होम्योपैथी की लोकप्रियता दुनिया में तेजी से बढ़ी: डॉ अविनाश चन्द्र
श्रीनारद मीडिया, सेंट्र्रल डेस्क:
प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। होम्योपैथी के जनक माने जाने वाले जर्मन मूल के ईसाई फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल को ही हुआ था। विश्व होम्योपैथी दिवस केवल डॉ. हैनिमैन की जयंती के उपलक्ष्य में ही नहीं मनाया जाता बल्कि होम्योपैथी को आगे ले जाने की चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों को समझने के लिए भी मनाया जाता है।
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चिकित्सा पद्धति-होम्योपैथी, डॉ अविनाश ने कहा बीमारी के साथ- साथ बीमार होने के डर से भी बचाती है। होम्योपैथी पद्धति जहां कोई नुकसान नहीं करती है, वहीं इसकी दवाओं की लागत भी बहुत अधिक नहीं होती है। आजकल कई जटिल बीमारियों से पीड़ित मरीजों का होम्योपैथी से इलाज किया जा रहा है। होम्योपैथी से जटिल से जटिल रोग को जड़ से मिटाया जा सकता है। इस चिकित्सा प्रणाली के बारे में जागरूकता पैदा करना तो है ही, साथ ही इसको आसानी से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है।
यह दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। होम्योपैथी चिकित्सा का ही एक वैकल्पिक रूप है, जो “समरूपता” दवा सिद्धांत पर आधारित है। इस पद्धति में रोगियों का उपचार न केवल होलिस्टिक दृष्टिकोण के माध्यम से, बल्कि रोगी की व्यक्तिवादी विशेषताओं को समझकर किया जाता है।
होम्योपैथी एक सुरक्षित चिकित्सकीय तरीका है, जो कई प्रकार की बीमारियों का प्रभावी उपचार कर सकता है। इसकी आदत भी नहीं पड़ती है। यह गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सभी के लिये सुरक्षित है। डॉ अविनाश चंद्र के अनुसार, रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होती है, रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी अधिक बढ़ जाती है।
आज पूरी दुनिया में लोग होम्योपैथी दवाओं पर भरोसा कर रहे हैं और उसके जरिए अपनी सेहत संबंधी समस्याओं का उपचार करवा रहे हैं।
इसपर लोगों का भरोसा इसलिए भी है क्योंकि इसके साइड इफेक्ट की संभावना कम और ठीक होने की संभावना अधिक देखी गई है। प्रत्येक व्यक्ति के लक्षणों को समझना आवश्यक है कि वे रोग के प्रति कैसे प्रतिक्रिया दे रहे हैं और रोग के निदान में उनकी उपचार की शक्ति महत्वपूर्ण है। यही समझ आज होम्योपैथी का आधार बनी है। आपको बता दें कि, हिप्पोक्रेट्स के बाद होम्योपैथी को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया, लेकिन 18वीं शताब्दी के अंत में हैनीमैन ने इसे फिर से जीवंत करने का काम किया। कहा जाता है कि उस समय बहुत तेजी से बीमारी फैली रही थी और चिकित्सा उपचार काफी हिंसक और आक्रामक हो गए थे। उस दौरान हैनिमैन ने नैदानिक चिकित्सा को पूरी तरह से अस्वीकार्य पाया। उन्होंने दवाओं और रसायन शास्त्र पर कड़ी मेहनत की और खराब स्वच्छता के खिलाफ अपना विरोध जताया क्योंकि यही बीमारी के तेजी से फैलने का कारण बन रहा था। इतना ही नहीं हैनिमैन उन चिकित्सा तरीकों और दवाओं के खिलाफ थे जो शरीर पर भयानक दुष्प्रभाव डाल रहे थे। उनके इसी विचार ने चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ ऐसा खोजा, जिसने उन्हें होम्योपैथी का सच्चा संस्थापक बना दिया।
इस दिन को होम्योपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और होम्योपैथी की पहुंच में सुधार करने के लिए मनाया जाता है। होम्योपैथी को बड़े पैमाने पर विकसित करने के लिए आवश्यक भविष्य की रणनीतियों और इसकी चुनौतियों को समझना भी महत्वपूर्ण है। होम्योपैथी की औसत व्यवसायिक सफलता दर को बढ़ाते हुए, शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने की भी आवश्यकता है।
होम्योपैथी एक चिकित्सा प्रणाली है, जो मानती है कि शरीर खुद को ठीक कर सकता है। होम्योपैथी के चिकित्सक पौधों और खनिजों जैसे प्राकृतिक पदार्थों की थोड़ी मात्रा का उपयोग करते हैं। उनका मानना है कि ये उपचार प्रक्रिया को उत्तेजित करते हैं। होम्योपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। साथ ही, यह दिन होम्योपैथी के संस्थापक सैमुअल हैनीमैन के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है।
आप सभी को होम्योपैथी के जनक प्रो.सैमुअल हैनीमैन की जयंती के अवसर पर मनाए जाने वाले #विश्व_होम्योपैथी_दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
Happy World Homeopathy Day विश्व_होम्योपैथी_दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
………..✍️ डॉ अविनाश चंद्र
एडवांस होमियोपैथिक फिजिशियन सिवान
089698 16543
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