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100 साल से एमपी के इस गांव की नहीं बढ़ी जनसंख्या, देश-दुनिया के लिए नजीर बना यह गांव - श्रीनारद मीडिया

100 साल से एमपी के इस गांव की नहीं बढ़ी जनसंख्या, देश-दुनिया के लिए नजीर बना यह गांव

100 साल से एमपी के इस गांव की नहीं बढ़ी जनसंख्या, देश-दुनिया के लिए नजीर बना यह गांव

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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देश ही नहीं विश्‍व की लगातार बढ़ती जनसंख्या बड़ी समस्या बन रही हो, चाहे भारत के लिए, लेकिन इस बीच मध्य प्रदेश का एक जिला आदर्श बना हुआ है. प्रदेश के बैतूल जिले के आठनेर ब्लॉक में है कांग्रेस धनोरा गांव. यह ऐसा अनोखा गांव है, जहां साल 1922 से अब तक यानि पूरे 100 सालों से जनसंख्या स्थिर बनी हुई है. 100 सालों के यहां की जनसंख्या 2000 ही बनी हुई है. ग्रामीण अब इस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं.

बताया जाता है कि इस गांव को परिवार नियोजन का संकल्प राष्ट्रमाता कस्तूरबा गांधी ने दिलाया था. गांववाले आज भी इस संकल्प को निभा रहे हैं. इस गांव से जुड़ी कहानी के मुताबिक, 100 साल पहले 16 अप्रैल सन 1922 में यहां कांग्रेस का सम्मेलन हुआ था. इसमें शामिल होने कस्तूरबा गांधी आई थीं. उन्होंने ग्रामीणों को खुशहाल जीवन के लिए छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा दिया था. कस्तूरबा गांधी की बात को ग्रामीणों ने पत्थर की लकीर माना और फिर गांव में परिवार नियोजन का सिलसिला शुरू हो गया. साथ ही, गाँव का नाम धनोरा से कांग्रेस धनोरा पड़ गया.

 

लेखक रामकिशोर पवार बताते हैं कि सन 1922 के बाद गांव में परिवार नियोजन के लिए ग्रामीणों में जबरदस्त जागरूकता आई. लगभग हर परिवार एक या दो बच्चों के विकल्प पर चला. इससे गांव की जनसंख्या धीरे-धीरे स्थिर होने लगी. बेटों की चाहत में परिवार बढ़ाने की कुरीति को भी इस गांव के लोगों ने खत्म कर दिया. गांव मे ऐसे दर्जनों परिवार हैं, जहां किसी की केवल एक या दो बेटियां हैं और वो बेहद खुश हैं. इसे वे देशहित में अपना योगदान समझते हैं.

 

दो बेटियों के पिता धनराज मायवाड़ का कहना है कि दो बच्चों के बाद परिवार नियोजन को अपनाने से यहां लिंगानुपात भी बाकी जगहों से बेहतर है. बेटी-बेटे में फर्क जैसी मानसिकता यहां देखने नहीं मिलती. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नासिका बारस्कर बताती हैं कि धनोरा के आसपास ऐसे भी कई गांव हैं, जिनकी जनसंख्या 50 साल पहले धनोरा गांव से आधी थी, लेकिन अब वहां की जनसंख्या 4 से 5 गुना बढ़ चुकी है. लेकिन, धनोरा गांव की जनसंख्या अब भी 2000 से कम बनी हुई है. गांव के स्वास्थ्य कार्यकर्ता बताते हैं कि उन्हें कभी ग्रामीणों को परिवार नियोजन करने के लिए बाध्य नहीं करना पड़ा.

 

गौरतलब है कि पूरे देश और दुनिया के सामने धनोरा गांव ने परिवार नियोजन की मिसाल रखी है. लेकिन, लोगों को एक मलाल भी है. इस गांव को आज तक जनसँख्या नियंत्रण के लिए कोई सम्मान या पुरस्कार नहीं मिला. जबकि, प्रशासन खुद इस गांव को देश के लिए प्रेरणा मानता है. बैतूल के लोग इस गांव की उपलब्धि को प्रधानमंत्री तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. जो लोग ये कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या नियंत्रण और बेटियों के जन्म को लेकर जागरूकता की कमी है उन्हें धनोरा गांव जरूर आना चाहिए. यहां के  जागरूक ग्रामीणों से मिलकर ये समझ लेना चाहिए कि चाहे सरकार कोई घोषणा करे या नहीं लेकिन ये गांव अपने आप में परिवार नियोजन का ब्रांड एम्बेसडर है.

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