आज भी ‘आजाद’ से आबाद है प्रयाग!
जन्मदिवस पर विशेष
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद का आज ही के दिन यानी की 23 जुलाई को जन्म हुआ था। वह ऐसे भारत मां के ऐसे सपूत थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। उन्होंने अपना बचपन देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दिया था। बचपन से ही वह अंग्रेजों से लोहा लेने लगे थे। वहीं जवानी में आजाद ने भारत मां के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए।
जज के सामने पेश हुए आजाद
इस दौरान असहयोग आंदोलन में शामिल आजाद को अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिया गया और उन्हें जज के सामने पेश किया गया। यहां पर जज के साथ हुआ चंद्रशेखर का संवाद बहुत फेमस हुआ। इसी घटना के बाद से उनके नाम में आजाद जुड़ गया।
ऐसे हुआ क्रांतिकारियों से संपर्क
साल 1922 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन बंद करने का ऐलान किया तो इससे देश भर के युवाओं में निराशा आ गई। आंदोलन के बंद होने से आजाद भी निराश हुए। लेकिन तब तक वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ चुके थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई और वह हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ से जुड़ गए। पहले वह गरीबों पर जुल्म करने वाले अमीर लोगों को लूटा करते थे। लेकिन जल्द ही आजाद ने इस काम को छोड़ दिया।
उसूलों के पक्के थे आजाद
बता दें कि चंद्रशेखर आजाद उसूलों के पक्के थे। बता दें कि एक बार लोगों से लूटपाट करने के दौरान एक महिला ने आजाद से पिस्तौल छीन ली। लेकिन आजाद ने उस महिला पर हाथ नहीं उठाया। हालांकि बाद में बिस्मिल ने महिला से पिस्तौल छीनकर आजाद को छुड़ाया। इस घटना के बाद उनके दल ने अपनी नीति बदली और पर्चे बांटकर लोगों को नई नीतियों से अवगत कराने लगे। साथी क्रांतिकारियों में आजाद सम्मानित नजरों से देखे जाते थे। आजाद के पक्के निशाने और तेज दिमाग को देखने हुए राम प्रसाद बिस्मिल ने उन्हें ‘क्विक सिल्वर’ नाम दिया था।
काकोरी और लाहौर कांड
क्रांतिकारी इतिहास में काकोरी कांड एक बहुत बड़ी घटना के रूप में जानी जाती है। ट्रेन में जा रहे खजाने को लूटने के बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को पकड़ना शुरू किया। लेकिन आजाद इस दौरान किसी के हाथ नहीं लगे। वह अपना ठिकाना बदलने में काफी माहिर माने जाते थे। लंबे समय तक आजाद अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। तभी लाला लाजपत राय की मौत के बाद जब भगत सिंह ने घटना का बदला लेने का फैसला किया तो आजाद ने इसमें भगत सिंह का साथ दिया। वहीं लाहौर कांड के सांडर्स हत्याकांड में आजाद ने यह सुनिश्चित किया कि भगत सिंह पकड़े न जाएं।
अंग्रेजों के हाथ न आने वाले चंद्रशेखर आजाद की 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से मुठभेड़ हो गई। लेकिन इस दौरान अंग्रेजों के हाथ आने से पहले आजाद ने खुद को गोली मार ली। बता दें कि आजाद की लोकप्रियता का खुलासा उनकी मौत के बाद हुआ था। वहीं आजाद ने जिस पेड़ के पीछे खुद को गोली मारी थी। अंग्रेजों ने उस पेड़ को भी कटवा दिया था।
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