रौनक दास महाप्रभू के समाधि पर आज से दो दिवसीय संत समागम की तैयारी अंतिम चरण में
संत-समागम में जुटेंगे देशभर से साधु-संत
समाधि-स्थल पर विशाल भंडारे का भी होगा आयोजन
श्रीनारद मीडिया‚ एम सावर्ण‚ भगवानपुर हाट‚ सीवान (बिहार)ः
सीवान जिले के भगवानपुर प्रखंड के सारीपट्टी गांव के रौनक नगर में स्वामी रौनक दास जी महाप्रभु की समाधि-स्थल पर बसंत-पंचमी के दिन शनिवार से आयोजित किए जाने वाले दो दिवसीय संत-समागम के आयोजन की तैयारी अंतिम चरण में हैं। स्थान पर आयोजित समागम के दौरान गांव व आसपास का हर कोई आए साधु-संतों की आतिथ्य का कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहता। समागम के आयोजन को लेकर ग्रामीणों में उत्साह है।
ग्रामीण अपने स्तर से आयोजन में जुटे हैं। लगभग हर कोई इसमें भागीदारी सुनिश्चित करने को आतुर है। दो दिन के समागम के दौरान भजन-कीर्तन व भंडारे के अलावा स्थान को बिजली की रौशनी से सजाई जाती है। हालांकि साधुओं की टोली के विदाई के समय दृश्य बड़ा ही मार्मिक हो जाता है। ग्रामीणों व साधुओं दोनों के ही चेहरे पर एक-दूसरे से जुदा होने का गम साफ झलकता है। गौरतलब हो कि यह आयोजन
स्वामी जी के जीवन काल से ही आयोजित होता रहा है ।
इस अवसर पर बिहार के कई पावन स्थलों के आलावा कोलकता , उड़ीसा , उत्तर प्रदेश के बलिया , नेपाल , दिल्ली , असम आदि स्थानों से संतो का आगमन होता है । जहां दो दिनों तक आध्यात्म की दुनिया रच बस जाती है ।
स्वामी जी का जन्म स्थली गोपालगंज जिले के बैकुंठपुर थाने के टोट हां मलिकान गांव है । बताया जाता है कि उन्होंने अपने घोषित तिथि एवं समय पर समाधि के ली थी । ग्रामीण पंचानंद सिंह , बिद्या जी उपाध्याय , बिलास सिंह आदि ने बताया कि संत समागम के अवसर पर कोविड गाइड लाइन का पालन पालन करना अनिवार्य किया गया है ।
उन्होंने बताया कि समाधि स्थल को सरकार के स्वच्छता मिशन को अद्भुद रूप से परिसर में उतारने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है । समाधि भवन में स्वामी जी के माता जी एवं मामी का भी समाधि अवस्थित है । बगल में साध्वी प्रेम कुमारी माता जी की समाधि भी आस्था का केंद्र है ।
रौनक दास जी ने बचपन में ही अपना ली थी फकीरी …..।
रौनक दास जी की समाधि स्थल के बारे में मान्यता है कि यहां आकर सच्चे मन से कुछ भी मांगने वाले की मुराद अवश्य ही पूरी होती है। रौनक दास जी महाप्रभु के बारे में मान्यता है कि वे गोपालगंज जिले के बैकुंठपुर थाने के टोटहा मालिकाना गांव के जमींदार परिवार में जन्मे थे व बचपन
में ही अपना सबकुछ त्याग फकीरी को अपना लिया। गांव व आसपास के बुजुर्गों का कहना है कि देशाटन करते हुए वे सारीपट्टी गांव पहुंचे व यहीं के होकर रह गए। सारीपट्टी में ही रहने के दौरान उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। कबीर सम्प्रदाय के इस महान संत ने बसंत पंचमी के दिन से दो दिवसीय संत समागम व भंडारे के आयोजन की शुरुआत की जो आज भी जारी है ।
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