जेल में कैदी बना रहे खादी के कपड़े : बनास महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बने उत्पाद

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सरकार की ओर से दी जा रहा मजदूरी

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

कैदियों को जेल से बाहर निकलने के बाद रोजगार उपलब्ध कराने और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्रीय कारागार जयपुर और टोंक जेल ने अनूठी पहल शुरू की है। जेल में कैदियों के द्वारा बनाए जा रहे खादी के उत्पाद बनास महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। कैदियों के द्वारा बनाए गए खादी के वस्त्र की लागत की मजदूरी ग्राहकों से नहीं ली जा रही है। लोगों को कच्चे माल के दाम पर ही खादी वस्त्र बेचे जा रहे हैं। कैदियों की मजदूरी का पैसा सरकार की ओर से दिया जा रहा है।

जिला जेल अधीक्षक वैभव भारद्वाज ने बताया कि उत्पादों से मिलने वाले रुपयों में से सरकार के नियमानुसार 75 प्रतिशत राशि कैदियों को और 25 प्रतिशत राशि बंदी द्वारा नुकसान पहुंचाया गए पीड़ित पक्ष को दी जाएगी। बंदियों की ओर से बनाए खादी के उत्पाद की स्टॉल बनास मेले में लगाई गई है। जहां ये उत्पाद आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इस स्टॉल का जेल अधीक्षक वैभव भारद्वाज ने निरीक्षण कर लोगों को हाथ से बने इन वस्त्रों की खूबियां बताई। लोग भी मशीनरी के इस युग में हाथ से बनाई गई दरी, पट्टी आदि उत्पादों की क्वालिटी काफी पसंद कर रहे हैं।

टोंक जिला जेल अधीक्षक वैभव भारद्वाज ने बताया कि जो व्यक्ति अपराध कर जेल में रहता है और वह सजा काटने के बाद बाहर निकलता है, तो उसके माथे पर अपराध का कलंक रहता है। उसे लोग कटे से रहते है। वह समाज की मुख्य धारा से कट जाता है। फिर वह हताश होकर अपराध की दुनिया में आगे बढ़ जाता है। इससे फिर क्राइम बढ़ता है। अपराध को कम करने और इन बंदियों को भविष्य में रोजगार के विकल्प देकर आत्मनिर्भर बनाने, समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए इन कैदियों को हथकरघा उद्योग से जोड़ा है। हाथ से खादी वस्त्र बनाने की इन्हे ट्रेनिंग देकर अब इनसे बिना मशीनों के हाथ से खादी वस्त्र बनाए जा रहे हैं।

सरकार नहीं लेती है इन उत्पादों का पैसा

जिला जेल अधीक्षक वैभव भारद्वाज ने बताया कि कैदियों से ये वस्त्र बनवाकर सरकार का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है, बल्कि कैदियों को बाहर निकलने के बाद रोजगार उपलब्ध कराना है। ताकि कैदी समाज की मुख्य धारा में फिर से जुड़ें। इसके लिए इनसे जेल में ही ट्रेनिंग देकर विभिन्न तरह के उत्पाद बनवाए जा रहे है। इन्हें बेचकर प्राप्त होने वाले रुपए भी सरकार नहीं लेती है। ये पैसा बंदी कल्याण कोष में जमा होता है। जो आगे चलकर बंदियों के विकास में ही काम आता है। इन्हे मजदूरी सरकार देती है।

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