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जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर - श्रीनारद मीडिया

जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कांग्रेस समेत विपक्षी दलों से मांग की जा रही है कि केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना करवानी चाहिए. ये मांग हर बीतते दिन के साथ बढ़ती जा रही है. इस बीच जाति जनगणना का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. देश की शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को पिछड़े और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों के कल्याण के लिए जातिवार जनगणना कराने का निर्देश दे.  2 सितंबर को इस पर सुनवाई होने वाली है। इस याचिका में केंद्र सरकार ( Central Government ) से आग्रह किया गया है कि वह पिछड़े और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों  के कल्याण हेतु जातिवार जनगणना ( Caste-wise Census ) का आयोजन करे।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ये याचिका ऐसे समय पर पहुंची है, जब खुद बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के एलजेपी (आर) जैसे सहयोगियों ने भी जाति जनगणना की मांग की है. उधर याचिकाकर्ता की तरफ से जाति जनगणना के पांच फायदे भी बताए गए हैं. आईएएनएस के मुताबिक, जनहित याचिका में जनसंख्या के अनुसार कल्याणकारी उपायों को लागू करने के लिए 2024 की जनगणना और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के लिए डाटा हेतु जल्द से जल्द जनगणना कराने की मांग की गई है.

जाति जनगणना के पांच फायदे क्या हैं? 

  1. वंचित समूहों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जातिवार जनगणना से वंचित समूहों की सटीक पहचान करने में सहायता मिलेगी, जिससे इन समूहों के कल्याण के लिए बेहतर योजनाएं बनाई जा सकेंगी।
  2. संसाधनों का समान वितरण जातिगत जनगणना के माध्यम से संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा, जिससे समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिल सकेंगे।
  3. नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन ( Effective Policy Implementation ) जातिगत जनगणना के आधार पर नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करना आसान होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि योजनाओं का लाभ सही लोगों तक पहुंचे।
  4. सटीक आंकड़े ( Accurate Data ) पिछड़े और हाशिए पर पड़े वर्गों का सटीक आंकड़ा सामाजिक न्याय ( Social Justice ) और संवैधानिक उद्देश्यों ( Constitutional Objectives ) को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
  5. नीति-निर्माण में सहायक ( Aiding in Policy-Making ) डेटा आधारित दृष्टिकोण नीति-निर्माण के लिए जरूरी है, जिससे वंचित समुदायों की भलाई के लिए योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना आसान हो जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 340 का संदर्भ

याचिका में संविधान के अनुच्छेद 340 ( Article 340 ) का उल्लेख किया गया है, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की जांच के लिए आयोग की नियुक्ति का आदेश देता है। जनगणना न केवल जनसंख्या में हुए बदलावों का ट्रैकर होती है, बल्कि यह देश के लोगों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक आंकड़ा ( Socio-Economic Data ) भी उपलब्ध कराती है। इसका इस्तेमाल नीति-निर्माण (Policy-Making), आर्थिक योजना (Economic Planning), और विभिन्न प्रशासनिक उद्देश्यों (Administrative Purposes) के लिए किया जा सकता है।

जनहित याचिका में कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक जातिवार जनगणना से वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद मिलेगी. ये तो बात हुई जाति जनगणना के तीन फायदों की. इसके अलावा जाति जनगणना के दो और फायदे हैं.

याचिका में बताया गया है कि इसमें पहला पिछड़े और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों का सटीक आंकड़ा सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है. दूसरा फायदा ये है कि नीति-निर्माण के लिए डाटा आधारित नजरिया अपनाना जरूरी है. सटीक डेटा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और जनसांख्यिकी को समझने में मदद करता है, जिससे वंचित समुदायों की भलाई करना आसान हो जाता है.

2 सितंबर को होगी जाति जनगणना की याचिका पर सुनवाई

याचिका में कहा गया है कि संविधान का आर्टिकल 340 सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का आदेश देता है. जनगणना सिर्फ जनसंख्या में हुए बदलाव का ट्रैकर नहीं है, बल्कि देश के लोगों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक आंकड़ा भी मुहैया कराता है, जिसका इस्तेमाल नीति-निर्माण, आर्थिक योजना और विभिन्न प्रशासनिक उद्देश्यों में किया जा सकता है. इस याचिका पर 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है.

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