डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना के पक्ष और विपक्ष.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कोविड-19 महामारी ने शिक्षा क्षेत्र को गहन रूप से प्रभावित किया है। हालाँकि महामारी के पहले से भी आकांक्षी छात्रों के लिये पर्याप्त संख्या में विश्वविद्यालयों की कमी से उनके पास सीमित विकल्प ही रहे थे। इससे उच्च शिक्षा प्रदान करने के तरीके में एक सुधार की आवश्यकता उत्पन्न हुई है।
डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उभार ने टीचिंग-लर्निंग विधियों, विश्वविद्यालय प्रशासन प्रणालियों, उच्च शिक्षा संबंधी लक्ष्यों और भविष्य में स्थापित होने वाले विश्वविद्यालयों के संबंध में एक नए दृष्टिकोण अपनाने का अवसर दिया है।
बजट 2022-23 में एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की गई है। यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय है, क्योंकि एक डिजिटल विश्वविद्यालय विविध भाषाओं में उच्च गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक बेहतर पहुँच प्रदान करने में सक्षम होगा और यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में निर्धारित दृष्टिकोण के साथ भी संरेखित होगा।
भारत में डिजिटल विश्वविद्यालय में निहित संभावनाएँ और अवसर
डिजिटल विश्वविद्यालयों के संबंध में क्या प्रस्तावित किया गया है?
- केंद्र सरकार “विश्वस्तरीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा” प्रदान करने हेतु और विभिन्न भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन लर्निंग को बढ़ावा देने हेतु एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी।
- विद्यालयों के बंद रहने के कारण हुए ‘लर्निंग लॉस’ (Learning Loss) को संबोधित करने के लिये सरकार ‘प्रधानमंत्री ई-विद्या’ (PM e-Vidya) योजना के अंतर्गत ‘वन क्लास वन टीवी चैनल’ (One Class One TV Channel) पहल का भी विस्तार करेगी।
- प्रस्तावित डिजिटल विश्वविद्यालय और विस्तारित टीवी शिक्षण कार्यक्रम से भारत के ‘अमृत काल’ में आगे बढ़ने हेतु आधुनिक, अग्रणी और व्यावहारिक खाका तैयार करने में मदद मिलेगी।
पक्ष में तर्क
- लर्निंग के वर्तमान मॉडल की अक्षमता: यह मान्यता बढ़ती जा रही है कि वर्तमान विश्वविद्यालय मॉडल कठोर है और पारंपरिक विश्वविद्यालय छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों, वित्तीय क्षमताओं और विविध संज्ञानात्मक क्षमताओं का ध्यान रखने हेतु शिक्षा को अनुरूपता प्रदान कर सकने में विफल रहे हैं।
- इस परिदृश्य में शिक्षाविदों और नीतिनिर्माताओं को आवश्यक
- आवश्यकता अनुरूप उच्च गुणवत्तायुत “कभी भी/कहीं भी” शिक्षा प्रदान करने के लिये एक लचीली शैक्षिक प्रणाली का सृजन करने की आवश्यकता महसूस हुई है।
- आर्थिक लाभ की स्थिति: शिक्षाविदों द्वारा इस तरह की पूर्व-निर्धारित शिक्षा पद्धति भारतीय अर्थव्यवस्था को एक व्यापक आकार प्राप्त करने में मदद करेगी।
- प्रौद्योगिकी के साथ अद्यतन व्यवस्था: उभरती प्रौद्योगिकियों से संचालित सूचना अर्थव्यवस्थाओं के साथ नियोजित लोगों के लिये अपनी बदलती भूमिकाओं के मद्देनज़र प्रासंगिक नए कौशल प्राप्त करना भी आवश्यक हो जाता है। वर्तमान मॉडल इस संदर्भ में अधिक सहायक नहीं है।
- वैज्ञानिक प्रगति में योगदान: चूँकि डिजिटल यूनिवर्सिटी नेटवर्क पूर्णतः ‘हब-स्पोक मॉडल’ (Hub-Spoke Model) पर आधारित होगी, यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी और ब्लॉकचेन जैसे उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर अत्याधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी प्लेटफाॅर्म और डिजिटल कंटेंट विकसित कर सकती है।
विपक्ष में तर्क
- डिजिटल विश्वविद्यालयों के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा इस संबंध में सवाल खड़े करती है कि ऑनलाइन शिक्षा हाशिये पर स्थित लोगों की उच्च शिक्षा तक अधिकाधिक पहुँच और उनकी सफलता का समर्थन करने में कितनी मदद कर सकेगी।
