बचाव की सावधानी ही अस्थमा से लड़ने का बेहतर उपाय: डॉ अविनाश चन्द्र
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
देश में एक कहावत प्रचलित है कि दमा दम के साथ ही जाता है। दमा रोग को खत्म करना संभव नहीं है। हां रोग की तीव्रता कम की जा सकती है, रोगी को उपचार की जा सकती है होमियोपैथिक डॉक्टर के परामर्श के
द्वारा सांस लेना आसान बनाया जा सकता है।
मई के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है कि इस रोग के प्रति अधिक से अधिक लोगों को जागरूक कर इससे बचाया जाए।
अस्थमा रेस्पिरेटरी सिस्टम से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है।
वैसे तो ये रोग जीन के द्वारा बच्चों के आता है लेकिन लाइफस्टाइल के कारण भी व्यक्ति अस्थमा का शिकार हो जाता है। यह एक बहुत ही भयंकर बीमारी है जिसमें फेफड़ों तक जाने वाले सांस की नली इतनी इतनी पतली हो जाती है कि सांस लेने में काफी दिक्कत होती है।
अस्थमा के सामान्य लक्षणों में
सांस लेने में तकलीफ,
खांसी होना,
बलगम आना
और सांस लेते वक्त घरघर की आवाज आना है।
अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसे पूरी तरह से सही नहीं किया जा सकता है, आप केवल इसे कंट्रोल कर सकते हैं। एलोपैथी में अस्थमा के इलाज के दौरान मरीज को इनहेलर दिया जाता है ताकि अस्थमा अटैक आने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन क्या आप जानते हैं होम्योपैथी में नेचुरल इलाज देकर अस्थमा को सही किया जाता है। आइए आज विश्व अस्थमा दिवस पर हम जानते हैं स्वास्थ्य अस्थमा जागरूकता।
अस्थमा से बचाव
ऐसे बच सकते हैं अस्थमा की बीमारी से होमियोपैथिक डॉक्टर अविनाश चन्द्र ने बताया कि अस्थमा का इलाज डॉक्टर से कराएं। इलाज के साथ ही इसके बढ़ने के कारणों से बचें, तो ही फायदा हो सकता है। दमे का परीक्षण, फेफड़ों की जांच एवं एलर्जी के कारकों का पता लगाकर किया जाता है। रोगी को एलर्जी से मुक्त करने का उपचार किया जाता है। इससे भी दमा में आराम मिलता है। अस्थमा को काबू में करने के लिए उसके कारणों के विपरीत आचरण करें। धूम्रपान न करें, कोई कर रहा हो, तो उससे दूर रहें, ठंड से एवं ठंडे पेय लेने से बचें, थकान का काम न करें, साँस फूलने लगे ऐसा श्रम न करें। उन्होंने बताया कि दमा रोगी को ऐसी दवाइयां दी जाती हैं, जो श्वसन क्रिया को आसान बनाती हैं। इनहेलर्स का प्रयोग आजकल दमा रोग में किया जाता है। ये श्वसन तंत्र की सूजन को कम करते हैंं। इससे रोगी को तुरंत आराम मिलता है और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। और वह आसानी से सांस ले पाता है।
ये हैं अस्थमा के कारण
मेडिकल साइंस में दमा का कारण वंशानुगत भी माना गया है। दमे के मरीज के परिवार में पहले किसी को यह बीमारी रही हो, तो यह भी एक कारण होता है वर्तमान मरीज के लिए। अनुवंशिकता के अलावा अन्य कारणों में एलर्जिक कारण होते हैं। मरीज को कुछ वस्तुओं से एलर्जी हो सकती है, इससे भी दमा होता है। इसके अलावा धुएं व धूल के संपर्क में ज्यादा रहना, रूई, रेशे आदि के बीच काम करना, दमघोंटू माहौल में रहने या काम करने को मजबूर होना, ठंडे माहौल में ज्यादा रहना, ठंडे पेय एवं ठंडी वस्तुओं का सेवन करते रहना, धूम्रपान, प्रदूषण आदि ऐसे कारक हैं जो दमा रोग होने में सहायक होते हैं।
बिना डॉक्टर की सलाह के न लें दवाएं
अगर आप अस्थमा के लिए होम्योपैथिक दवाएं ले रहे हैं तो बिना डॉक्टर की सलाह के न लें। अगर आप किसी दूसरे व्यक्ति के एक्सपीरियंस के हिसाब से दवा लेंगे तो ये नुकसानदायक हो सकती है। साथ ही होम्योपैथी दवा लेने से पहले और बाद में क्या खाना चाहिए ये भी डॉक्टर से अच्छी तरह पूछ लें।
यदि आप होम्योपैथिक दवाओं का सेवन करते हैं, तो दवा लेने के बाद शीशी के ढक्कन को खुला ना छोड़ें, इससे दवा में मौजूद लिक्विड सूख जाता है।
जब होम्योपैथिक दवाएं ली जाती हैं तो उसके तुरंत बाद कुछ खाना पीना नहीं चाहिए। हालांकि ये फॉर्मूला अस्थमा के इलाज में कितना कारगार है इसे डॉक्टर से पूछ लें।
अस्थमा के लिए होम्योपैथिक उपचार अस्थमा के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करता है।
बीमारी के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ उपचारों में आर्सेनिक एल्बम, एंटीमोनियम टार्ट, स्पोंजिया टोस्टा, इपेकैक और नेट्रम सल्फ्यूरिकम अमोनियम कार्बनिकम एस्पीडोस्पर्मा इत्यादि शामिल हैं।
होम्योपैथिक उपचार अस्थमा के कारण को कम करता है और लक्षणों की पुनरावृत्ति को कम करने में मदद करता है।
लेखक डॉ अविनाश चन्द्र
होमियोपैथिक फिजिशियन सीवान
पता अस्पताल रोड सदर अस्पताल के सामने सीवान।
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