राहुल गांधी ने मोहन भागवत पर साधा निशाना,क्यों?
राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से ‘सच्ची स्वतंत्रता’ प्रतिष्ठित हुई- मोहन भागवत
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भाजपा और आरएसएस पर भड़के
राहुल ने कहा कि ‘भाजपा और आरएसएस द्वारा सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया गया है। जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया जा रहा है। पार्टी का हर कार्यकर्ता कठिन परिस्थिति में भी इस विचारधारा के खिलाफ लड़ रहा है।’
चुनाव आयोग को भी घेरा
लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष ने चुनाव आयोग पर भी सवालिया निशान उठाए। उन्होंने कहा कि देश के चुनावी सिस्टम में एक गंभीर समस्या है। राहुल ने कहा कि पार्टी ने महाराष्ट्र में वोटरों की संख्या अचानक बढ़ने पर चुनाव आयोग से जानकारी मांगी थी, लेकिन उन्होंने देने से मना कर दिया।
वोटर्स के आंकड़ों में फर्क का आरोप
- राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वोटरों के आंकड़ें में 1 करोड़ का फर्क है। उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह बताए कि ऐसा क्यों हुआ।
- राहुल ने कहा कि कांग्रेस ने देश के लोगों के लिए काम किया है। संविधान की नींव पर इस देश की सफलता बुनी गई है। उन्होंने कहा कि हम यहां से जो आइडिया लेकर जाएंगे, उसे देश के अन्य हिस्सों में फैलाएं, यह जरूरी है।
राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा से ‘सच्ची स्वतंत्रता’ प्रतिष्ठित हुई- मोहन भागवत
समारोह में ज्ञात-अज्ञात कारसेवकों और राम मंदिर निर्माण के सहभागियों को समर्पित सम्मान राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय को प्रदान किया गया।वहीं, राय ने पुरस्कार ग्रहण करने के बाद कहा कि वह यह पुरस्कार राम मंदिर आंदोलन में शामिल उन सभी ज्ञात-अज्ञात लोगों को समर्पित करते हैं, जिन्होंने अयोध्या में यह मंदिर बनाने में सहयोग किया।उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के अलग-अलग संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या में बना यह मंदिर ‘हिंदुस्तान की मूंछ’ (राष्ट्रीय गौरव) का प्रतीक है और वह इस मंदिर के निर्माण के निमित्त मात्र हैं।
इस अवसर पर लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी मौजूद रहीं।
उन्होंने कहा कि हमारा स्व राम, कृष्ण और शिव हैं। राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं। कृष्ण पूरब से पश्चिम को जोड़ते हैं। शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं। सत्य का साक्षात्कार हमें राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ ने कराया। यह यज्ञ शुरू इसलिए नहीं हुआ था कि किसी का विरोध करना है, किसी से झगड़ा होना है। पौष शुक्ल द्वादशी का नया नामकरण हुआ है। पहले हम कहते थे कि वैकुंठ एकादशी, वैकुंठ द्वादशी, अब प्रतिष्ठा द्वादशी कहना है, क्योंकि अनेक शतक से परचक्र झेलने वाले भारत की सच्चे स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा हो गई।