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भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की राजनैतिक स्थिति एक प्राथमिकी .. - श्रीनारद मीडिया

भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की राजनैतिक स्थिति एक प्राथमिकी ..

भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की राजनैतिक स्थिति एक प्राथमिकी …

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरुक्षेत्र :

काफिला फिर से चलेगा इश्क का सेहरा ब सेहरा।
न लैला ऊंट से उतरेगी न मजनू पीछा छोड़ेगा।।

पानीपत : प्रस्तुति डा. महेंद्र शर्मा शास्त्री आयुर्वेदिक अस्पताल के संचालक एवं प्रख्यात ज्योतिषाचार्य। यह तो एक उबरते हुए राजनेता राहुल गांधी पर राजनैतिक भविष्य पर प्राथमिक आंकलन है और यह तो ईश्वर जानते है या फिर राहुल कि भविष्य कैसा रहेगा, यह इनकी कार्यशैली और विवेक पर निर्भर करता है …

अविभाजित भारत (पाकिस्तान) के जिस क्षेत्र से हमारे पूर्वज हैं वह मुल्तान क्षेत्र सनातन धर्म के नाम पर मर मिटने वाले गुरुओं का, भगवान में निष्ठा रखने वाले भक्त प्रह्लाद के साथ वीर हकीकत राय जैसे बलिदानी युवकों का है की और इश्क पर जान लुटाने वाले लैला मजनू ससी और पुन्नू की भूमि है। मस्ती के आलम और समारों के शानदार इतिहास के श्रवणन के शौकीन अब तक बचे खुचे हमारे बूढ़े बुजुर्ग आज भी तत्कालीन लोक गीत दोहरे छ्न्दो के दीवाने हैं। उनका समय सम्पूर्ण अभाव का था , शिक्षा चिकित्सा, भोजन, व्यवसाय हर प्रकार की समस्याएं होने के बावजूद भी हम गरीब अवश्य थे फिर भी संतोषी थे और ईश्वर में दृढ़ विश्वास और आस्था रखने वाले हैं क्यों कि इस्लाम का आगमन हमारे अविभाजित पश्चिमी भारत से ही हुआ था, भारत वर्ष में सब से पहले हम ही इस्लामिक उग्रवाद का शिकार हुए और उग्रता के बावजूद हम ने धर्म नहीं छोड़ा। बात अपने बुजुर्गों के क्षेत्र की इस लिए कि उन्होंने जो कष्ट सहे आज हम में वह निष्ठा, दृढ़ता और साहस नहीं है। सभी महापुरुषों को सादर वंदन करते हुए आज की राजनैतिक चर्चा को उपरोक्त वर्णित शेर से आगे बढ़ाते हैं …

 

कि यदि भारत के लोग कहते हैं कि हमारे यहां प्रजातंत्र है, जिस में चुनाव होते हैं, देश को चलाने के लिए संविधान है जिस के दिन लदते जा रहे हैं । आज हमारे देश में जो संविधान है उस को न तो कोई मानता है और न ही कोई पढ़ता है। आज तो संसद में राजतंत्र में राजदंड प्रतीक संगोल चलना शुरू हो गया है जिसमें “राजा परं देवतम्” नियमन चल रहा है और यह चुनाव भी व्यक्ति विशेष की गारंटी के नाम पर हुए हैं। प्रजातंत्र की विधायिनी कार्यपालिका का प्रभाव तो समाप्त हो चला है साथ ही न्यायपालिका भी असहाय नजर आ रही है। यद्यपि हमारे देश का रखवाला तो भगवान है वह अपना धर्म संतुलन स्थापित करना जानता है भगवान न जाने कब राजनीति का केदारनाथ कर दें। ईश्वर का खेला जब होगा तब देखा जाएगा लेकिन यदि इस प्रकार की व्यक्तिवाद और निरंकुश राजतंत्रीय व्यवस्था की राजनैतिक मानसिकता की स्थिति 5/10 वर्ष (याने एक दो चुनाव) और चलती रही तो वह दिन दूर नहीं लगते कि आज जो चुनाव विभिन्न राजनैतिक दलों के मध्य हुए है आने वाले समय में देश को चुनावों में हमको एक ही राजनैतिक दल के दो प्रत्याशियों में से एक को चुनना होगा। यदि हम देश में स्वास्थ्य प्रजातंत्र चाहते हैं तो प्रतिपक्ष को वर्तमान संसद में जारी गति (राजनैतिक वातावरण) को बनाए रखना आवश्यक हो गया है। इसी से देश विपक्ष के राजनैतिक और नेताओं का अपना अस्तित्व बनाए रखने के वर्तमान से अधिक तेज संघर्ष करना होगा जिसमें संघर्ष और सहिष्णुता की भूमिका मुख्य रहने वाली है।

