कविता निराश मन में आशा का संचार करती है-प्रो.प्रसून दत्त सिंह।

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विश्व कविता दिवस पर काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन।

चंपारण बाल्मीकि, गोपाल सिंह नेपाली और जॉर्ज ऑरवेल की महान धरती है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय,मोतिहारी में मानविकी व भाषा संकाय के द्वारा बुद्ध परिसर स्थित बृहस्पति सभागार में विश्व कविता दिवस पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन मंगलवार को किया गया।

गोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय में मानविकी और भाषा संकाय के अधिष्ठाता व गांधी भवन परिसर निदेशक प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने किया। वही मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. प्रणवीर सिंह, सारस्वत अतिथि के तौर में समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सुनील महावर, विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक प्रो. कृष्णकांत उपाध्याय और मुंशी सिंह महाविद्यालय मोतिहारी के प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार मिश्र एवं लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय मोतिहारी के प्रचार्य प्रो. अरुण कुमार उपस्थित रहे।

काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए मानविकी और भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘आशा का दीपक’ की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि
‘वह प्रदीप जो दिख रहा है
झिलमिल दूर नहीं है
थक कर बैठ गए क्या भाई!
मंजिल दूर नहीं है” कविता निराशा मन में आशा का संचार करती है और यह हमारे जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक सुंदर मार्ग प्रशस्त करती है।

विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. प्रणवीर सिंह ने प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता को उद्धृत करते हुए कहा
“वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान
आंखों में चुपचाप बही होगी
कविता अनजान” के माध्यम से कविता के सृजन के बारे में अपनी बातें रखी।


वही सारस्वत अतिथि के रूप में उपस्थित समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. सुनील महावर ने करोना काल पर केंद्रित अपनी कविता के माध्यम से उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों को मानवता के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
विशिष्ट अतिथि के तौर पर काव्य गोष्ठी में पधारे विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक प्रो. कृष्णकांत उपाध्याय ने अपने बचपन की यादों को साझा करते हुए काव्य पाठ किया।

वही मुंशी सिंह महाविद्यालय मोतिहारी के प्रचार्य प्रो. अरुण कुमार मिश्र ने धूमिल को उद्धृत करते हुए काव्य लक्षण और उसकी रचना प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि चंपारण की धरती पर ही कविता का जन्म हुआ था। यह बाल्मीकि, गोपाल सिंह नेपाली और जॉर्ज ऑरवेल की महान धरती है।
जबकि लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय मोतिहारी के प्रचार्य प्रो. अरुण कुमार ने कवियों को कुछ सुझाव और जीवन जीने के सूत्र दिए।

काव्य गोष्ठी में सभी अतिथियों का स्वागत विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने अपने कविताओं का पाठ करते हुए कहा कि कविता के माध्यम से किस प्रकार कविता से खेलने वाले लोग आगे बढ़ जाते हैं और कविता लिखने वाले पीछे रह जाते हैं।

पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विमलेश कुमार सिंह ने किया। वही गोष्ठी में उपस्थित सभी का धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.श्याम कुमार झा ने किया। कार्यक्रम में तीस से भी अधिक शोधार्थी और विद्यार्थियों ने अपने काव्य पाठ प्रस्तुत कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। वही काव्य गोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘ज्ञानग्रह’ भेंट कर किया गया।


कार्यक्रम में डॉ. सरिता तिवारी, अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, डॉ. मुकेश कुमार, अध्यक्ष, शिक्षा विभाग, डॉ. गरिमा तिवारी, सहायक आचार्य, हिंदी,डॉ. आशा मीणा सहायक आचार्य,हिंदी, डाॅ.बबलू पाल, सहायक आचार्य, संस्कृत,डॉ विश्वेश वागमी, सहायक अचार्य, संस्कृत, डॉ विश्वजीत बर्मन, सहायक आचार्य, संस्कृत,डॉ.अनुपम वर्मा, सहायक आचार्य, समाजिक विज्ञान,डॉ. रश्मि श्रीवास्तव,सहायक आचार्य, शिक्षाशास्त्र सहित सैकड़ों विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित रहे।

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