चंडीगढ़ को लेकर 55 वर्ष के बाद पंजाब-हरियाणा का सियासी पारा चढ़ा,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चंडीगढ़ में कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सर्विस रूल के लागू होने के बाद चंडीगढ़ पर हक को लेकर पंजाब और हरियाणा में सियासी पारा चढ़ गया है। केंद्रीय सर्विस रूल्स के खिलाफ पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा विधानसभा में पास किए गए निंदा प्रस्ताव प्रस्ताव से नाराज हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार को हरियाणा विधान सभा का विशेष सत्र बुलाया है।
हरियाणा सरकार विधान सभा में पंजाब सरकार के एकतरफा प्रस्ताव का विरोध करते हुए चंडीगढ़ पर अपना दावा बरकरार रखा जाएगा। साथ ही पंजाब द्वारा एसवाइएल नहर का निर्माण कराने, हरियाणा को उसके हिस्से का पानी देने तथा 400 हिंदी भाषी गांव देने संबंधी प्रस्ताव भी विधानसभा में पारित किया जा सकता है। इसे लेकर पंजाब की सियासत भी गर्म हो गई है।
चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी हो इसे लेकर 55 वर्षों से सियासत चलती आ रही है। पिछले एक दशक से यह मुद्दा गौण होता नजर आ रहा था, लेकिन चंडीगढ़ में केंद्रीय सर्विस रूल्स के लागू होने के बाद आप सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास करने के बाद यह मुद्दा फिर से उभर गया है।
पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने तो ट्वीट कर कहा ‘27 गांव को उजाड़ कर बना चंडीगढ़ पंजाब का है। कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना, चंडीगढ़ तो बहाना है पंजाब के दरियाई पानी पर निशाना है।’ सिद्धू ने स्पष्ट कर दिया है कि पंजाब में आतंकवाद की जननी बनी सतलुज यमुना कनाल (एसवाईएल) मुख्य मुद्दा है, क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह मुद्दा तेजी से उभरा है। एसवाईएल को लेकर पंजाब की आप सरकार चुप है।
वहीं, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने निशाना केंद्र सरकार पर साधा है। उनका कहना है, केंद्र सरकार ने आप सरकार के करंट को चैक करने के लिए टेस्टर लगाया है। जाखड़ ने ‘चालाक बंदर और बिल्लियां’ कहानी का जिक्र कहते हुए कहा, कोई सरकार इतनी बेवकूफी नहीं करेगी कि वह पंजाब के पानी को हाथ लगा दे। वो भी तब जब कृषि कानून को लेकर सरकार अपना हाल देख चुकी है।
पंजाब भाजपा के प्रदेश प्रधान अश्वनी शर्मा ने कहा कि यह केवल सियासत हो रही है। चंडीगढ़ पंजाब का था है और रहेगा। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व विधायक प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि एक ही देश में दो कानून नहीं हो सकते हैं। पूरे देश में आज तक जिस भी राज्य का बंटवारा हुआ है, तो जो हिस्सा टूटकर अलग हुआ है, उसे नई राजधानी दी जाती है। केंद्र सरकार हरियाणा को नई राजधानी दे। चंडीगढ़ पंजाब का ही है।
वहीं, पंजाब के नेताओं की सर्वाधिक चिंता एसवाईएल नहर को लेकर है, क्योंकि हाई कोर्ट दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री को पहले ही यह निर्देश दे चुका है कि वह आपस मैं बैठकर फैसला कर लें। हाई कोर्ट के इस निर्देश पर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ दो बैठकें भी हुई थी, लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला। ऐसे में अब सबकी नजर आप सरकार पर टिकी हुई है कि एसवाईएल पर वह क्या स्टैंड लेती है।
दोनों प्रदेशों में केवल चंडीगढ़ ही नहीं, बल्कि एसवाईएल और पंजाबी व हिंदी भाषाई क्षेत्रों को लेकर भी लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। वर्ष 1966 में हरियाणा गठन के बाद वर्ष 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चंडीगढ़ पंजाब को सौंपने का फैसला किया था, लेकिन हरियाणा में विरोध के चलते मामला ठंडे बस्ते में चला गया। हरियाणा विशेष सत्र में चंडीगढ़ पर अपना अधिकार जताता है तो पंजाब केंद्र के 1970 के फैसले को आधार बनाकर इसका विरोध कर सकता है।
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