प्रशांत किशोर की नहीं बनी बात,क्यों ?
दिनकर की कविता के जरिए पीके ने बताई अपनी मजबूरी
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की मुलाकात को लेकर अब दोनों ओर से चुप्पी तोड़ दी गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीटिंग को लेकर बस इतना कहा कि पुराना संबंध है मिलने आए थे, क्या बात हुई उनसे पूछ लीजिए। इसके बाद बारी थी प्रशांत किशोर की। पहले तो नपे तुले शब्दों में उन्होंने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया। फिर कुछ आगे बढ़े तो राष्ट्रकवि दिनकर की रश्मिरथी की कविता की दो पंक्ति को ट्वीट कर अपनी मजबूरी साझा की। अब जदयू ने भी चुप्पी तोड़ी है।
पीके ने बताई अंदर की बात
सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद सियासी गलियारे में यह चर्चा तेज हो गई कि क्या पीके फिर से जदयू का साथ दे सकते हैं? इस बीच सीएम ने मुलाकात पर मुहर लगाते हुए बातचीत का लब्बोलुआब क्या निकला पीके से पूछने की बात कह चर्चे को विराम देने की कोशिश की।
मुलाकात का भेद खुलने के बाद प्रशांत किशोर ने भी मीटिंग पर हामीं भरी और बताया कि मुलाकात के दौरान क्या बातें हुईं और उनका आगे का क्या प्लान है। एक टीवी चैनल से बात करते हुए पीके ने कहा कि पवन वर्मा के कहने पर मैं मिलने गया था। मुझे पहले भी आफर दिया गया था, इस बार भी मिला। लेकिन मैंने जो बिहार के लोगों से जन सुराज अभियान को लेकर कमिटमेंट किया है उससे पीछे नहीं हट सकता।
‘सात दलों के गठबंधन में आगे होगी दिक्कत’
प्रशांत किशोर का कहना है कि उन्होंने सीएम के सामने साफ शब्दों में कहा है कि बिहार में शराबबंदी जमीन स्तर पर बेअसर है। इसके साथ ही बिहार में सात दलों के साथ गठबंधन को लेकर उनकी तरफ से कहा गया कि इंटरनल कंट्राडिक्शन बहुत हैं। आगे चलकर आपको दिक्कत होगी। इस हालात में मेरे साथ देने और ना देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने बताया कि इन सब बातों पर सीएम नीतीश की तरफ से क्या कहा गया बताना ठीक नहीं है और ना ही ये उचित है।
‘पीके के बारे में प्रिडिक्ट करना बहुत मुश्किल’
प्रशांत किशोर की तरफ से आए रिएक्शन के बाद जदयू ने भी चुप्पी तोड़ी। भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि प्रशांत किशोर के बारे में भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है। वो खुद कहते हैं कि पहले मिलने बुलाया गया लेकिन वो नहीं गए। फिर मिलने पहुंच गए। मंत्री का कहना है कि सीएम से मुलाकात के लिए किसी ने तो समय मांगा होगा?
मीटिंग के बाद ऐसा ट्वीट को किसी भी लिहाज से साकारात्मक नही माना जा सकता है। प्रशांत किशोर जदयू के साथ काम करेंगे या नहीं वो तो मुख्यमंत्री ही तय करेंगे। अशोक चौधरी से जब यह पूछा गया कि क्या पीके के जदयू के साथ काम नहीं करने पर पार्टी को नुकसान हो सकता है? इस पर उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर का कद इतना बड़ा नहीं हुआ है कि वो किसी को झटका दे सकें।
पक्ष-विपक्ष की राजनीति से अलग अपनी पदयात्रा की तैयारी में जुटे प्रशांत किशोर (पीके) की दो दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात ने कयासों का दायरा बढ़ा दिया है। पहले तो इस मुलाकात को गोपनीय रखा गया, लेकिन जब नीतीश ने भेद खोल दिया तो पीके की ओर से भी सफाई आ गई।
उन्होंने मुलाकात की बात स्वीकार करते हुए इसे सामाजिक और राजनीतिक तौर पर एक शिष्टाचार मुलाकात बताया और कहा कि उनका जन सुराज अभियान जारी रहेगा। पीके के इस बयान के बाद माना जा रहा है कि इस मुलाकात में दोनों की बात अंजाम तक नहीं पहुंच पाई, क्योंकि बाद में सफाई देते हुए उन्होंने पहले की तरह ही राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना जारी रखी। उन्होंने शराबबंदी को बेअसर और बेगूसराय की घटना को खराब विधि-व्यवस्था का उदाहरण बताया।
स्टैंड में बदलाव नहीं
प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया कि जन सुराज अभियान और बिहार की बदहाली पर उनके स्टैंड में कोई बदलाव नहीं हुआ है। दो अक्टूबर से वह एक साल तक बिहार के अलग-अलग गांवों-प्रखंडों में जाएंगे। जो रास्ता उन्होंने खुद के लिए तय किया है, उस पर कायम हैं। नीतीश से मुलाकात के बारे में भी सफाई दी। कहा कि मुख्यमंत्री से बिहार में जमीन पर अपने चार-पांच महीने के अनुभव को साझा किया और बताया कि कैसे शराबबंदी जमीन पर प्रभावी नहीं है।
बेगूसराय की घटना पर प्रशांत ने कहा कि विधि-व्यवस्था को लेकर लोगों के मन में जो डर है वह इस घटना से सही साबित हो रहा है। प्रशासन का शराबबंदी में लगा हुआ है। इसके चलते विधि-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी है। सरकार का मुखिया और गृह मंत्री होने के चलते यह नीतीश कुमार की जिम्मेदारी है।
दिनकर की कविता के जरिए पीके ने बताई अपनी मजबूरी
नीतीश कुमार से अपनी मुलाकात के बाद पीके ने राष्ट्रकवि दिनकर की दो लाइन के जरिए अपनी स्थिति बताई। स्वयं को ‘रश्मिरथी’ का कर्ण बताया और अपने अभियान के लिए किसी की मदद लेना अस्वीकार किया। उन्होंने रश्मिरथी’ की दो पंक्तियां ट्वीट की-
‘तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा,
आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?
यह संदर्भ उस समय का है जब कर्ण और अर्जुन के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। उसी वक्त अश्वसेन नामक एक सर्प कर्ण से आग्रह करता है कि वह अपने तीर पर उसे बिठाकर अर्जुन के पास भेजे। जीत तय हो जाएगी। दरअसल, अश्वसेन सर्प अर्जुन से बदला लेना चाहता था, क्योंकि खांडव वन को जलाकर उसने नागलोक का विनाश कर दिया था। कर्ण ने अश्वसेन के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
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