 

देश ने न केवल राजनेताओं को सचेत रहना होगा बल्कि आम जनता को भी जागृत होना होगा कि उनके मौलिक अधिकारों का किसी प्रकार का हनन तो नहीं होता जा रहा, अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश तो नहीं लग रहा। देश में सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार है कि वह स्वेच्छा से किसी भी राजनैतिक व्यक्ति या दल के साथ चलें लेकिन आज गंभीर चिंतन का विषय तो यह है कि देश में कोई कितनी सीमा तक अंधा होकर इन नेताओं का अनुगमन करे, यदि हम किसी तथाकथित ज्ञानी अज्ञानी के भक्त बनेंगे तो देश में हाथरस जैसा राजनैतिक हादसा हो जाएगा। दो दिन पूर्व नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जिस संतुलित राजनैतिक भाषा और ज्ञान से संसद में जो भाषण दिया जिस जिस ने भी वह भाषण सुना या सोशल मीडिया पर सुन रहे हैं वह राहुल के अनुगामी बनता प्रतीत हो रहा हैं। गत दस वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ जिसने संसद में सत्ता से उसकी कारकर्दिगी के प्रश्न पूछे, इन प्रश्नों उतर के जवाब के अभाव में सत्ता पक्ष इतना मजबूर हो उठा कि वह लोकसभा अध्यक्ष से संरक्षण मांगने लगा कि इसको चुप करवाइए और कहीं यह और बखिया न उधेड़ दे। राजनैतिक वास्तविकता तो यह है कि जिस किसी ने भी अतीत में इनसे प्रश्न किया उसे किसी न किसी वजह से जलील कर के सलाखों के पीछे धकेल दिया गया कि …. लगे रहो मुन्ना भाई।

 

देश के आम चुनावों में राहुल की राजनैतिक यात्राओं के संग मुख्य भूमिका सोशल मीडिया की भी रही है कि जिसने भारतीयों की आंखों पर से विकास का हरा चश्मा उतार कर राजनैतिक परिदृश्य में देश के विकास के सूखे दृश्य दिखा दिए , इन भद्रजन पत्रकारों को दिल से प्रणाम कि यह लोग डरे, बिके और झुके नहीं। आज देश में गोदी मीडिया पर न वाले समाचारो और डिबेट्स को न तो कोई सुनता और न ही अखबारों में पढ़ता है यहां तक इन पर कार्टून भी नहीं देखना चाहता, जैसे जैसे जन मानस को सच का पता चलता जा रहा है वैसे वैसे इन सरकार नियंत्रित चेनल्ज की इनकम, दर्शक और पाठक घटते जा रहे हैं। इस का प्रभाव यह हुआ कि इनके राजनैतिक दृष्टि से अयोग्य पप्पू ने अपनी शिक्षा, राजनैतिक विरासत और आध्यात्मिक योग्यता के बल पर इन को संसद में उत्तरहीन कर दिया। राहुल गांधी कोई अशिक्षित या अयोग्य नेता नहीं है जैसा कि यह कहते रहे। आज सरकार विद्यार्थियों व्यापारियों और गरीब लोगों के समर्थन से वंचित होती जा रही है।

 