- ऑनलाइन शिक्षण को सार्थक शिक्षा (Meaningful Education) का पूर्ण विकल्प नहीं माना जाना चाहिये। स्कूल बंद रहने की स्थिति में यह कुछ संलग्नता प्रदान कर सकता है, लेकिन कक्षा और स्कूल के छात्रों या लर्निंग कम्युनिटी के लिये यह व्यक्तिगत शिक्षण (In-Person Learning) के दृष्टिकोण से शैक्षणिक रूप से निम्नतर विकल्प ही है।
- पहली पीढ़ी के आकांक्षियों के पास कॉलेज के माध्यम से आगे बढ़ते समय आश्रय या निर्भरता के लिये सांस्कृतिक पूंजी उपलब्ध नहीं होती।
- ये छात्र डिजिटल डिवाइड के दूसरी तरफ (यानी कम पहुँच रखने वाले) भी होते हैं जो उन्हें दोहरी मार का शिकार बनाएगा यदि डिजिटल मोड को ही शिक्षा का मुख्य आधार बना दिया जाए।
- इसके साथ ही डिजिटल लर्निंग कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से भी संबद्ध है जिसमें बार-बार बाधित होने वाली इंटरनेट कनेक्टिविटी एवं बिजली कटौती से लेकर हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्शन प्राप्त करने की वित्तीय बाधाएँ और देश में कॉलेज जाने वाले छात्रों के पास डिजिटल साक्षरता की कमी एवं डिजिटल उपकरणों तक सीमित पहुँच जैसी कई समस्याएँ शामिल हैं।
आगे की राह
- ऑनलाइन लर्निंग और ऑफलाइन लर्निंग परस्पर पूरक बनाना: यदि विश्वविद्यालयों को छात्रों के लिये प्रासंगिक बने रहना है तो उन्हें अपने गैर-कामकाजी और कामकाजी दोनों तरह के छात्रों की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपने कार्यकरण को अनुकूलित करना होगा।
- जबकि लर्निंग के डिजिटल रूपों में छात्रों को स्वतंत्र रूप से लर्निंग के लिये सक्षम बनाने की क्षमता है, शिक्षा के पारंपरिक एवं डिजिटल रूपों को परस्पर अनन्य नहीं माना जाना चाहिये।
- ऑनलाइन लर्निंग को एक बड़े जटिल तंत्र के छोटे से हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिये, जहाँ प्रत्यक्ष मानव संलग्नता और सामाजिक शिक्षण को ही महत्त्वपूर्ण केंद्रीय भूमिका सौंपी जानी चाहिये।
- डिजिटल विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तुत अवसर: डिजिटल विश्वविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया से लेकर डिजिटल प्रारूप में शिक्षण सामग्री प्रदान करने, ऑनलाइन अंतःक्रिया, निरंतर मूल्यांकन और डिग्री प्रदान करने तक लर्निंग मूल्य शृंखला के सभी घटकों को एकीकृत कर सकते हैं।
- शिक्षा के लिये डिजिटल हब: डिजिटल विश्वविद्यालय ‘स्वयं’ (SWAYAM), स्वयं-प्रभा (SWAYAM-Prabha), ई-पीजी-पाठशाला (ePG-Pathshala), ई-ज्ञानकोश (eGyanKosh), राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी और वर्चुअल लैब जैसी मौजूदा क्षमताओं को एक कायिक इकाई में एकीकृत किया जा सकता है।
- यह हब IIT, IIM जैसे सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थाओं और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग कर एक वहनीय विश्वस्तरीय टीचिंग-लर्निंग पारितंत्र का निर्माण कर सकता है।
- पहली पीढ़ी के आकांक्षियों का समर्थन: पहली पीढ़ी के आकांक्षियों को शिक्षकों और समकक्षों द्वारा लगातार समर्थन एवं सहयोग प्रदान करने की आवश्यकता होगी, अन्यथा वे हाशिये पर ही बने रहेंगे और अंततः कॉलेज छोड़ देंगे या असफल हो जाएंगे।
- इसलिये गहराई से विचार करने और ऐसे प्रभावी उपायों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे डिजिटल शिक्षा (भले ही यही मुख्यधारा बन जाए) इन छात्रों को शेष प्रौद्योगिकी-अनुकूल पीढ़ी के छात्रों से पृथक करने के बजाय इन्हें अधिकाधिक लाभ पहुँचाए।
- यह भी पढ़े…..
- भारत का डेयरी और पशुधन क्षेत्र के संबंधित मुद्दे.
- एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड योजना से देश के 35 राज्य व केंद्र शासित प्रदेश जुड़े.
- सेक्स करने का हमेशा मन करता है तो आप बीमार है!
- कहां मिलता है प्यार और क्या है उसका सही सबक?