शराब का जहरीला होना व्यवस्था में कहीं न कहीं खोट है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देशभर में जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। अब गुजरात में जहरीली शराब पीने से 42 लोगों की मौत की खबर सामने आई है। गौरतलब है कि गुजरात में शराब पर पूरी तरह बैन है। वहां बांबे प्रोहिबिशन एक्ट, 1949 के तहत पुलिस शराब खरीदने, पीने और इसे रखने वालों पर कार्रवाई कर सकती है। दोषी पाए गए लोगों को तीन महीने से लेकर पांच साल तक की जेल की सजा का भी प्रविधान है।

उल्लेखनीय है कि देश के कई राज्यों ने शराबबंदी की है। फिर भी वहां अवैध शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है। मालूम हो कि बिहार में शराबबंदी की गई है। फिर भी बिहार में अवैध शराब की बरामदगी आए दिन हो रही है। बिहार में पिछले छह माह के भीतर जहरीली शराब पीने से 40 लोग मर चुके हैं। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर जहरीली शराब के पांव पसारते कारोबार पर अंकुश लगाने में सरकारें नाकाम क्यों साबित हो रही हैं? देश में जहरीली शराब से होने वाली मौतों के चलते बड़ी संख्या में महिलाओं के सुहाग उजड़ रहे हैं। साथ ही बच्चे अनाथ हो रहे हैं। लिहाजा सरकारों को जहरीली शराब पर शिकंजा कसने के हर संभव कोशिश करने होगी।

शराब जहरीली क्यों हो जाती है? जब कच्ची शराब को अधिक नशीली बनाने के उद्देश्य से इसमें यूरिया और आक्सीटोसिन जैसे केमिकल मिला दिए जाते हैं, तब मेथिल अल्कोहल का निर्माण हो जाता है, जो इंसानी शरीर के लिए बेहद जानलेवा होता है। जब यह शरीर के अंदर जाता है तो अंदरूनी अंगों को क्षतिग्रस्त कर देता है। लिहाजा व्यक्ति की मौत हो जाती है। शराब के लगातार सेवन से भी शरीर के लगभग सभी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मेथिल अल्कोहल क्या है?

मेथिल अल्कोहल ग्रुप का सबसे सरल उत्पाद है। यह एक अच्छा विलायक भी है। यही वजह है कि इसका इस्तेमाल दूसरे पदार्थों का घोल बनाने में किया जाता है। मसलन क्लोरोफार्म, पालिश, कृत्रिम रंग, साबुन, इत्र आदि। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शराब का जहरीला होना सिर्फ हादसा नहीं है, बल्कि व्यवस्था में कहीं न कहीं खोट है, लापरवाही है तभी जहरीली शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अंतत: इसका खामियाजा समाज को भुगतान पड़ रहा है।

सरकारी तंत्र को जहरीली शराब से मौत के मामले में मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। यह सही है कि प्रशासन सख्ती बरते तो अवैध रूप से शराब बननी बंद हो सकती है और मौतों का सिलसिला भी रुक सकता है। वैसे शराब पीना एक व्यसन है। व्यसन को महज कानून बनाकर नहीं रोका जा सकता। इसके लिए सरकारी स्तर पर जागरूकता पैदा करने के साथ समाज तथा परिवार को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना होगा। शराबबंदी जन भागीदारी के साथ ही सफल हो सकती है।

 

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