राजेंद्र बाबू के कान्हा जी…..

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जीरादेई में देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के निवास के निकट स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर में विराजित है राजेंद्र बाबू के कान्हा जी की प्रतिमा

1953 में राजेंद्र बाबू, उनकी बड़ी बहन भगवती देवी, राष्ट्रीय आंदोलन के विशेष सहयोगी उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के सहयोग से बना था लक्ष्मी नारायण मंदिर

जीरादेई में पर्यटन के संदर्भ में एक आकर्षक स्थल के तौर पर सामने आ सकता है राजेंद्र बाबू का प्रिय लक्ष्मीनारायण मंदिर

✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

इस पोस्ट में जो आप पहली तस्वीर देख रहे हैं वो कान्हा जी की प्रतिमा है..राजेंद्र बाबू के प्रिय कान्हा जी की! देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सबल आध्यात्मिक अनुराग रखते थे। शाश्वत सनातनी परंपराओं के प्रति उनकी विशेष आस्था और श्रद्धा रहती थी। राजेंद्र बाबू के आराध्य थे कान्हा जी। उनकी एक प्रतिमा, जो अभी उनके जन्मस्थान बिहार के सिवान जिले में जीरादेई के निकट स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर में विराजित हैं।

कान्हा जी की यह प्रतिमा उनके साथ राष्ट्रपति रहने के दौरान राष्ट्रपति भवन में भी रही और राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत होने के उपरांत पटना के सदाकत आश्रम में भी रही। राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति पद के उत्तरदायित्वों के निर्वहन की व्यस्तता के वाबजूद अपने आराध्यदेव को नियमित राग भोग लगाते रहते थे और उनका नियमित पूजन अर्चन करते रहते थे।

मेरे दादाजी स्वर्गीय रामजी पाठक जी बचपन में हमें राजेंद्र बाबू के सादगी के किस्से सुनाते रहते थे। एक बार उन्होंने बताया था कि 1956 में जब वे नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन गए थे तो फिजूल खर्ची के विरोधी और मितव्ययिता के पैरोकार राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति भवन के तमाम कमरों में से मात्र तीन कमरों का ही इस्तेमाल करते थे। इसमें एक कमरे में राजेंद्र बाबू के प्रिय आराध्य कान्हा जी विराजित थे। जिनकी नियमित पूजा अर्चना राजेंद्र बाबू किया करते थे।

दादा जी बताते थे कि चाहे राष्ट्रपति के दायित्व निभाने के चलते कितनी भी व्यस्तता रहती थी सुबह शाम राजेंद्र बाबू कान्हा जी का पूजन अर्चन किया करते थे। उनके विदेश दौरों के समय उनकी पत्नी राजवंशी देवी कान्हा जी के प्रतिमा की पूजन अर्चन किया करती थी।

जीरादेई के स्थानीय समाजसेवी रामेश्वर सिंह बताते हैं कि कान्हा जी की ये प्रतिमा पटना के सदाकत आश्रम में भी रिटायरमेंट के बाद उनके साथ रही और कालांतर में जीरादेई के लक्ष्मीनारायण मंदिर में विराजित हो गई। वर्तमान में जीरादेई के लक्ष्मीनारायण मंदिर में कान्हा जी की यह प्रतिमा अभी लक्ष्मी नारायण जी की प्रतिमा के साथ विराजित है। इस मंदिर में कान्हा जी के राग भोग की व्यवस्था राजेंद्र प्रसाद के देवलोक गमन के उपरांत उनके पुत्र धनंजय बाबू द्वारा किया जाता रहा। 1982 में धन्नू बाबू के देवलोक गमन के उपरांत पैतृक आवास के प्रबंधक स्वर्गीय बच्चा सिंह के सुपुत्र रामेश्वर सिंह आदि के द्वारा कान्हा जी के राग भोग की व्यवस्था की जाती रही है। राजेंद्र बाबू के पौत्र बाला जी वर्मा मंदिर का समय समय पर हाल चाल लेते रहे हैं।

 

जीरादेई में राजेंद्र बाबू के पैतृक आवास के निकट स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर की भी अपनी विशेष कहानी है। जीरादेई के स्थानीय समाजसेवी रामेश्वर सिंह बताते हैं कि राजेंद्र बाबू की बड़ी बहन भगवती देवी उन्हें मां के समान दुलार देती थीं। एक बार उन्होंने इच्छा जताई कि कुछ हजार रुपए उनके पास है इससे एक लक्ष्मी नारायण का मंदिर बनवाया जाए। राजेंद्र बाबू उस समय राष्ट्रपति थे लेकिन उन्होंने कभी अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया अपने निहित पारिवारिक उद्देश्यों के लिए। इसलिए वे चुप रहे । लेकिन यह खबर राजस्थान से जुड़े उद्योगपति राजेंद्र बाबू के प्रिय मित्र घनश्याम दास बिड़ला को लगी। घनश्याम दास बिड़ला ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बहुत आर्थिक मदद पहुंचाई थी और महात्मा गांधी और राजेंद्र बाबू से उनके बेहद प्रिय संबंध थे।

उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने अपने कंपनी के इंजीनियरों को जीरादेई भेजा, उन्होंने मंदिर की रूपरेखा तैयार की। इस बाबत जब जानकारी राजेंद्र बाबू को लगी तो उन्होंने अपने स्तर पर और भगवती देवी के आर्थिक सहयोग के बूते पर एक छोटे से मंदिर निर्माण को सहमति दे दी। यह बात भी दीगर है कि दस साल राष्ट्रपति रहने के बावजूद राजेंद्र बाबू ने अपने जीवन काल में बस इसी छोटे से लक्ष्मी नारायण मंदिर के निर्माण में ही सहयोग दिया था। बाकी उनके निवास पर बने अन्य आवास आदि उनके पुरखों की कृति रही।

जीरादेई का लक्ष्मी नारायण मंदिर 1953 में बन कर तैयार हुआ। स्थानीय रामेश्वर सिंह बताते हैं कि लक्ष्मी नारायण मंदिर में भगवान की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा 23 जून, 1953 को राजेंद्र बाबू की बड़ी बहन भगवती देवी के नेतृत्व में हुई। इस अवसर पर देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भी उपस्थित रहे थे। इस मंदिर के निर्माण के बाद जब भी राजेंद्र बाबू जीरादेई आते थे तो अपने राष्ट्रपति के तौर पर प्रोटोकॉल से बाहर आकर पूजन अर्चन किया करते थे।

78 साल की उम्र में 28 फरवरी, 1963 को सदाकत आश्रम, पटना में राजेंद्र बाबू के देवलोक गमन के उपरांत उनके आराध्य देव कान्हा जी की प्रतिमा भी सदाकत आश्रम से लाकर जीरादेई के इसी लक्ष्मीनारायण मंदिर में विराजित की गई।

देश के प्रथम राष्ट्रपति, महान स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय संविधान सभा के प्रथम स्थाई अध्यक्ष देशरत्न, भारत रत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई देशी विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षक स्थान रही है। यहां आनेवाले पर्यटकों के लिए राजेंद बाबू के पैतृक निवास स्थान के निकट स्थित राजेंद्र बाबू के बेहद प्रिय लक्ष्मीनारायण मंदिर भी एक पर्यटन के लिए आकर्षण बिंदु है। इसका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस मंदिर में लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा के साथ राजेंद्र बाबू के बेहद प्रिय आराध्यदेव कान्हा जी भी विराजित हैं।

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