काव्य सृजन का संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान : भारत भूषण भारती
श्रीनारद मीडया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरूक्षेत्र (हरियाणा):
कुवि युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग व हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (उर्दू प्रकोष्ठ) के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय साहित्यिक संगोष्ठी एवं कवि गोष्ठी का हुआ आयोजन।
कुरुक्षेत्र, 15 फरवरी: हरियाणा के मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार भारत भूषण भारती ने कहा काव्य सृजन का संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत के महान कवियों, लेखकों के कारण भारत की संस्कृति व लोक परम्परा आजतक जीवित है तथा विदेशों में भी अपनी अमिट छाप बनाए हुए हैं। वे गुरुवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग व हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (उर्दू प्रकोष्ठ) के संयुक्त तत्वावधान में केयू सीनेट हॉल में आयोजित एक दिवसीय प्रो. हिम्मत सिंह सिन्हा एवं अदबी संगम के सूत्रधारों की स्मृति में साहित्यिक एवं कवि गोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि बोल रहे थे।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर मुख्यातिथि भारत भूषण भारती, साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष कुलदीप अग्निहोत्री, केयू छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एआर चौधरी, कुवि के पूर्व अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. लाल चंद गुप्त मंगल, हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी पंचकूला (संस्कृत प्रकोष्ठ) के निदेशक डॉ. सीडीएस कौशल, युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया द्वारा अदबी संगम पुस्तिका का विमोचन किया।
मुख्यातिथि भारत भूषण भारती ने कहा कि आज काव्य पाठ सुनकर उनके गुरुओं के द्वारा बताई गई बात सामने आ गई जिसके लिए उस समय गुरुओं ने कहा था कि समय आने पर कुछ चीजों को उत्तर मिलता है। इस अवसर पर उन्होंने कार्यक्रम में पहुंचे सभी सम्मानित कवियों का भी आभार व्यक्त किया और डॉ. राना गन्नोरी के काव्य पाठ ‘बाकी काम हो चुके अब सिर्फ मरना बाकी है’ को विशेष रूप से सराहा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष कुलदीप अग्निहोत्री ने कहा कि हरियाणा साहित्य अकादमी व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को मिलकर प्रो. हिम्मत सिंह सिन्हा की सभी रचनाओं को दस्तावेज के रूप में संग्रहित कर प्रकाशित किया जाना बहुत जरूरी है। उन्होंने प्रो. हिम्मत सिंह सिन्हा की 1970 में प्रकाशित पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उनका नाता प्रो. सिन्हा से 1970 से रहा है जब वो उनकी पुस्तक पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के विद्यार्थियों ने पढ़ी।
कुवि के पूर्व अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. लाल चंद गुप्त मंगल ने कहा कि काव्य पाठ उर्दू की कविता के माध्यम से प्रकृति के सौंदर्य का व्याख्यान किया और बंसत उत्सव पर आधारित कविता को पढ़ा। हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी पंचकूला (संस्कृत प्रकोष्ठ) के निदेशक डॉ. सीडीएस कौशल ने सभी अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त करते हुए प्रो. हिम्मत सिंह सिन्हा पर स्वरचित कविता को पढ़ा और गुरु महिमा की महत्ता पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के संयोजक की भूमिका निभाते हुए साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने सभी कवियों को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित करने का कार्य किया।
कुवि के युवा सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने मंच का संचालन करते हुए कार्यक्रम में सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा कहा कि काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी मनोभाव को कलात्मक रूप से भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास व दर्शन बहुत पुराना है।
काव्य पाठ में डॉ. केके ऋषि, डॉ. राना गन्नोरी, डॉ. दिनेश दधीचि, जनबा मंगल नसीम, जनाब नफस अम्बालवी अम्बाला, प्रो. कुमार विनोद, मोहतरमा शहनाज भारती, जनबा सूबे सिंह सुजान, डॉ. संजीव अंजुम, डॉ. बलवान सिंह बादल, डॉ. हरीश सिंह बावला ने प्रकृति, संस्कृति, श्रृंगार, वीर रस, सामाजिक समरसता व राष्ट्रीय एकता आधारित विषयों को लेकर काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ किया।
इस मौके पर केयू छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. एआर चौधरी, प्रो. शुचिस्मिता, प्रो. परमेश कुमार, प्रो. अनिल गुप्ता, डॉ. दीपक राय बब्बर, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ. ज्ञान चहल, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. एमके मौदगिल, डॉ. हरविन्द्र राणा सहित काव्य प्रेमी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
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