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पोंगल महापर्व18 जनवरी तक मनाया जाएगा! - श्रीनारद मीडिया

पोंगल महापर्व18 जनवरी तक मनाया जाएगा!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिंदू धर्म में पोंगल पर्व मनाया जाता है। बता दें कि आज यानी की 15 जनवरी 2024 को पोंगल का पर्व मनाया जा रहा है। यह 4 दिन तक चलने वाला पर्व है। जोकि 15 जनवरी से 18 जनवरी तक रोजाना अलग-अलग भगवानों की पूजा के लिए समर्पित है। पोंगल पर्व विशेषकर आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाता है।

सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करने की घटना को उत्तर भारतीय राज्यों में मकर संक्रांति और लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। वहीं सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर दक्षिण भारत में पोंगल का उत्सव मनाया जाता है। मकर संक्रांति की तरह ही यह पर्व भी फसल काटने के बाद ईश्वर को आभार प्रकट करने के तौर पर मनाया जाता है।

पहला दिन

तमिल पंचांग के मुताबिक 15 जनवरी 2024 दिन सोमवार से पोंगल पर्व की शुरूआत हो रही है। पहले दिन यह पर्व भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग इंद्र देव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन इंद्र देव की पूजाकर उनका आभार प्रकट किया जाता है।

दूसरा दिन

आपको बता दें कि चार दिन के इस पोंगल पर्व में दूसरा दिन थाई पोंगल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन सूर्यदेव के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए सूर्यदेव को खीर का भोग लगाया जाता है।

तीसरा दिन

इस पर्व के तीसरी दिन यानी की माट्टु पोंगल का दिन कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पशुओं का आभार व्यक्त किया जाता है। पोंगल पर्व के तीसरे दिन गाय-बैल आदि की पूजा का विधान है। माट्टु पोंगल वाले दिन पशुओं को अच्छे से सजाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है। कहीं-कहीं पर इस दिन बैलों की दौड़ भी करवाई जाती है। जिसको जालीकट्टू के नाम से भी जाना जाता है।

चौथा और आखिरी दिन

पोंगल पर्व के चौथे और आखिरी दिन को कन्या पोंगल भी कहा जाता है। कन्या पोंगल के अलावा तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को पारिवारिक मिलन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अपने घर को पत्तों व फूलों से सजाया जाता है। इसके अलावा मुख्य द्वार और आंगन को रंगोली से सजाया जाता है। पोंगल पर्व के आखिरी दिन लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं और सुख-समृद्धि व शांति की कामना करते हैं।

भारत में मनाए जाने वाले पर्वों में मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जो सौर कैलेंडर पर आधारित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जो मकर राशि के शासक थे। मकर संक्रांति पर्व को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है और इस अवसर पर लाखों लोग देश भर में पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। देश के विभिन्न भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही नदियों में स्नान शुरू कर देते हैं। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु प्रयागराज के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करते हैं।

देश के विभिन्न मंदिरों को इस दिन विशेष रूप से सजाया जाता है और इसी दिन से शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी खत्म हो जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर मंदिरों में जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। इस पर्व से जुड़ी लोक मान्यता यह भी है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

शास्त्रों के अनुसार, यह दिन सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुनः प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्त करवाता है। मकर संक्रांति पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है।

मकर संक्रांति को कर्नाटक में सुग्गी कहा जाता है। इस दिन यहां लोग स्नान के बाद संक्रांति देवी की पूजा करते है जिसमें सफेद तिल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये तिल लोग एक दूसरे को भेंट किये जाते हैं। केरल के सबरीमाला में मकर संक्रांति के दिन मकर ज्योति प्रज्ज्वलित कर मकर विलाकू का आयोजन किया जाता है। यह 40 दिन का अनुष्ठान होता है जिसके समापन पर भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है।

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। यहां हलवा बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं। राजस्थान में मकर सकरात के दिन लोग तिल पाटी, खीर का आनंद लेते हैं और पतंग उड़ाते हैं। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, वाराणसी और हरिद्वार में गंगा के घाटों पर तड़के ही श्रद्धालु पहुंच कर स्नान करते हैं। इसके बाद पूजा की जाती है।

उत्तराखंड में इस पर्व की खास धूम होती है। इस दिन पकवान पकाए जाते हैं और इनका कुछ हिस्सा पक्षियों के लिए रखा जाता है। ओडिशा में मकर संक्रांति को मकर चौला और पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति कहा जाता है। असम में यह पर्व बीहू कहलाता है। यहां इस दिन महिलाएं और पुरुष नए कपड़े पहन कर पूजा करते हैं। गोवा में इस दिन वर्षा के लिए इंद्र देवता की पूजा की जाती है ताकि फसल अच्छी हो। तमिलनाडु में यह पर्व पोंगल कहलाता है।

इस दिन से तमिलों के थाई माह की शुरुआत होती है। इस दिन तमिल सूर्य की पूजा करते हैं और उनसे अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। यह पर्व राज्य में चार दिन मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश में भी यह पर्व चार दिन मनाया जाता है। पहले दिन ‘भोगी’ दूसरे दिन ‘पेड्डा पांडुगा’ तीसरे दिन कनुमा और चौथे दिन मुक्कानुमा मनाया जाता है। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भोगी के दिन घर का पुराना और अनुपयोगी सामान निकाला जाता है और शाम को उसे जलाया जाता है।

अयोध्या में भी इस पर्व की खूब धूम रहती है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र सरयू में डुबकी लगाकर रामलला, हनुमानगढ़ी में हनुमानलला तथा कनक भवन में मां जानकी की पूजा अर्चना करते हैं। हरिद्वार में भी इस दौरान मेला लगता है जिसमें श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।

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