक्त के भिखारी हो गये’. इससे उनके मिजाज,लहजे, हकीकत बयानी के अंदाज का सहजता से पता चल जाता है.

इस मौके पर ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन फारुक सीवानी की सदारत में हुआ.जिसकी बखूबी संचालन हास्य-व्यंग्य के कवि तंग इनायतपुरी ने किया. मुशायरे में सुप्रसिद्ध शायर मयकश आजमी ने अपना शेर यूं पेश किया’ कुछ दिन शरीफ लोगों के हम साथ क्या रहे,फिर यूं हुआ कि हमने शराफत छोड़ दी’ सराही गयी.वहीं डॉ अक्स वारसी(यूपी) ने यह शेर पढ़ा-‘अदब की रोशनी लेकर कई गुल्फाम आयेंगे,

हमारे बाद महशर तक हजारों नाम आयेंगे’. जो वाहवाही का सबब बना.वहीं फहीम जोगापुरी ने उर्दू के हवाले से अपना शेर कुछ इस तरह प्रस्तुत किया-‘ कैंचियां चाहती हैं गेसूए उर्दू कट जाय, क्या ये मुमकिन है कि तलवार से खूशबू कट जाय‘. डॉ समी बहुआरवी ने यूं पढ़ा-‘तेरी यादों के सुलगाए हुए लोबान बैठे हैं, ये कैसे लोग हैं तुझको जो अपना मान बैठे है’.

मजाहिया शायर सुनील कुमार तंग ने कुछ इस अंदाज में पढ़ा-‘हम हैं गरीब फिर कहां छूट रहे हैं, जिनसे लिए थे कर्ज हमें कूट रहे हैं.’ तो महफिल ठहाकों से गूंज उठी. फारुक सीवानी ने अपना शेर कुछ यूं पेश किया-‘शाइस्तगी है बात में लहजा हसीन है, किस खानकाह-ए-इश्क का वो जानशीन है‘.मां के हवाले से रजी अहमद फैजी का शेर भी सराहा गया-‘मैं नीयत तोड़कर कैसे न जाता मां की खिदमत में, भला जन्नत में जाने की किसे ख्वाहिशें नहीं होती’.

उस्मान काबिश ने अपना शेर यूं पेश किया-‘हाथ फैलाये फिरता है भला क्या देगा, वो तो सायल है दुआओं के सिवा क्या देगा’?.

मौके पर शायर इम्तियाज समर मेराजुद्दीन तिसना, शंभू सजल, जकी हासमी,परवेज़ अशरफ, कमाल मीरापुरी,डॉ इरशाद,विपिन शरर आदि की रचनाएं सराही गयीं।

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