सरकार लगातार जनता विद्यार्थियों व्यापारियों और युवाओं का विश्वास खो रही है। नई संसद के पहले ही सत्र में सरकार देश की मूलभूत समस्याओं पर कुछ भी बोलना नहीं चाहती। युवा रोजगार मांग रहा है, किसान न्यूनतम मूल्य (एम एस पी) मांग रहा है और व्यापारी सुविधा। लेकिन इन प्रश्नों का उत्तर हिन्दू मुस्लिम, स्कूल में मार खाना,अबोध बालक के बचपन से दिया जा रहा हैं। क्या भारत की संसद में जनता के द्वारा निर्वाचित सभी सदस्य गंवार अनपढ़ और अशिक्षित हैं। सभी लोग भक्त हैं जो आप की हां में हां मिलाएं। आप संसद दूसरों को अंक तालिका बता रहे हैं कि आप के पास 99 अंक है , देश को यह भी बताएं कि गत संसद से आज आप की 63 सीट्स कम क्यों हुई जब कि आप के नियन्त्रण से सारी संचार व्यवस्था है जिसको पहले दस वर्षों से लोगों ने फॉलो कर रहे थे, धीरे धीरे जैसे ही देश के लोगों को यह पता चला कि यह सूत्र तो सरकार के पक्ष पर राग दरबारी गाने के लिए नियुक्त किए गए है, वह न तो सच दिखाते है और न ही सच बोलते हैं। मूल विषय तो राहुल गांधी का है जिस के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद संसद में पदार्पण भाषण था, 100 मिनट के संबोधन में राहुल ने जिस परिपक्वता से भाषण दिया उसकी बानगी ही कुछ और थी। भाषण इतना धाराप्रवाह और प्रभावशाली था कि जब कल जब प्रधान मंत्री की बारी आई तो लगभग सभी यूट्यूबर्ज यही कह रहे हैं कि स्टीरियो को बार बार कौन सुने, प्रतिपक्ष के प्रश्नों का प्रधानमंत्री के पास कोई भी उत्तर नहीं था तभी तो अपने संबोधन के बीच बीच में वह पानी पी रहे है। हमेशा राजनैतिक सूखे में तैरने वाले तैराक नेता इस बार जब पहली बार पानी (संसद) में उतरे तो उन्हें पता चला कि राजनीतिक समुद्र का जल कितना गहरा है, आज सत्ता को डर लग रहा था कि वह कहीं डूब ही न जाएं, गत 10 वर्षों से राहुल पर यह लोग पप्पू होने का टैग लगा कर उसका अपमान करते रहे, आज सौ सुनार की एक लोहार की … जैसी स्थिति क्या बनी कि राहुल की टी आर पी प्रधानमंत्री से कहीं आगे निकल गई वह भी उत्तर भारत में

 

… जहां भाजपा का मुख्य वोट बैंक होने का दावा करती है। भारतीय जनमानस समस्याओं से जूझ रहा है और बाहर तो क्या संसद में जहां आप देश के प्रति जवाबदेह हैं वहां भी वह किसी प्रश्न का उतर नहीं दे रहे थे । प्रधान मंत्री के भाषण में विपक्ष मणिपुर न्याय मांगता रहा … जवाब नहीं दिया गया। राहुल गांधी कोई अनपढ़ गंवार व्यक्ति नहीं है वह हॉवर्ड और केंब्रिज विश्वविद्यालय का छात्र और राहुल गांधी ब्लैकबेल्ट जूडो कराटे, डाइविंग, स्कूबा स्विमिंग, राइफल शूटिंग और साइक्लिंग आदि का खिलाड़ी भी है उससे आज तक किसी ने शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्र किसी ने नहीं मांगे क्यों कि वह जो है वह सत्यता है। राहुल तो पांचवी बार इस संसद में चुनाव जीत कर आया है, वह कोई राज्यसभा का सदस्य नहीं है। आज उस का भाषण द्विभाषीय द्वि भाषीय (हिंदी और इंग्लिश में ) था अर्थात हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में और जिस तरह से राहुल ने हिन्दुत्व में सहिष्णुता की बात रखी, सनातन संस्कृति के अंतर्गत भगवान गुरु नानक आदि के छायाचित्र दिखा कर भारत में सर्वधर्म सम्मान की बात की तो सरकार तिलमिला गई। नीट पर आप नीट (क्लीन) नहीं है, धर्म के ठेकेदारी किसी के पास नहीं, अग्निवीर योजना पर भी आधा अधूरा जवाब परोसा गया। अब वास्तविकता तो यह है गत दस वर्षों में आप के ट्रॉल मीडिया ने प्रधान के आलू सोना आलू के भाषण को पप्पू के सिर मढ़ के चुनावी लाभ उठाया था, आज संसद के राष्ट्रपति के भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में यूट्यूब इंस्टाग्राम आदि संचार माध्यमों पर न्यूज रिपोर्टज़ देश में आप की राजनैतिक स्थिति का आंकलन करते हुए आप को राहुल की टी आर पी को सदन के नेता के मुकाबले में बहुत नीचे खिसकते हुए दिखा रहे हैं।

आज आप की प्रतिष्ठा की वस्तु स्थिति यह हो गई है कि आप लोगों दिल और नज़र से उतर गए हैं, लोग आप को उस सम्मान की दृष्टि से नहीं देख रहे और न जाने कितने हल्के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं।
यही समय है स्वयं को संभालने का … लोग व्यक्तिवाद निरंकुशता और राजतंत्र के प्रतीक संसद में रखे हुए संगोल से नहीं डरते। सत्य तो यह है भारतीय जनमानस एक साफ सुथरा प्रशासन और पारदर्शी प्रजातंत्र चाहती है। सत्य तो यह है देर सवेर सत्य तो प्रकट होना ही है।
,,आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश”।

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